किसी चैनल पर ज़रई ( खेती, किसानी से संबंधित ) प्रोग्राम मे इस मौजू पर कुछ देख रहे थे कि एक फोन आया। हालाँकि अंजान नंबर से बात करने की रिवायत नहीं है फिर भी उनसे गुफ़्तगू का आगाज़ हुआ और उन्होंने बोला।”प्रणाम बंधुवर, मै राष्ट्रवादी सुदर्शन न्यूज़ से बोल रहा हूँ, आज पाकिस्तान के विषय पर विशेष कार्यक्रम है जिसमे आपसे अनुग्रह है कि अपना बहुमूल्य समय दे क्योकि सभी सम्पर्क सूत्रों ने आपका ही नाम सुझाया है”अचानक अंदर से ज़मीर ने आवाज़ दी कि माहे रमज़ान मे झूठी अना रखने से भी रोजा टूट जाता हैं और नाचीज बन्दे तेरी औकात क्या है ? पहली बार बिना उज़रत लिए अपनी खिदमात पेश कर दी, तय वक्त पर स्टूडियो से जोड़ दिये गये, लाइव प्रोग्राम का आगाज़ हो गया,अल्लाह से बड़ा कारसाज कौन, बाकी मेहमानो से राब्ता सही नहीं हो पा रहा कि उनकी आवाज़ स्टूडियो तक सुनाई नहीं दे रही थी ( शायद इंटरनेट कमजोर होगा )कुल मिलाकर 20 मिनिट तक हमे ही ताज्जिया करना पड़ा और हमारी मजबूरी थी कि हमे देहलवी ( उर्दू ) बोलने मे सहूलियत महसूस होती है।अहसास तो हो रहा था कि एडिटर साहब को कुछ तकलीफ है मगर उसकी भी मजबूरी थी वैसे कोई हिन्दी नाम वाला सड़क पार जैसी उर्दू बोले और उसको बुलवाने के अलावा कोई दिगर रास्ता भी ना हो तो कोई क्या करे ?बाद में हमारी अहलिया साहिबा ने फरमाया कि इस चैनल ने तो हल्दीराम के पैकेट पर हंगामा खडा किया हुआ है आइंदा आपका नाम भी नहीं लेगा ।
हम क्या कर सकते हैं जी ।
इज्जत या जिल्लत अल्लाह के हाथ में है। जो अता फरमाए उसी मे हमारी भलाई होगी।
बिना मिट्टी के धनियां और मिर्ची कैसे उगाएं ?
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