- मृतक मजदूरों के परिजन को 20 लाख व घायलों को 5 लाख मुआवजा दे सरकार -ऐक्टू
- घायल मज़दूरों में सिवान व भागलपुर के मजदूर शामिल।
- 200 से अधिक मज़दूरों के कार्यस्थल वाले फैक्ट्री में अंदर-बाहर जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था जो कारखाना अधिनियम 1948 के नियम विरुद्ध है- ऐक्टू
- उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को मजदूरों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
- ऐक्टू दिल्ली इकाई की जांच रिपोर्ट में श्रम कानून के खुला उलंघन का खुलासा,दोषी दिल्ली सरकार जवाब दे।
नई दिल्ली:दिल्ली मुंडका अग्निकांड दुर्घटना नही बल्कि अत्यधिक मुनाफे के लिए श्रम कानूनों के खुले उलंघन के कारण 27 से ज्यादा मजदूरों की सांस्थानिक हत्या का उदाहरण है। इस सांस्थानिक अग्निकांड के लिए मौजूदा दिल्ली और केंद्र सरकार व श्रम विभाग समेत अन्य सरकारी एजेंसियां दोषी है जिन्होंने फैक्ट्री मालिकों से मिलनेवाले चंदे की लालच में मालिकों को मज़दूरों की हत्या की छूट दे रखी है।ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार ने उक्त आरोप लगाते हुए मुंडका अग्निकांड में मारे गए मजदूरों के प्रति गहरा शोक व संवेदना प्रकट किया और मजदूरों के सांस्थानिक हत्या की इस घटना के लिए केजरीवाल सरकार को जवाब देना होगा की बात कही।ऐक्टू ने मृतक मजदूरों के परिजन को 20 लाख व घायलों को 5 -5 लाख मुआवजा देने की मांग दिल्ली सरकार से किया है। ऐक्टू दिल्ली इकाई ने की घटना की जांच -मुंडका अग्निकांड मजदूरों की सांस्थानिक हत्या है इस बात का खुलासा ऐक्टू के दिल्ली राज्य सचिव सूर्यप्रकाश के नेतृत्व में घटनास्थल का जांच के बाद हुआ।
जांच दल ने घटनास्थल का मुआयना व अग्निकांड पीड़ित मजदूरों से मुलाकात के बाद पाया कि जिस इमारत में आग लगी, उसमें सीसीटीवी कैमरा, वाईफाई राऊटर इत्यादि का उत्पादन होता था और घायल मज़दूरों ने जांच दल को बताया कि 200 से अधिक मज़दूर उक्त स्थल पर कार्यरत थे।फैक्ट्री में अंदर-बाहर जाने के लिए केवल एक ही रास्ता था जो कि कारखाना अधिनियम, 1948 के नियमों के विरुद्ध है।कार्यस्थल से बाहर जानेवाले रास्ते मे गत्ते-प्लास्टिक इत्यादि सामान भरा होने के चलते भी मज़दूर बाहर नही निकल सके। गर्मी और धुआँ काफी ज्यादा होने के कारण दूसरी मंजिल से कई मज़दूरों ने छलांग लगा दी, जिससे 27 से ज्यादा की मौत और कई लोगों को गहरी चोट लगी।घायल मज़दूरों मे से कुछ बिहार के सिवान जिले व कुछ भागलपुर के रहने वाले है।
जांच दल ने अग्निकांडों के लिए मौजूदा दिल्ली और केंद्र सरकार और श्रम विभाग समेत अन्य सरकारी एजेंसियों को दोषी मानते हुए बताया कि फैक्ट्री मालिकों से मिलनेवाले चंदे की लालच में सरकार ने मालिकों को मज़दूरों की हत्या की छूट दे रखी है।फैक्ट्री के अंदर किसी भी श्रम कानून को नही माना जा रहा था, 12 घण्टे के काम के लिए पुरुषों को 9000 व महिलाओं को प्रतिमाह 7500 के रेट से भुगतान किया जा रहा था – जो कि दिल्ली में लागू न्यूनतम मजदूरी की दर से काफी कम है। किसी भी मज़दूर के पास संस्थान का आई-कार्ड नही था, फैक्ट्री के अंदर ईएसआई व पीएफ लागू नही था।घटनास्थल पर पहुंचे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को ट्रेड यूनियनों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।