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आपको कितने लोग पहचानते हैं ?

आपको कितने लोग पहचानते हैं, ये वह सवाल है जिसका सही जवाब देने के लिए मनुष्य क्या-क्या नहीं करता। मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उसे पहचाने। ज्यादा से ज्यादा लोग उसके बारे में जाने। अपने आसपास और दूर तक लोग उसका चर्चा करें।ये वो सवाल है जिसकी खातिर लोग अपनों से बड़े पैसे वालों,पहुंच वालों और रसूखदार लोगों के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं ताकि उनकी इमेज और व्यक्तित्व बड़ा हो जाए जिससे लोग उन्हें पहचानने लगे। अपनी इसी पहचान को बड़ा बनाने के लिए लोग न जाने क्या-क्या करते हैं। जब बचपन होता है तो पढ़ लिख कर बड़ा बनने की कोशिश करते हैं ताकि ज्यादा लोग पहचान सके ज्यादा लोगों के बीच पहचान बन सके। जब जवानी आती है तो ऊंचे से ऊंचे पद हासिल करके पहचान बनाने की कोशिश की जाती है। पद हासिल होने के बाद बेहतर से बेहतर काम करके अपनी पहचान बनाने की कोशिश की जाती है। यह वह चीज है जिसकी खातिर मनुष्य दिन रात कोशिशों में लगा रहता है। एक मनुष्य जब पढ़ लिख कर नौकरी करके और पैसा कमाने के बाद एक मुकाम हासिल कर लेता है फिर भी वह अपनी पहचान बढ़ाने में ही व्यस्त रहता है। यह वह वक्त होता है जब मनुष्य को लगता है कि हमारी पहचान बड़ी होगी तो हमारी औलाद को लोग हमारे नाम से जानेंगे और उनकी पहचान बनेगी। दरअसल पहचान एक लत का नाम है जिसमें मनुष्य अपनी जिंदगी गुज़ार देता है। ऐसे में लोग आपको किस कारण से पहचानते हैं ये मायने रखता है। आज हम इसी विषय पर बात करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर वह कौन से आधार हैं जिसके बल पर एक मनुष्य अपनी पहचान बना सकता है।

लोग आपको आपके कर्म से पहचानते हैं
जीवन को खुशहाल बनाने के लिए धन एकत्रित करने के स्थान पर नेक कर्म करने चाहिएं। कर्म मनुष्य को जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। अच्छे कर्मों का परिणाम भी अच्छा होता है। मनुष्य के कर्म ही उसकी पहचान होते हैं। मनुष्य को ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे उसके जाने के बाद भी उसका नाम जिवित रहे।जीवन को खुशहाल बनाने के लिए धन एकत्रित करने के स्थान पर नेक कर्म करने चाहिएं। कर्म मनुष्य को जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। अच्छे कर्मों का परिणाम भी अच्छा होता है। मनुष्य के कर्म ही उसकी पहचान होते हैं। मनुष्य को ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे उसके जाने के बाद भी उसका नाम जिवित रहे।

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अच्छे व्यवहार से आपकी पहचान बनती है
जब हम किसी और से इस बात की आशा करते हैं कि वह अच्छा आचरण करें, तो हमें भी अपने बर्ताव का ध्यान रखना चाहिए, यह जरूरी नहीं कि मुक्के का जवाब मुक्का ही हो। अच्छा आचरण वह है जिसमें बुरी स्थितियों को अच्छे एवं सुन्दर तरीके से पेश किया जाए। दूसरों से हम कैसा व्यवहार करते हैं चाहे स्थिति विपरीत ही क्यों न हो, हमें उत्तेजित या शान्त, भ्रष्ट या ईमानदार, बर्बर या सभ्य बना सकता है। अच्छी आदतें, अच्छे मित्रों की तरह होती हैं जो आपको सुखद स्थिति में ले जाते हैं,  यदि आपका आचरण अच्छा है तो यह तुरन्त दृष्टिगोचर हो जाता है। सभ्य होने का कोई मूल्य नहीं चुकाना पड़ता अलबत्ता यह आपको कुछ प्राप्त करवाता है। यह बात शंंका से परे है कि हम सभी में किसी न किसी गुण की कमी होती है, और इसी कारण ज्ञान का गुणगान करते हैं और इसके महत्व को समझते हैं।असभ्य व्यवहार प्रत्येक को नापसंद होता है। किसी के प्रति हमारी पहली राय उसके आचरण पर ही आधारित होती है। अच्छी आदतें अच्छे रिश्तों को कायम करने के आधार हैं। हमारे समाज में संपर्क का खासा महत्व है और आप तभी सम्मानित किए जाएंगे जब आप दूसरों के प्रति सम्मान व्यक्त करेंगे। यह एक पुराना मगर अत्यन्त उपयोगी सिद्धान्त है आपको जैसा व्यवहार चाहिए वैसा ही व्यवहार आप दूसरों के प्रति करें।

उत्तम चरित्र आवश्यक
समाज में व्यक्तिगत पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और परिस्थिति ही हर व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है। इन सबका संतुलन सही हो, तो चरित्र भी अच्छा बनता है और इनका संतुलन जरा सा गड़बड़ाते ही चरित्र भी गड़बड़ा जाता है। चरित्र भी एक व्यापक चीज है, हालांकि लोग अक्सर इसे बहुत संकुचित अर्थ और दायरे में देखते हैं। किसी का जो भी व्यक्तित्व होता है, उसे बनाने में उसके चरित्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसके विपरीत अक्सर संभव नहीं होता। यानी, यह जरूरी नहीं कि अच्छे व्यक्तित्व वाले किसी व्यक्ति का चरित्र भी अच्छा हो। मगर चरित्र अच्छा होने पर व्यक्तित्व निश्चय ही बहुत अच्छा होगा।

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उत्तम व्यक्तित्व से पहचान बनती है
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हैं, जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों और विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है। व्यक्तित्व एक स्थिर अवस्था न होकर एक गतिशील स्थिति है, जिस पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है। इसी कारण से उसमें बदलाव आ सकता है।मनुष्य के व्यक्तित्व की पहचान उसके बातचीत करने के ढंग से होती है। भले ही कोई व्यक्ति कितना ही सुंदर हो, परंतु वाणी में कर्कशता या रूखापन हो, तो वह कभी किसी को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता।

निष्कर्ष
इसलिए ही कहा गया है कि चाल, चरित्र और कर्म को उत्तम और मूल्यवान बनाइये,इनको उत्तम दर्जे का बनाइए,आपकी पहचान आपके क़दम चूमेगी।

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