संजीव चन्दन
पराजित नायकों को सही सम्मान लोक में मिलता है, राजनीति चाहे उन्हें उनका प्रतिदान न दे। उद्धव ठाकरे की पांच पीढ़ी पहले, यानी उनके दादा जी के दादा ने महाराष्ट्र में ब्राह्मणों से लोहा लेते हुए दलित बच्चों को स्कूल में दाखिले की लड़ाई लड़ी थी। उनके दादा प्रबोधनकार ठाकरे हिंदुत्व के खिलाफ बड़े क्रूसेडर थे। लेकिन मराठी अस्मिता के नाम पर अपने बेटे बाला साहेब ठाकरे के साथ खड़े रहे, जिन्होंने बाद में हिंदुत्व की लाइन ले ली। पिता द्वारा हिंदुत्व की राजनीति की मिली विरासत के जरिये ही सत्ता हासिल करने और सत्ता में रहने को मजबूर उद्धव ठाकरे, एक विनम्र फोटोग्राफर अपनी विनम्रता से भी लोगों का, अधिकारियों का दिल जीतता रहा है। हिंदुत्व मजबूरी है, हिंदुत्व सियासत है इसलिए धर्मनिरपेक्ष दलों की सवारी करते हुए भी उद्धव ‘रामलला’ से अपना नाता जोड़ते रहते हैं। उद्धव ठाकरे की सिंधुताई सपकाल से एक टेलीफोन बातचीत सुनी थी। सिंधुताई को जब उद्धव ने बताया कि ‘मैं उद्धव बोल रहा हूँ’ तो उन्होंने पलट कर कहा, ‘हाँ रे बेटा, बाला साहेब का पिल्ला (छोटे बच्चे के लिए प्यारा सम्बोधन) और उद्धव ने उसपर बड़ी सादगी से प्रसन्न प्रतिक्रिया दी, ‘ हौ-हौ’
एक शांत व्यक्तित्व का धनी और अनिच्छुक राजनेता, जो फोटोग्राफर था, शातिर राजनीति का ही शिकार नहीं होगा, हो रहा है, वह अपने पिता की अवसरवादी राजनीति की विरासत से भी तंग होगा, हो रहा है। वह चाहकर भी बाला साहेब की विरासत से खुद को विलग कर शिवसेना को न तो सत्ता में बनाये रख सकता है और न ही शिवसेना की राजनीति में जीवित रह सकता है। पिता का प्रेत उसके सामने है। जिसके डंडे से उसके ही विधायक उसे पीट रहे हैं। वे विधायक जिन्हें केंद्रीय सत्ता अपनी एजेंसियों से डरा रही है और प्रलोभन भी दे रही है।
शिवसेना के वे विधायक जो उनके बागी नेता एकनाथ शिंदे के साथ पहले सूरत और अब गुवाहाटी में हैं उनमें से दो के खिलाफ ईडी की कार्रवाई हो रही। एक बागी विधायक ने नागपुर लौटकर गुजरात पुलिस पर अपने टॉर्चर का आरोप लगया।
दूसरी ओर 25 जून को पिछली सरकार द्वारा कथित फोन टेप मामले की जांच मामले में चार्जशीट दाखिल होने जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री पर भी उँगलियाँ उठ रही हैं। तो क्या इस बार ऑपरेशन लोटस का रहस्य केंद्र की सत्ता का खुला खेल है ? क्या राज्य बीजेपी की प्रतिष्ठा बचाने का भी यह खेल है ? क्या उद्धव ठाकरे की सरकार को गिराने की यह तीसरी कोशिश कामयाब होगी? उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा न देकर एक भावुक अपील की है। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।