बिहार के सीमांचल की सियासत इस बार पहले से अलग दिख रही है। किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में AIMIM की पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है। यहां मुस्लिम आबादी 40 से 60 प्रतिशत तक है और यही वजह है कि यह इलाका हमेशा से RJD-कांग्रेस के लिए सुरक्षित माना जाता था। लेकिन असदुद्दीन ओवैसी ने अपने संगठन और रणनीति से इस धारणा को तोड़ दिया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल की पांच सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था और कई सीटों पर विपक्षी गठबंधन को पीछे छोड़ दिया था।
2020 के नतीजों ने यह साफ कर दिया कि सीमांचल के वोटर अब परंपरागत दलों के प्रति उतने प्रतिबद्ध नहीं हैं। किशनगंज में AIMIM के कमरुद्दीन हुदा को 24% वोट मिले, जिससे कांग्रेस मुश्किल से जीत पाई। पूर्णिया की दो सीटों पर AIMIM ने RJD-कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। ओवैसी इस बार खुद सीमांचल में डेरा डाले हुए हैं और हर विधानसभा क्षेत्र में संगठन को मजबूत कर रहे हैं। भले ही पिछले चुनाव में उनके चार विधायक RJD में शामिल हो गए हों, लेकिन पार्टी का जनाधार और उपस्थिति दोनों तेजी से बढ़ी है।
ओवैसी का कहना है कि उन्होंने RJD प्रमुख लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को गठबंधन के लिए चिट्ठी लिखी थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उनका दावा है कि AIMIM मुसलमानों की आवाज बनकर उभरी है, जबकि RJD और कांग्रेस ने उन्हें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। ओवैसी की यही सीधी और आक्रामक राजनीति सीमांचल के मुस्लिम युवाओं को आकर्षित कर रही है। अब यह साफ है कि सीमांचल में AIMIM की बढ़ती ताकत ने RJD-कांग्रेस की चुनावी रणनीति को बड़ी चुनौती दे दी है।

