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मप्र में नगर निकाय के नतीजे:BJP के लिए अलार्म, कांग्रेस के लिए बूस्टर

० डॉ राकेश पाठक

भोपाल. मप्र में नगरीय निकाय चुनावों के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। दलबदल के कारण सरकार गंवा बैठी कांग्रेस के लिए ये नतीजे बूस्टर डोज का काम कर सकते हैं।बड़े बड़े दिग्गजों को अपने अपने प्रभाव क्षेत्र में पार्टी की हार ने चिंता में डूबो दिया है।पहले चरण में ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में बीजेपी की हार और अब केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के क्षेत्र मुरैना में महापौर की कुर्सी पर कांग्रेस की जीत ने पार्टी के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर दी हैं। मुरैना बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का गृह जिला भी है।मप्र में पिछली बार सोलह के सोलह शहरों में प्रथम नागरिक भाजपा के थे। इस बार भी पार्टी का दावा था कि सारे महापौर उसी के होंगे लेकिन नतीजों ने उसकी नींद उड़ा दी है। उसे सोलह में से 9 सीटें मिली हैं। जिस कांग्रेस का एक भी नामलेवा मेयर नहीं था उसने पांच जगह जीत दर्ज की है। एक शहर निर्दलीय और एक आम आदमी पार्टी के खाते में गया है। यानी भाजपा कुल सात जगह हार गई है।

ग्वालियर चंबल में बड़ी हार…

भाजपा के लिए ग्वालियर,चंबल बड़ा गड्ढा साबित हुआ है जबकि यह पार्टी के सूरमाओं का इलाका है।केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर,ज्योतिरादित्य सिंधिया,प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, शिवराज सरकार में नौ मंत्री, 14 निगम मंडल अध्यक्ष इसी अंचल से हैं।फिर भी ग्वालियर और अब मुरैना में बीजेपी महापौर का चुनाव हार गई है।यहां परिषद में पार्षद भी बहुमत के साथ कांग्रेस के ही जीत कर आए हैं।ग्वालियर में तो 57 साल बाद कांग्रेस ने महापौर पद पर जीत दर्ज की है।मुरैना मोदी सरकार के कद्दावर मंत्री नरेंद्र सिंह का अपना संसदीय क्षेत्र है। वे खुद वहां कमान सम्हाले थे।
अपने समर्थकों के बीच ‘बॉस’ कहलाने वाले तोमर ने इस चुनाव में घर घर जनसंपर्क तक किया था।ग्वालियर में भाजपा की हार से भी तोमर बरी नहीं हो सकते। वहां उनकी ज़िद पर ही सुमन शर्मा को महापौर प्रत्याशी बनाया गया था।ग्वालियर तोमर की कर्मभूमि है।यहां से ही पार्षद से शुरू करके वे केंद्रीय मंत्री के ओहदे तक पहुंचे हैं। ‘अपने मुन्ना भैया’ से ‘बॉस’ तक का सफ़र ग्वालियर से शुरू होकर ही दिल्ली पहुंचा है।ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल के बाद हुए उप चुनाव में भी मुरैना जिले में चार में से तीन सीटों पर भाजपा हार गई थी। मुरैना सीट पर भी कांग्रेस जीती थी।

बीजेपी के लिए खतरे की घंटी..!

राज्य और केंद्र में सरकार होते हुए बड़े शहरों में भाजपा की हार उसके लिए खतरे की घंटी है। आम तौर पर यह धारणा रही है कि भाजपा शहरों में ज्यादा मजबूत रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और पार्टी के देव दुर्लभ (?) कार्यकर्ताओं के दावे के साथ जीतती रही भाजपा का मप्र में बड़े शहरों में सात सीटें गंवाना उसके लिए आत्ममंथन का विषय है।चंबल से विंध्य , महाकौशल तक कांग्रेस की बढ़त ने यह भी साबित किया है कि वह प्रदेश में एक छोर से दूसरे छोर तक उबर रही है।ग्वालियर, चंबल में दो ही नगर निगम हैं दोनों पर भाजपा हारी है। महकौशल में तीन में से दो सीटें जबलपुर, छिंदवाड़ा कांग्रेस ने जीती हैं।विंध्य में तीन में से दो पर भाजपा हारी। एक पर आप ने जीत दर्ज़ की और दूसरी रीवा में कांग्रेस ने 23 साल बाद जीत दर्ज की है।भोपाल, मालवा,निमाड़ में भाजपा ने जीत दर्ज़ की है।
यद्यपि उज्जैन और बुरहानपुर की जीत मामूली अंतर से दर्ज की गई हैं।

 

एक अजब संयोग और बना है…

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद वीडी शर्मा मुरैना के निवासी हैं, जबलपुर ससुराल है और कटनी उनके खजुराहो संसदीय क्षेत्र में है।तीनों जगह भाजपा हार गई है।मुरैना ,जबलपुर में कांग्रेस और कटनी में निर्दलीय प्रत्याशी विजयी हुआ है।

कांग्रेस के लिय बूस्टर डोज..!

सन 2018 में सरकार बनाने के बाद सिर्फ़ अठारह महीने में सिंधिया के दल बदल से सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस के लिए ये चुनाव संजीवनी बूटी साबित हो सकते हैं। इसी महीने हुए पंचायत चुनावों में कांग्रेस ने अच्छी सफलता पाई थी और अब नगर पालिका,नगर निगमों में सम्मानजनक जीत उसके हौसले को बढ़ाने का काम करेगी।

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