महाराष्ट्र विधानसभा में कुल विधायकों की संख्या 288 है। मौजूदा समय में शिवसेना के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से गठबंधन की सरकार चल रही है। अभी तक ठाकरे सरकार को खतरा नहीं था, लेकिन 20 जून को महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव में 134 विधायकों के वोट हासिल करने के बाद भाजपा अब महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने में जुट गई है। 288 में से एक विधायक की मृत्यु हो चुकी है, जबकि एनसीपी के नवाब मलिक और अनिल देशमुख भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं। जेल में होने के कारण यह दोनों विधायक 20 जून को भी विधान परिषद के चुनाव में वोट डालने के लिए नहीं आ सके। अब जब शिवसेना के मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 13 विधायक भाजपा शासित गुजरात के सूरत शहर की होटल में आकर बंद हो गए हैं, तब यह माना जा रहा है कि अब 270 विधायकों में ही बहुमत साबित करना होगा। चूंकि विधान परिषद के चुनाव में 105 विधायकों वाली भाजपा ने 134 वोट हासिल कर लिए हैं, इसलिए भाजपा को लगता है कि उद्धव सरकार के गिर जाने पर अपना बहुमत साबित कर देगी। शिवसेना में जिन विधायकों ने बगावत की है उन्हें भरोसा दिलाया गया है कि इस्तीफे के बाद भी विधायीकी सुख सुविधा बनी रहेगी। राज्यपाल को 13 व्यक्ति को विधान परिषद में सदस्य नियुक्त करने का अधिकार है। ऐसे में एकनाथ शिंदे वाले सभी 13 विधायकों को विधान परिषद का सदस्य बना दिया जाएगा। बाद में जब सरकार बनेगी तो उन्हें मंत्री पद भी दिया जा सकता है। यानी भाजपा ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने की तैयारी कर ली है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में बगावत का असली कारण विचारधारा का है। शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को लगता है कि शिवसेना अपनी हिन्दुत्ववादी छवि से बदल रही है।
चूंकि उद्धव ठाकरे को एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से सरकार चलानी पड़ रही है, इसलिए कई अवसरों पर हिंदुत्व की विचारधारा को पीछे धकेल दिया जाता है। शिंदे और उनके समर्थक विधायकों को लगता है कि इससे जनता के बीच समर्थन कम हो रहा है, जबकि इसका फायदा भाजपा को लगातार मिल रहा है। विधान परिषद के चुनाव में भाजपा ने पांच उम्मीदवार खड़े किए और ये पांचों जीत गए। भाजपा को निर्दलीय और छोटे दलों के विधायकों का भी समर्थन मिला। महाराष्ट्र में यदि शिवसेना के 13 विधायक इस्तीफा देते हैं तो फिर राष्ट्रपति के चुनाव में भी इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा के लिए राष्ट्रपति चुनाव और आसान हो जाएगा। इस बीच पूर्व भाजपा नेता और मौजूदा समय में टीएमसी के सांसद यशवंत सिन्हा ने संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार बनना स्वीकार कर लिया है। सिन्हा ने टीएमसी के सांसद पद से भी इस्तीफा दे दिया है ताकि किसी विपक्षी दल को उनकी उम्मीदवारी को लेकर एतराज न हो।
सूत्रों की माने तो ममता बनर्जी ने ही यशवंत सिन्हा का नाम प्रस्तावित किया। 21 जून को दिल्ली में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के निवास पर हुई विपक्षी दलों की बैठक में यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति जताई गई। राष्ट्रपति चुनाव की गतिविधियों के दौरान ही महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार चलाने में शरद पवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब भी ऐसा संकट आता है, तब पवार ही संकटमोचक की भूमिका निभाते हैं। पहले एनसीपी में बगावत हुई थी, लेकिन इस बार शिवसेना में बगावत हुई है। एनसीपी की बगावत को तो शरद पवार ने थाम लिया था, लेकिन जानकारों का मानना है कि शिवसेना की बगावत को थामने में पवार सफल नहीं होंगे। शिवसेना में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के व्यवहार से भी विधायकों में काफी नाराजगी है। विधान परिषद के चुनाव में भी कांग्रेस में फूट देखने को मिली। ताजा सियासी संकट में कांग्रेस के विधायक इधर उधर न भागे इसके लिए सभी विधायकों को दिल्ली बुलाया गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दिल्ली में ही हैं। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के विधायकों को दिल्ली के बाद जयपुर लाया जाएगा।