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त्रासदी,त्राहिमाम और बेशर्म सिस्टम

अगर आज भी सत्ता की हनक, हाकिमों की ठसक और भक्ति की सनक से इतर समाज का निर्माण नहीं हुआ तो यकीन मानिए तस्वीरें और भी भयावह होंगी जिसमें इंसानियत का तसव्वुर करना बेमानी होगा।

 

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मेराज नूरी
21वीं सदी के भारतीयों में से किसी ने ये तसव्वुर नहीं किया होगा कि अगर दो चार महीने के लिए किसी आपदा का सामना करना पड़े तो हम इतना बेबस,लाचार और मजबूर होंगे।किसी ने ये भी नहीं सोंचा होगा कि विपदा की इस घड़ी में हमारे हाकिम और हुक्मरां इतने बेशर्म,बेमरउत्त,बेग़ैरत,अंधे,गूंगे,बहरे और दोगले हो जाएंगे कि उन्हें अपनी सियासत तो नज़र आएगी लेकिन मजबूर, बेबस और लाचार जनता की परेशानी दिखाई नहीं देगी।ये सियासतदां इस विपदा में भी ना सिर्फ अपना स्वार्थ देखेंगे बल्कि लोभ,लालच और बेशर्मी की हदें पार करते हुए मज़बूरी और लाचारी का मज़ाक भी बनाएंगे।किसी को प्रवासियों की समस्याएं मजाक लगेंगी तो किसी को मजदूरों से बात करना फालतू का काम नजर आएगा।कोई पलायन को पर्यटन जैसा आनन्ददायक बताएगा तो कोई चटखारे ले लेकर अपने बचपन की यादें ताजा करेगा।जनप्रतिनिधि आइसोलेशन में ही नहीं बल्कि हाइबरनेशन में चले जाएंगे।हममें से किसी ने शायद ही अपने सांसद, विधायक या अन्य जनप्रतिनिधियों को सड़क पर जनता के साथ उसके दुःख-दर्द को बाँटते हुए या कुछ राहत कार्य करते हुए देखा होगा। हाँ, घर पर बैठ कर टीवी सीरियल का लुत्फ लेते हुए ये जरूर दिखाई दिए हैं।
ज़रा याद कीजिए वो सीन जब दिल्ली से लौट रहे मजदूरों पर बरेली के सेटेलाइट अड्डे पर सैनिटाइजर से छिड़काव किया गया था। पुलिस ने सबको एक लाइन में बैठाया और इसके बाद उन्हें सोडियम हाईपोक्लोराइड युक्त पानी से नहलाया गया। कुछ लोगों की आंखें लाल हो गई तो कुछ छोटे बच्चे रोने लगे।देश में जारी लॉडाउन के दौरान जनउपेक्षा व जुल्म ज्यादती की अनेकों तस्वीरें मीडिया में आईं और आरही हैं परन्तु प्रवासी मजदूरों पर यूपी के बरेली में कीटनाशक दवा का छिड़काव करके उन्हें दण्डित करना क्रूरता व अमानीवयता ही तो कहा जायेगा ना।और इसका जिम्मेदार कौन?वही हाकिम और हुक्मरां ना।

महिला लेटी है, उसका एक-डेढ़ साल का बेटा मां की चादर को खींच रहा है, मानो वह उसे जगाने की कोशिश कर रहा है। इस बच्चे को नहीं मालूम कि उसकी मां अब हमेशा के लिए सो गई है। अबोध मासूम को मालूम नहीं कि हर दिन मां जिस चादर को ओढ़ कर सोती है वह अब उसका कफन बन चुका है। चादर बार-बार खींचने पर भी मां कोई हरकत नहीं करती है। अगर बच्चे को होश होता तो शायद वह समझ पाता कि इतना तंग करने पर भी उसे डांट क्यों नहीं रही, लेकिन वह तो बिलकुल ही अबोध है।

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ज़रा सुनिए बिहार के बेतिया निवासी मुलायम यादव,झोटिल कुमार,लालजीत साहनी की बिपदा जो चंडीगढ़ से बिहार के बेतिया जिले के लिए पैदल निकले और रास्ते मे पुलिस ने रोका तो क्या कहा।उनका कहना था कि साहब बहुत भूख लगी है. दिहाड़ीदार हैं,काम बंद होने के चलते जेब में अब एक फूटी कौड़ी भी नहीं बची। चंडीगढ़ से बिहार के बेतिया जिले के लिए पैदल निकले हैं। शायद चार पांच दिनों में अपने परिवार के पास घर पहुंच जाएं। अभी चंडीगढ़ से डेराबस्सी तक पहुंचे हैं इसके बाद 2500 किलोमीटर पैदल और चलना है। हिम्मत तो अभी से जवाब देने लगी है, पर क्या करें हमारे पास दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है। आधे लोग निकल गए और बचे 10-15 लोगों के समूह में निकले हैं ताकि कोई मुसबीत आए तो कम से कम साथ देने वाला तो कोई हो। इस मज़बूरी और बेबसी का जिम्मेदार कौन?वही हाकिम और हुक्मरां ना।

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ज़रा याद कीजिए मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर घटी एक ह्रदय विदारक घटना को जिसका वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में एक मासूम बच्चा अपनी मरी हुई मां के आंचल को बार-बार खींच रहा है।अहमदाबाद से कटिहार आ रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन में कटिहार निवासी अरवीना (35 साल) की भूख-प्यास और गर्मी से मौत हो गई ।उसने चलती ट्रेन में ही दम तोड़ दिया।बीच रास्ते में उसके शव को मुजफ्फरपुर स्टेशन पर उतार दिया गया। वहां स्टेशन पर मौजूद लोगों की आंखें तब नम हो गयीं जब सालभर का उसका बेटा बार-बार अपनी मां के शव पर से चादर हटाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहा था। महिला लेटी है, उसका एक-डेढ़ साल का बेटा मां की चादर को खींच रहा है, मानो वह उसे जगाने की कोशिश कर रहा है। इस बच्चे को नहीं मालूम कि उसकी मां अब हमेशा के लिए सो गई है। अबोध मासूम को मालूम नहीं कि हर दिन मां जिस चादर को ओढ़ कर सोती है वह अब उसका कफन बन चुका है। चादर बार-बार खींचने पर भी मां कोई हरकत नहीं करती है। अगर बच्चे को होश होता तो शायद वह समझ पाता कि इतना तंग करने पर भी उसे डांट क्यों नहीं रही, लेकिन वह तो बिलकुल ही अबोध है।दो दिन बाद इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।कई लोगों ने इसे अपने आईडी से सोशल प्लेटफार्म पर लगातार शेयर किया।इसमें बच्चे को बार-बार अपनी मां के पास जाना और शव के ऊपर से चादर को हटाना लोगों को भावुक कर रहा है।इस मज़बूरी और बेबसी का जिम्मेदार कौन?वही हाकिम और हुक्मरां ना।

ऐसे में चाहे सरकारें जिसकी हों,पार्टी जो भी हो।सत्तासीन जो भी हो लेकिन नौकरशाही के जाल और नेताओं की बेशर्म चाल ने हर बार गरीब,बेबस,मजबूर और असहाय लोगों को ही काल के गाल में धकेला है।जसमे जितना क़सूर नेताओं का है उतना ही उनके भक्तों और चमचों का भी।मौजूदा वक़्त में देश मि दो धुरी और दो पार्टी भाजपा और कांग्रेस की अंधभक्ति ने लोगों का ज़मीर मार दिया है।अरे अक़ल से पैदल और गूंगे,अंधे,बहरे लोगों ज़रा 100 मीटर नंगे पाँव चलकर देख लो।भाजपा और कांग्रेस की सारी भक्ति निकल जायेगी।अगर आज शासनतंत्र भ्रष्ट तंत्र में बदला है तो आप जैसे पढ़े लिखे बईमानों ने इसे पोषित किया है।ऐसे में अगर आज भी सत्ता की हनक, हाकिमों की ठसक और भक्ति की सनक से इतर समाज का निर्माण नहीं हुआ तो यकीन मानिए तस्वीरें और भी भयावह होंगी जिसमें इंसानियत का तसव्वुर करना बेमानी होगा।

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{ merajmn@gmail.com }

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