यह दक्षिण अफ़्रीका में नस्लभेद के समय में भी इस्तेमाल किया जाता था। जिस अंग्रेज़ रेलवे अफ़सर ने गांधी को दक्षिण अफ़्रीका में ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से निकाल बाहर किया था, वह भी ‘सामाजिक दूरी’ के नियम का पालन कर रहा था।
◆पंकज चतुर्वेदी
मशहूर भाषाविद् एवं विचारक प्रो. जी.एन. देवी ने कोरोना महामारी के भयावह दौर में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ या सामाजिक दूरी की शब्दावली पर गम्भीर और सख़्त एतिराज़ किया है और इसके प्रयोग को आगे न बढ़ाने की सलाह देते हुए भारत सरकार को पत्र भी लिखा है।उनका कहना है : ” ‘सामाजिक दूरी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल औपनिवेशिक काल में होता था, जब हम ग़ुलाम थे और अंग्रेज़ प्रशासकों को हिन्दुस्तानी अवाम के साथ घुलने-मिलने से प्रतिबन्धित करने के लिए क़ानून लागू किये गए थे। यह दक्षिण अफ़्रीका में नस्लभेद के समय में भी इस्तेमाल किया जाता था। जिस अंग्रेज़ रेलवे अफ़सर ने गांधी को दक्षिण अफ़्रीका में ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से निकाल बाहर किया था, वह भी ‘सामाजिक दूरी’ के नियम का पालन कर रहा था।”इसके अलावा ‘भारत में भेदभाव और अमानवीयता पर आधारित, मनुस्मृति-जन्य वर्णव्यवस्था का प्रमुख औज़ार ‘सामाजिक दूरी’ थी। इसमें भोजन, सामान, जगह, आवास, रीति-रिवाजों, रिश्तों, देवताओं और मूर्तियों को साझा न करना शामिल था।हमारे इतिहास में बसवेश्वर, कबीर, मीरां, तुकाराम, नारायण गुरु, महात्मा गांधी, पेरियार, महात्मा ज्योतिबा फुले और बाबासाहेब अम्बेडकर सरीखे बहुत-से चिन्तकों और सन्तों ने इस बुरी प्रथा से संघर्ष करने में सारा जीवन लगा दिया। क्या अब हम ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ को एक वैध सामाजिक प्रथा के तौर पर प्रस्तावित करके उस इतिहास को उलट देना चाहते हैं ?’इसके अलावा, प्रो. देवी सामाजिक अस्पृश्यता के इस आम माहौल में अपनी जीविका गँवानेवाले सबसे कमज़ोर, अरक्षित और वेध्य तबक़ों को आर्थिक मोर्चे पर भी अछूत बनाये जाने का ख़तरा देखते हैं।इसलिए वह कहते हैं कि वह किसी भी समय और समाज में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की अभिव्यक्ति के विरुद्ध रहेंगे।कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए जो भौतिक या शारीरिक दूरी अपेक्षित है ; उसके लिए वह ‘सामाजिक दूरी’ की बजाय सुरक्षित, हाइजेनिक या ज़रूरी दूरी जैसी वैकल्पिक अभिव्यक्तियों को गढ़े जाने की ज़रूरत पर इसरार करते हैं।
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