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लव लेटर

संजय सिन्हा
पत्नी दिल्ली में है और मैं जबलपुर में। मैंने उससे कहा था कि कोरियर से बैंक के कुछ कागज पर दस्तखत करके जबलपुर भेज देना। कोरियर वाला जो लिफाफा दे गया, उसमें बैंक के कागज से साथ था लव लेटर।
प्रेम की पहली शर्त होती है गोपनीयता। लेकिन मैंने तो अपने प्रेम को इतनी बार जग जाहिर किया है कि अब आपसे क्या छिपाना?
प्रेम की दूसरी शर्त भी होती है गोपनीयता। ऐसी गोपनीयता कि धीरे से किसी कान में बस कह भर देना होता है कि किसी को बताना नहीं। आप यही मान लीजिए कि संजय सिन्हा आज धीरे से आपसे कह रहे हैं कि आप इसे अपने तक ही रखिएगा, किसी को बताइएगा नहीं कि संजय सिन्हा की पत्नी ने दिल्ली से अपने पति को लव लेटर भेजा है और उसे संजय सिन्हा ने परिजनों को धीरे से बता दिया है। प्लीज़ इतना मान रखिएगा मेरे अनुरोध का। मैं पिछले तीन हफ्ते से जलबपुर में हूं। हालांकि पिछली बार से ये कम है, क्योंकि पिछले साल तो मैं लगातार छह महीने अकेला यहीं रह गया था। फिर पत्नी जबलपुर आई थी और मुझे साथ ले गई थी। लेकिन मुझे जैसे ही मौका मिला, मैं फिर उड़ आया जबलैपुर।आज नो इधर-उधर की बात। आज कहानी सिर्फ प्रेम की। प्रेम पत्र की।

 

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एक ज़माना था, जब फिल्मों की कहानी पूरे एक प्रेम पत्र के इर्द-गिर्द घूमती रह जाती थी। आज चिट्ठी का ज़माना नहीं रहा। आज तो व्हाट्सएप है। सेकेंड के हज़ारवें हिस्से में यहां से अमेरिका तक प्रेम का इज़हार हो जाता है। लेकिन फोन के उन संदेशों में भला कोई खुशबू होती है क्या? खुशबू तो होती है प्रेम पत्र में। जगजीत सिंह के गाए उस गज़ल को सुन कर मैं आज भी सोच में पड़ जाता हूं कि प्रेमी के सामने कितनी बड़ी मुश्किल आई होगी, जब प्रेमिका के पत्रों को वो चाह कर भी जला नहीं पाया और गंगा में बहा कर उसे आग बहते पानी में लगाने का गुनाह कबूल करना पड़ा। सोचिए उसकी पीड़ा।लव लेटर का एक लंबा इतिहास है। कहा जाता है कि जूलिएट रोमियो को चिट्ठी लिखती थी। आज भी जूलिएट की समाधि पर लोग लव लेटर छोड़ जाते हैं। माना जाता है कि वहां प्रेम चिट्ठी छोड़ जाने से उनका प्रेम सफल हो जाता है, जिन्हें प्रेम में नाकामी मिलती है।आप तो जानते हैं कि संजय सिन्हा प्रेम पर लिखने बैठ जाएं तो एक नहीं, कई किताबें लिख सकते हैं।
फिलहाल तो आप फिल्म सरस्वतीचंद्र का वो गाना आज सुनिएगा, जिसमें नायिका ने कागज उठाया था प्रियतम को खत लिखने के लिए। कुछ लिख नहीं पाई। बस बालों से एक फूल निकाल कर उसने प्रेम को बयां कर दिया। “फूल तुम्हें भेजा है खत में…”

 

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असल बात यही है। प्रेम में कुछ लिखा नहीं जा सकता है। प्रेम सिर्फ अहसास है। ये पूरी तरह भेजने वाले और पाने वाले की समझ पर निर्भर करने वाला फलसफा है। ये विज्ञान की फ्रिक्वेंसी है।प्रेम में कुछ लिखा नहीं जा सकता है, सिवाय ‘मिस यू’ के।कन्हैया वृंदावन से चल पड़े थे मथुरा। राधा पीछे-पीछे दौड़ती रहीं, बहुत दूर तक। उन्होंने कुछ कहा था क्या? कुछ नहीं। बस उद्धव गए थे तो राधा ने कह दिया था- मिसिंग कन्हैया। इससे अधिक कुछ नहीं।असल में प्रेम में बिना कहे जब कहा जाता है तो ज़्यादा कहा जाता है। और जब ज़्यादा कहा जाता है तो वो प्रेम नहीं रह जाता। वो चाहत हो जाती है। अब आप में से कुछ लोग सोच में पड़ जाएंगे कि चाहत और प्रेम में क्या अंतर है? संजय सिन्हा यहीं आपको बताएंगे कि एक प्रेम ‘लव’ है, चाहत ‘लस्ट’। एक में देना है, दूसरे में लेना। बहुत लोग इस अंतर को समझ कर भी नहीं समझना चाहते हैं। वैसे आपको प्रेम का एक और रहस्य समझा दूं। प्रेम समझने की चीज़ ही नहीं है। प्रेम सिर्फ जीने की चीज़ है। जिसने प्रेम को जीना सीख लिया, उसने जीवन जीना सीख लिया।और जो नहीं सीख पाए, उनके लिए यही कहना है कि वो आते रहेंगे, जाते रहेंगे। मन में कभी-कभी सवाल उठेगा कि आए क्यों? और फिर चले क्यों गए? प्रेम ही ईश्वर है। प्रेम ही मुक्ति

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