पटना:एक वक़्त था की मिथिला देश का सबसे इंडस्ट्रीयलाइज्ड एरिया हुआ करता था। लगभग हरेक जिले में कोई ना कोई औद्यौगिक मिल या संयंत्र था। कटिहार, किशनगंज, भागलपुर से लेकर मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, चंपारण तक चीनी मिल, जुट मिल, खाद मिल, पेपर मिल, सिल्क उद्योग, सुत उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का जाल बिछा हुआ था। लाखों लोगों को डायरेक्ट रोजगार के साथ साथ करोड़ों किसानों को फायदा पहुंचता था। मिथिला वाज वंस एन इंडस्ट्रीयल जोन, एक उत्पादक क्षेत्र हुआ करता था। हमारे यहां आने वाले ट्रक खाली आते थे और जाने वक्त औद्यौगिक उत्पादन से भर कर।
मिथिला स्टूडेंट यूनियन के आदित्य मोहन बताते हैं कि आज मिथिला लेबर जोन बन गया है।सारे मिल और उद्योग बंद हो चुके हैं।यहां आने वाले ट्रक आज भर कर आते हैं और जाते वक्त खाली। आज औद्यौगिक उत्पादन के नाम पर यहां कुछ भी नहीं उत्पादित होता है।लोग हजारों किलोमीटर मजदूरी करने जाने को मजबूर हैं। मिलें खंडहर हो चुकी हैं।मिथिला में रोजगार और उद्योग की अगाध संभावना है। सरकार ध्यान दे, रोजगार सृजन व औद्यौगिक विकास पर प्रयास करे तो मिथिला में पर्यटन, कृषि आधारित उद्योग, आइटी एंड टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री, कला – संस्कृति, सर्विस इंडस्ट्री से लाखों करोड़ों रोजगार पैदा किया का सकता है। मिथिला के लोग क्यों पलायन करें ? क्यों जनसाधारण के शौचालय में बैठकर हजारों किलोमीटर दूर जाने को मजबूर हें ? पुराने बंद पड़े चीनी मिलों, जुट मिलों, पेपर मिल, खाद मिल, सुत मिल, भागलपुरी सिल्क उद्योग आदि को पुनः चालू करवाया जा सकता है। आइटी एंड टेक्नोलॉजी पार्क, स्पेशल एजुकेशन जोन, टैक्सटाइल पार्क, स्पेशल इकनॉमिक जोन आदि बनाकर नए कम्पनियों को आमन्त्रित किया जा सकता है।