यूँ तो सोशल मीडिया पर जन विकास पार्टी के अध्यक्ष साहिल सन्नी अपनी तर्कसंगत छाप से सक्रिय दिखाई देते हैं,लगातार जन सरोकार के मुद्दे उठाकर अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं साथ ही जनसमर्थन विशेषकर युवाओं में पहुंचने की कोशिश में प्रयत्न शील हैं लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में असल परीक्षा धरातल पर यानि चुनाव में होती है। ऐसे में निकट भविष्य में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में ही यह बात साफ होगी कि वह अपने आप को कहाँ तक सिद्ध कर पाए या जनता जनार्दन को कहाँ तक साध पाए
बिहार में इनदिनों कोरोना के साथ साथ चुनाव की गहमागहमी भी जारी है।एक तरफ कोरोना से लड़ने के सरकारी और तंत्र के दावे हैं तो दूसरी तरफ इलेक्शन लड़ने और लड़ाने के निर्वाचन आयोग के दावे।कोरोना से जहां विश्व के साथ साथ भारत और हालिया दिनों में बिहार कराह रहा है तो वहीं दूसरी तरफ खद्दरधारी कभी बाढ़ तो कभी कोरोना से लड़ने के बहाने अपनी सियासी रोटी सेंक कर चुनावी वैतरणी पार लगाने की फ़िराक़ में गिद्ध की तरह टूट पड़ रहे हैं।पक्ष विपक्ष के अपने समीकरण हैं,अपने दावे और वादे हैं।खेमों में बंटे दल सीटों के जुगाड़ में यहां वहां की रेस लगा रहे हैं तो इंटरनेट के माध्यम से वर्चुअल रैली करके जनता को फंसाये भी रखना चाहते हैं।पटना से दिल्ली तक कि दौर जारी है।दरअसल यही वजह थी कि कोरोना काल में हवाई यात्रा पर लगा प्रतिबंध इसीलिए जल्दी हटा लिया गया था कि नेता जी को दिल्ली पटना,पटना दिल्ली करने में ज़्यादा समय ना लगे।ख़ैर,बिहार चुनाव में राजग और महागठबंधन की सीधी लड़ाई के दरम्यान कुछ छोटी पार्टियां भी हैं या यूं कहिये कि बनी हैं जो अपना भविष्य बनाने की फिराक में लग गयी हैं।इन्हीं में से एक है भारत के कलाकारों की एक मात्र पार्टी के पंच लाइन के साथ बनी पार्टी “जन विकास पार्टी”।एक्टर,राइटर,प्रोड्यूसर,म्यूजिक डायरेक्टर और डिस्ट्रीब्यूटर के बाद राजनीति में कदम बढ़ाने वाले साहिल सन्नी इस पार्टी के अध्यक्ष हैं।शायद फिल्मी दुनिया में किस्मत आज़मा चुके और तक़रीबन बुरी तरह नाकाम रहे केंद्रीय मंत्री और दलित नेता का तमगा टांग कर सियासत के मौसम विज्ञानी कहलाने वाले रामबिलास पासवान के पुत्र और विरासत में मिली लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान और सन ऑफ मल्लाह का तमगा लेकर विकासशील इंसान पार्टी यानी VIP बनाने वाले मुकेश सहनी की कहानी से प्रेरित होकर साहिल सन्नी ने भी राजनीति को ही अपना अंतिम पड़ाव बनाने की ठानी है।
अपने सोशल मीडिया अकॉउंट के माध्यम से सियासत की घिरनी घुमाने वाले सन्नी हालांकि अक्सर-गलत का विरोध खुलकर कीजिए, चाहे राजनीति हो या समाज, इतिहास आवाज उठाने पर ही लिखा जाता है, तलवे चाटने वाले पर नहीं-बिहार का भविष्य सामने है, जाति-धर्म के पुरातन गड्ढों में नहीं, वैश्विक अवसरों के खुले आकाश में।लोग औज़ार नहीं, स्वयं में लक्ष्य बनेंगे। हर एक जीवन श्रेष्ठ बनाने का समय! चलिए, अब आगे बढ़ते हैं। सबकाशासन,सबको सम्मान, बदलेगा बिहार बदलेगा हिंदुस्तान-इत्यादि का दम्भ भरते दिखाई देते हैं और आह्वान करते हैं कि बेरोजगारी को बीमारी समझ कर लड़ाई कीजिए, कुरीतियों को बीमारी समझकर लड़ाई कीजिए।कौन कहता है आप नहीं जीतेंगे।हारा वही जो लड़ा नहीं-लेकिन चूंकि सन्नी की राजनीतिक पारी की इसे शुरुआत ही कहा जायेगा इसलिए ज़्यादा शक की गुंजाइश तो नहीं निकलती लेकिन महागठबंधन की पार्टियां यथा कांग्रेस,राजद,VIP, हम और रालोसपा एवं NDA की पार्टियां यथा जदयू,भाजपा और लोजपा की मौजूदा स्थिति और जनाधार से इतर राज्य में उदय होने वाली छोटी छोटी पार्टियां जैसे पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी इत्यादि के बीच सन्नी की पार्टी”जन विकास पार्टी”के जनाधार को बढ़ाना एक चुनौती ज़रूर है।यूँ तो सोशल मीडिया पर साहिल सन्नी अपनी तर्कसंगत छाप से सक्रिय दिखाई देते हैं,लगातार जन सरोकार के मुद्दे उठाकर अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं साथ ही जनसमर्थन विशेषकर युवाओं में पहुंचने की कोशिश में प्रयत्न शील हैं लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में असल परीक्षा धरातल पर यानि चुनाव में होती है। ऐसे में निकट भविष्य में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में ही यह बात साफ होगी कि वह अपने आप को कहाँ तक सिद्ध कर पाए या जनता जनार्दन को कहाँ तक साध पाए लेकिन एक बात जो साहिल सन्नी में दिखती है वो ये कि वो लगातार जनमानस के मुद्दे से बिहार के पक्ष विपक्ष के लिए चुनौती बन सकते हैं बशर्ते सीमित समय में उनकी पार्टी का कैडर इस कार्य को चुनौतीपूर्ण ढंग से अंजाम दे।
साहिल सन्नी और उनकी पार्टी जन विकास पार्टी की दूसरी चुनौती ये भी है कि अभी तक सोशल मीडिया और वर्चुअल माध्यम से ही वो ख़ुद को मेन स्ट्रीम में लाती दिख रही है जो सियासत का पैमाना नहीं है भले ही कोरोना काल में मजबूरी में किया जा रहा हो।हक़ीक़त में किसी भी पार्टी को धरातल पर जाकर ही सबकुछ खोना पाना पड़ता है।ऐसे में वर्चुअल टीम तैयार करके सोशल मीडिया के अखाड़े में तो कूदा जा सकता है लेकिन सियासत में परिपक्कव और बाज़ीगरी में माहिर मौजूदा वक्त के सत्ताधारी और गुज़रे ज़माने की सत्ताधारी पार्टियों से लोहा लेना इतना आसान नहीं जितना कोई सोंचकर इस समर में कूदता है।
हालांकि हाल ही में साहिल सन्नी ने सोशल मीडिया पर एक जनमत-संग्रह प्रारंभ किया है जिसके माध्यम से वो जनता विशेषकर कर युवाओं की नब्ज़ टटोल रहे हैं ताकि उसी आधार पर वो जनता के बीच जा सकें। जनमत संग्रह के अनुसार जन विकस पाटी अपने बिहार के ब्लूप्रिंट को अंतिम रूप दे रहा है। इसमें “एजुकेशन रिफ़ॉर्म” के अंतर्गत एक बड़ा एजेंडा “कॉमन स्कूलिंग सिस्टम” का है, अर्थात सरकारी और निजी स्कूल की विभेदकारी व्यवस्था की समाप्ति, चरणवार तरीक़े से। इसके लिए न सिर्फ़ सरकारी विद्यालयों में बिल्डिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर, डिजिटल इंफ़्रा, प्रोफेशनल मिड डे मिल सिस्टम, लाखों क्वालिफ़ायड टीचर्स की सही नियुक्ति, कॉमन सिलेबस, स्कूल बस इत्यादि के प्रावधान का प्रस्ताव है बल्कि यह अनिवार्य बनाया जाएगा कि सामान्य नागरिकों की तरह सभी सरकारी लाभ के पद पर बैठे व्यक्ति (जनप्रतिनिधि, नौकरशाह इत्यादि) अपने बच्चों को अपने नेबरहुड के सरकारी विद्यालय में ही पढ़ा पाएँगे। इस तरह, चाहे आप मंत्री हों, डीएम हों, बीडीओ हों या स्थानीय विधायक, जनप्रतिनिधि, आपके बच्चे आपके लाभ के पद पर रहते आपके गाँव या शहर के सबसे निकट के स्कूल में ही पढ़ पाएँगे, जैसे उस क्षेत्र के अन्य बच्चे पढ़ते हैं। “कॉमन स्कूलिंग सिस्टम” और “नेबरहुड स्कूलिंग” की व्यवस्था सभी विकसित देशों में है और भारत में “नेशनल एजुकेशन कमीशन (कोठारी कमीशन, 1964)” के ज़माने से सत्ता-शिक्षा माफिया गठजोड़ के कारण दशकों से लम्बित है। इस मुद्दे पर जनमत का हमें अंदाज़ा है। हम सोशल मीडिया पर, जहां काफ़ी लोग निजी विद्यालयों से भी पढ़े हैं, उनका मत जानना चाहते हैं ताकि पॉलिसी को समग्र और व्यापक बनाया जा सके।
ख़ैर,चुनावी समर में उतरने और चुनावी वैतरणी पार करने के लिए मैदान में कूदे साहिल सन्नी और उनकी पार्टी क्या कुछ कर पाती है वो भविष्य की गर्त में है।हम मौजूदा स्थिति के आंकलन से ही नतीज़ा का अंदाज़ा कर सकते हैं।ऐसे में साहिल सन्नी और उनकी पार्टी,उनके सिपहसालार,उनका कैडर क्या कुछ गुल खिलाता है ये देखने वाली बात होगी।