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अग्निपथ/अग्निवीर योजना सेना में आई कैसे ? कौन लाया ? कब लाया ?

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पता चला कि मूल रूप से इस योजना को टूर ऑफ ड्यूटी के नाम से लाया गया था 2020 में सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे जी ने बड़े लाइटर मूड में पहली बार इस बात को सामने रखा।उनका कहना था कि वह जब स्कूल कॉलेज के बच्चो से मिले तो उन्हे फीडबैक मिला कि बच्चे बिना स्थाई कमीशन लिए सेना के जीवन का अनुभव लेना चाहते है।यही से टूर ऑफ ड्यूटी की शुरुआत हुई।जब पहली बार टूर ऑफ ड्यूटी का विचार सामने आया था तभी क्लियर कर दिया गया था कि अग्निवीरो को सेना में ट्रेनिंग के दौरान कॉरपोरेट जगत के लिए भी तैयार किया जाएगा।2020 में आनंद महिंद्रा ने खत लिखकर कर इस बात के लिए सेना की प्रशंसा भी की थी। इसलिए अभी के आनंद महिंद्रा के ट्वीट पर ज्यादा आश्चर्य मत जताइए ?

भारतीय सेना को लिखे ईमेल में महिंद्रा ने लिखा
‘मुझे हाल ही में पता चला कि भारतीय सेना ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ संबंधी नए प्रस्ताव पर विचार कर रही है। इसके तहत युवाओं, फिट नागरिकों को स्वैच्छिक आधार पर सेना के साथ बतौर जवान या अफसर के तौर पर जुड़कर ऑपरेशनल एक्सपिरियंस लेने का मौका मिलेगा।”मुझे पूरा यकीन है कि ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के तौर पर मिलिटरी ट्रेनिंग के बाद जब वे कार्यस्थल पर आएंगे तो यह बहुत फायदेमंद साबित होगा। भारतीय सेना में चयन और ट्रेनिंग के सख्त मानकों के मद्देनजर मिलिटरी ट्रेनिंग लेने वाले युवाओं को महिंद्रा ग्रुप नौकरी देने पर विचार करेगा।’

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राजनीतिक नेतृत्व इस योजना को लेकर खासा उत्सुक था
सूत्रों ने कहा कि आने वाले समय में बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होने की क्षमता को देखते हुए भारत का राजनीतिक नेतृत्व इस योजना को लेकर खासा उत्सुक है, इसलिए इसकी रूपरेखा तैयार करने पर जोर दे रहा है। उन्होंने कहा कि अगले कुछ वर्षों में योजना का इस तरह विस्तार करने का विचार है कि कुल सैन्य बल की 40 प्रतिशत भर्ती इसके माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सके।हालांकि, सैन्य सूत्रों ने बताया था कि योजना लागू करने पर अभी कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है और विचार-विमर्श की प्रक्रिया ही चल रही है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने इस साल के शुरुआत में कहा था कि ये अवधारणा अभी आरंभिक चरण में है और इस पर अध्ययन की जरूरत है कि यह कितनी व्यावहारिक होगी। पहले बैच में 100 अधिकारियों और 1,000 अन्य रैंक के कर्मियों को शामिल किए जाने की संभावना है। इस पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर ही मॉडल का मूल्यांकन और परीक्षण किया जाएगा।सेना ने मई में भर्ती के लिए ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ मॉडल का प्रस्ताव रखा था, जो युवाओं को तीन वर्ष के लिए स्वेच्छा से अस्थायी तौर पर सेना में शामिल होने का मौका देगा। इसका उद्देश्य सेना में भर्ती के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करना, अधिकारियों की रिक्तियां भरना और अंतत: रक्षा पेंशन का बोझ घटाना है, जो ‘वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना लागू होने के बाद बढ़कर रक्षा बजट का लगभग 30 प्रतिशत हो गया है।
आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की कोई खास दिलचस्पी इस योजना में नही थी।2020 की अमर उजाला की एक लिंक हमे बताती है कि बिपिन रावत ने कहा था कि टूर ऑफ ड्यूटी की अवधारणा अभी आरंभिक चरण में है और इस पर अध्ययन की जरूरत है कि यह कितनी व्यावहारिक होगी। पहले बैच में 100 अधिकारियों और 1,000 अन्य रैंक के कर्मियों को शामिल किए जाने की संभावना है। इस पायलट प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर ही मॉडल का मूल्यांकन और परीक्षण किया जाएगा।’

 

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इसी के साथ CDS जनरल बिपिन रावत का एक बयान का वीडियो भी है जो 2018 का है। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि ‘अक्सर मेरे पास नौजवान आते हैं कि सर, मुझे भारतीय सेना में नौकरी चाहिए. मैं उन्हें बोलता हूं कि भारतीय सेना नौकरी का साधन नहीं है. नौकरी लेनी है तो रेलवे में जाइए, पीएनटी में जाइए, अपना खुद का बिजनेस खोल लीजिए। रावत कहते थे कि सेना नौकरी का जरिया नहीं है। उनका कहना था कि अगर भारतीय सेना में आना है तो कठिनाइयों का सामना करने के लिए आपको काबिल होना पड़ेगा, आपको शारीरिक और मानसिक रूप से काबिल होना पड़ेगा। भारतीय सेना जज्बा है देश सेवा और मातृभूमि की रक्षा का। आपका हौंसला बुलंद होना चाहिए. आपमें कठिन से कठिन समस्याओं से निपटने की ताकत होनी चाहिए।’इस बयान से जनरल बिपिन रावत की विचारधारा स्पष्ट हो जाती हैं अफसोस इस योजना पर उठते सवालों का जवाब देने के लिए बिपिन रावत आज हमारे बीच मौजूद नहीं है।बेहद संदिग्ध परिस्थितियों में Mi-17 हेलीकॉप्टर दुर्घटना में दिसम्बर 2021 में जनरल बिपिन रावत , उनकी पत्नी और अन्य 11 लोगों की मृत्यु हो गई।दुनिया के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले Mi-17 हेलीकॉप्टर से हुई इस दुर्घटना पर कई सवाल उठे पर सब पर धूल डाल दी गई।

पेंशन घटाने का सुझाव
रक्षा पेंशन बिल घटाने के लिए सीडीएस रावत की अध्यक्षता वाले सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) ने प्रस्ताव दिया था कि 20-25 वर्षों की सेवा के साथ पीएमआर (समयपूर्व सेवानिवृत्ति) लेने वाले अब मौजूदा पेंशन के केवल 50 प्रतिशत के हकदार होंगे। अब तक, नियमानुसार अधिकारियों को आखिरी में उठाए गए अपने वेतन के 50 फीसदी के बराबर पेंशन मिलेगी जिसके लिए उन्हें 20 साल की सेवा पूरी करनी होगी। टूर ऑफ ड्यूटी के मूल प्रस्ताव में कहा गया है कि योजना के तहत भर्ती किए जाने वाले हर एक अधिकारी पर कुल 80-85 लाख रुपये की राशि खर्च होगी, जिसमें कमीशन पूर्व प्रशिक्षण, वेतन, भत्ते, ग्रेच्युटी, प्रस्तावित सेवेरेंस पैकेज, छुट्टियों के बदले भुगतान, और अन्य व्यय शामिल हैं। अभी एसएससी अधिकारी पर 5.12 करोड़ रुपये की राशि व्यय की जाती है, जो 10 साल बाद सेवानिवृत्त होता है, और 14 साल बाद सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारी पर 6.83 करोड़ रुपये खर्च आता है। प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे केवल 1,000 जवानों को तैयार करने पर ही 11,000 करोड़ की बचत हो सकती है और इस राशि को सेना के आधुनिकीकरण पर लगाया जा सकता है। अधिकारी ने कहा, ‘सेना के लगभग 65,000 कर्मचारी हर साल सेवानिवृत्त होते हैं। इस पर विचार किया जा रहा है कि इस योजना के तहत कुछ निश्चित संख्या में कर्मियों की भर्ती की जाए और यह संख्या सशस्त्र बलों में एक तय प्रतिशत पर पहुंचने तक हर साल लगातार बढ़ाई जाती रहे। अधिकारी ने कहा कि इस तरह से बड़े पैमाने पर भर्ती में लगभग 15 वर्षों का समय लग सकता है।

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