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अग्रसेन बावड़ी के भूत

ध्रुव गुप्त

दिल्ली में कनाट प्लेस के पास हेली रोड पर स्थित अग्रसेन की बावड़ी ऐतिहासिकता के साथ अपनी रहस्यमयता और इससे जुडी भुतहा कहानियों के लिए भी जानी जाती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित इस बावड़ी के बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल में एक सौ चार सीढ़ियों वाली यह बावड़ी नगर को जल की आपूर्ति के उद्देश्य से राजा अग्रसेन द्वारा बनवायी गई थी। चौदहवी सदी में अग्रवाल समुदाय द्वारा इसका पुनर्निर्माण हुआ था। तीन स्तरों के इस धनुषाकार बावड़ी के चारो तरफ बने चैम्बर्स और गैलरियों की नक्काशी भव्य और देखने लायक है। बावड़ी के अन्दर का पानी तो धीरे-धीरे काला पड़कर सूख गया, लेकिन कालांतर में कई रोमांचक और रहस्यमय कहानियां इससे जुड़ती चली गई। ज्यादातर लोग इसे बुरी आत्माओं और भूतों का घर मानते हैं। कहते हैं कि कई लोगों को बावड़ी में मौज़ूद भूतों ने इस क़दर सम्मोहित कर दिया कि उन्होंने इसमें कूदकर आत्महत्या तक कर ली। इन प्रेत-कथाओं के कारण प्राचीन स्थापत्य कला के इस बेमिसाल नमूने को देखने कम ही लोग आते हैं। मुझे भूतहा कही जाने वाली जगहें पसंद हैं।

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उत्सुकतावश मैं पिछले कुछ सालों में कई-कई बार इस बावड़ी में गया। इसके रहस्यमय वातावरण में मुझे डर का नहीं, रोमांचक शांति का अनुभव हुआ। बावड़ी में आप जैसे-जैसे सीढियां उतरते जाएंगे, आपके पदचापों के अलावा सभी तरह की ध्वनियां गायब होती चली जाएगी। थोड़ा अंधेरा और सन्नाटा होने पर चमगादड़ों की आवाज़ें वहां एक रहस्यमय वातावरण की सृष्टि करती है। आप अकेले हैं और डर गए तो आपको अपने क़दमों की आहट में किसी प्रेत की पदचाप सुनाई दे सकती है। डर ज्यादा गहरा हुआ तो भूतों के दर्शन भी आपको हो सकते हैं। ये भूत वस्तुतः आपके भीतर के डर का ही प्रक्षेपण होते हैं। भूत-प्रेत अथवा अच्छी-बुरी आत्माएं कहीं बाहर नहीं, हमारे अपने भीतर ही होती हैं।अपने भीतर के डर या इस जगह के बारे में प्रचलित भ्रमों से मुक्त होकर कभी किसी एकांत शाम इसकी स्थापत्य-कला, इसकी वीरानी और स्तब्धकारी रहस्यमयता को देखने और महसूस करने के लिए जाईए ! यह एक बिल्कुल अलग तरह का अनुभव होगा।

(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं)

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