♦संतोष सिंह
हाजीपुर के तेरसिया में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के फार्म हाउस पर वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव कार्यक्रम की सफलता के बहाने आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के दौरान यह साफ हो गया कि बिहार बीजेपी का निजाम बदल गया है लेकिन यह ताज नित्यानंद राय के लिए कांटों से भरा ताज है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
वर्षो बरस बाद यह पहला मौका है जब बीजेपी का कोई कार्यक्रम पार्टी कार्यालय और सुशील मोदी के आवास के बाहर आयोजित हुआ है हालांकि पहले दिन पार्टी के संगठन महामंत्री भीखू भाई दलसानिया ने कहा था कि यह कार्यक्रम पार्टी का कार्यक्रम नहीं है यह कार्यक्रम नित्यानंद राय जी द्वारा आयोजित है, लेकिन तीसरे दिन आते आते पार्टी के विधायक ,विधान पार्षद,सांसद ,पूर्व विधायक पूर्व विधान पार्षद और पार्टी के पदाधिकारियों को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के फार्म हाउस पर आना है इसकी सूचना आधिकारिक रूप से पार्टी द्वारा दिया गया ऐसा कई विधायकों का कहना है।वैसे भी जिस तरीके से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तीनों दिन मौजूद रहे और संगठन महामंत्री दो दिन पूरे कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहे उससे साफ लग रहा था कि नित्यानंद राय का कद काफी बढ़ गया है और बिहार बीजेपी की कमान नित्यानंद के हाथों में आ गयी है । जितने विधायक और सांसद भोज में शामिल होने आये थे उसमें ऐसे विधायक और सांसद की सक्रियता बढ़ी हुई थी जो नीतीश और सुशील मोदी के चहेते नहीं रहे हैं हालांकि ऐसे विधायक भी आये थे जो सुशील मोदी के खासमखास माने जाते थे। भोज के दौरान विधायक और पार्टी के पदाधिकारियों का जो भाव था उससे भी साफ दिख रहा था कि नित्यानंद राय का कद बिहार बीजेपी में नम्बर वन का हो गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस तरीके से केंद्रीय नेतृत्व नित्यानंद राय को तवज्जो दे रहा है उसके पीछे मंशा क्या है।
1:नित्यानंद की अघोषित ताजपोशी के पीछे अमित शाह की मंशा क्या है
बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की यह लगातार कोशिश जारी है कि बिहार बीजेपी का कमान नित्यानंद राय के हाथों में आ जाये। इसके लिए पहले सुशील मोदी को बिहार से हटाया गया फिर पार्टी के महामंत्री नागेन्द्र जी को हटाया गया और उनकी जगह सीधे गुजरात से लाकर भीखू भाई दलसानिया को पार्टी का संगठन मंत्री बनाया गया फिर भी बिहार बीजेपी के अंदर मोदी की ही चलती रही लेकिन वीर कुंवर सिंह विजयोत्सव कार्यक्रम के दौरान जिस तरीके से नित्यानंद राय को आगे बढ़ा कर केन्द्रीय नेतृत्व ने साफ संदेश दिया कि नित्यानंद बिहार में मोदी और शाह की पसंद है हालांकि इसका असर दिखने भी लगा है बिहार बीजेपी के अंदर मोदी के खिलाफ जो लोग थे वो रातो रात नित्यानंद के साथ खड़ा हो गये हैं वही नीतीश कुमार के कार्यशैली से बीजेपी के जो विधायक असहज है वो भी इस खेमे में आ गये हैं।
पहली चुनौती है नीतीश को साथ रखना दूसरी चुनौती है लालू को काउंटर करना और तीसरी चुनौती है राष्ट्रपति के चुनाव में नीतीश पिछले दो चुनाव की तरह अलग स्टैंड ना लें इन तीनों चुनौती को साधने में अगर नित्यानंद राय सफल रहे तो फिर बिहार बीजेपी का एक नये युग में प्रवेश तय है ।
2:सुशील मोदी कैलाशपति मिश्र नहीं हैं।
सुशील मोदी बिहार की राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाते हैं आज भी सुशील मोदी ही बीजेपी के ऐसे नेता हैं जिन्हें बगहा से लेकर किशनगंज तक और जमुई से लेकर औरंगाबाद तक पार्टी का कौन कार्यकर्ता है और उस कार्यकर्ता की क्या हैसियत है फिर विधानसभा में किस तरह का जातीय और सामाजिक समीकरण है मोदी को छोड़कर बीजेपी में किसी भी नेता को पता नहीं है साथ ही प्रशासनिक समझ के मामले में बिहार बीजेपी में इनका जोड़ा नहीं है इसलिए इनसे सीधे सीधे पंगा लेना अभी भी मुश्किल है।
वही जब तक बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और लालू की पकड़ मजबूत रहेंगी तब तक सुशील मोदी को बिहार से हिलाना बहुत ही मुश्किल है क्यों कि तीनों के बीच गजब का सामंजस्य है और ये बात बिहार की राजनीति के माहिर से माहिर खेलाड़ी को पता है इसलिए मोदी और शाह की यह कोशिश बहुत जल्द रंग लाने लगेगी ऐसा होता नहीं दिख रहा है ।क्यों कि जब तक बिहार में एनडीए का कमान नीतीश कुमार के हाथों में है तब तक बहुत मुश्किल है बिहार में सुशील मोदी को छोड़ कर दूसरे नेता को स्थापित होना।
3:नीतीश को बिहार से बाहर किये बगैर शाह और मोदी के लिए बिहार सहज नहीं है।
मोदी और शाह 2015 में बिहार को अजमा चुके हैं उन्हें पता है कि बिहार को साधना कितना मुश्किल है फिर भी उनकी कोशिश जारी है और इसी कड़ी में नित्यानंद का बिहार में स्थापित करने कि कोशिश चल रही है। लेकिन यह तभी सम्भव है जब नीतीश कुमार बिहार से बाहर चले जाये जानकार बता रहे हैं कि मीडिया में नीतीश कुमार के उप राष्ट्रपति बनने को लेकर जो खबरें चली थी वो पूरी तौर पर प्रायोजित था ताकि नीतीश दबाव में आ सके वैसे नीतीश राष्ट्रपति के अलावा किसी दूसरे पद के लिए बिहार छोड़ दे ऐसा सम्भव नहीं है। ऐसे में मई ,जून और जुलाई बिहार की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण है लालू पटना आ रहे हैं ,राज्यसभा और राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है ऐसे में बिहार बीजेपी के सामने बहुत बड़ी चुनौती है ।
पहली चुनौती है नीतीश को साथ रखना दूसरी चुनौती है लालू को काउंटर करना और तीसरी चुनौती है राष्ट्रपति के चुनाव में नीतीश पिछले दो चुनाव की तरह अलग स्टैंड ना लें इन तीनों चुनौती को साधने में अगर नित्यानंद राय सफल रहे तो फिर बिहार बीजेपी का एक नये युग में प्रवेश तय है ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)