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अवसर के सहारे विरासत को बढ़ाने की तैयारी

डॉक्टर इक़रा अली खान के पास अपने पिताश्री स्वर्गीय शाहिद अली खान की राजनीतिक उपलब्धियों का सहारा है जिसके माध्यम से वो अपनी सियासी ज़मीन तैयार कर सकती हैं लेकिन बीते दिनों की इन उपलब्धियों के सहारे मौजूदा वक्त की फेसबुक और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से संचालित राजनीति को डॉक्टर इक़रा अली ख़ान कहाँ कहां तक भेद पाती हैं या भेदने की क्षमता रखती हैं ये आने वाला वक़्त बताएगा

 

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मेराज नूरी
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मेरे पिता अक्सर कहा करते थे।मैं रहूँ या न रहूँ।जहाँ रहना गरीबों की मदद करना,मजलूमों की मदद करना।कोई और देखे ना देखे ऊपर वाला जरूर देखता है… आज वो नहीं हैं पर उनकी दुआएं हमेशा हमारे साथ हैं …।अपने पिता और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री स्वर्गीय शाहिद अली ख़ान के इन वचनों के सहारे और उनके वचनों को धरातल पर उतारने की कोशिशों के तहत उनकी पुत्री डॉक्टर इक़रा अली खान इन दिनों सीतामढ़ी ज़िला के विभिन्न क्षेत्रों में मानव सेवा में व्यस्त हैं।मौजूदा वक्त महामारी का है जिसने मध्यम और निम्न वर्ग खासतौर से मज़दूरों और गरीबों की कमर तोड़ दी है।ऐसे में गरीबों,बेसहारों,मज़दूरों की सहायता विशुद्ध रूप से मानव सेवा की श्रेणी में आते हैं और ये समय की मांग भी है।चारों ओर तक़रीबन एक जैसे हालात हैं।कहीं लोग नौकरी जाने से परेशान हैं तो कहीं अपना व्यवसाय बन्द होने से।लॉक डाउन में सीमित हुई ज़िन्दगी और सीमित संसाधनों के बीच लोग गुज़ारा करने पर मजबूर हैं।त्रासदी ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादा है।क्योंकि वहां दैनिक मज़दूरी करके अपना और परिवार का भरणपोषण करने वालों की संख्या ज्यादा है।उनके सामने खाने से लेकर दवा दारू और रोजमर्रा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए समस्याएं हो रहीं हैं।ऐसे में कोई समाजसेवी या संगठन अगर आगे आकर इनकी मदद करता है तो जाहिर है ये उन गरीबों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं होते।ऐसी ही एक मसीहा बनकर आजकल डॉक्टर इक़रा अली खान इलाके में लोगों की सेवा कर रहीं हैं।पेशे से डॉक्टर इक़रा अली खान के लिए ये दोहरा ज़रिया है समाज सेवा और मानवधर्म निभाने का ।एक बतौर डॉक्टर जो वो आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS)पटना में अंजाम दे रहीं है वहीं कोरोना काल में प्रकृति ने उन्हें दूसरा ज़रिया भी उपलब्ध कराया है।वो है कोरोना के कारण लागू देशव्यापी लॉक डाउन और उससे उतपन्न परिस्थितियों में लोगों की मदद करना ,लोगों में ज़रूरत का सामान मुहैया कराना।ज़ाहिर है दो मोर्चों को संभालना आसान नहीं लेकिन डॉक्टर इक़रा अली ख़ान का सोशल पैरामीटर दिखाता है कि वो दोनों मोर्चों पर सफल हैं।इन दिनों वो पूर्व मंत्री और अपने पिता स्वर्गीय शाहिद अली ख़ान के नाम पर स्थापित “शाहिद अली ख़ान हेल्पिंग हैंड फाउंडेशन ” के माध्यम से सीतामढ़ी ज़िले के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की मदद में जुटी हैं।ज़ाहिर है जब आप किसी के दुख दर्द में काम आएंगे तो दुआएं भी मिलेंगी,आशीर्वाद भी मिलेगा और लोगों का प्यार भी।सो,डॉक्टर इक़रा अली ख़ान को इन सब से हौसला मिल रहा है और वो समाजसेवा में आगे बढ़ रही हैं।

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इन सबके विपरीत डॉक्टर इक़रा अली खान के राजनीतिक पृष्टभूमि से आने की वजह से इस सरगर्मी को देखते हुए राजनीतिक ज़मीन तैयार करने की कवायद से भी इंकार नहीं किया जा सकता।ज़ाहिर है राजनीतिक परिवार की चश्म व चराग़ डॉक्टर इक़रा अली खान की भी अपनी कुछ महत्वकांक्षाएं होंगी।और अगर उसपर वो आगे बढ़ रही है तो इसमे कोई हर्ज भी नहीं।आज़ादी के बाद हुए 1946 के विधानसभा चुनाव में सीतामढ़ी विधानसभा से विधायक निर्वाचित होने वाले ज़िले के बैरगनिया प्रखंड के अखता ग्राम निवासी स्वर्गीय बदीउज़्ज़मां खान उर्फ बच्चा बाबू की पोत्री और बिहार विधानसभा में सीतामढ़ी, पुपरी और सुरसंड विधान सभा का प्रतिनिधित्व करने वाले और कई मंत्रालय के माध्यम से समाजसेवा करने वाले पूर्व मंत्री स्वर्गीय शाहिद अली खान की पुत्री डॉक्टर इक़रा अली ख़ान अगर इस पथ पर भी अग्रसरित हैं तो मेरा मानना है कि उनका ना सिर्फ स्वागत किया जाना चाहिए बल्कि एक कदम आगे बढ़कर उनका हौसला बढ़ाया जाना चाहिए।इसकी वजह भी है।एक तो राजनीतिक पृष्टभूमि से आनेे की वजह से राजनीतिक सूझबूझ प्राकृतिक तौर पर उन्हें मिला है जिसका फायदा उठाया जा सकता है।दूसरा ये की उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और वो भी मेडिकल के क्षेत्र में ।यानी समाज और मानव सेवा का पूर्ण मिश्रण।इन सब के बाद एक महिला का राजनीतिक के माध्यम से समाज सेवा और मानव सेवा का संकल्प लेना एक बेहतर क़दम माना जा सकता है।हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सीतामढ़ी ज़िला में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का ये पहला मामला होगा क्योंकि नई सदी में डॉक्टर रंजू गीता,गुड्डी चौधरी,मंगीता देवी सरीखी उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाएं ज़िले की अलग अलग विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और कर रही हैं।
ख़ैर, डॉक्टर इक़रा अली खान के पास अपने पिताश्री स्वर्गीय शाहिद अली खान की राजनीतिक उपलब्धियों का सहारा है जिसके माध्यम से वो अपनी सियासी ज़मीन तैयार कर सकती हैं लेकिन बीते दिनों की इन उपलब्धियों के सहारे मौजूदा वक्त की फेसबुक और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी से संचालित राजनीति को डॉक्टर इक़रा अली ख़ान कहाँ कहां तक भेद पाती हैं या भेदने की क्षमता रखती हैं ये तो आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन फिलहाल जिस तरह से वो समाज सेवा और मानवधर्म निभा रही हैं उससे उन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता कि जिसकी तलाश में डॉक्टर इक़रा अली खान हैं।बाक़ी किसको क्या मिलता है ये मुक़द्दर की बात है।
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