Nationalist Bharat
विविध

गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं …..

बात सन 1950 की है। मशहूर फ़िल्म लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास एक फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिख रहे थे।जब स्क्रिप्ट पूरी हो गई तो ख्वाजा अहमद अब्बास ने चाहा कि कोई बड़ा फ़िल्म निर्देशक इसे लेकर फ़िल्म बनाए। अब्बास स्क्रिप्ट लेकर मशहूर फ़िल्ममेकर महबूब खान(फ़िल्म मदर इंडिया के निर्देशक ) के पास पहुँचे।जब उन्होंने महबूब खान को स्क्रिप्ट सुनाई तो महबूब ने उसपे फ़िल्म बनाने से इंकार कर दिया। इसकी दो मुख्य वजहें थी। पहली ये कि जिस तरह की कहानी स्किप्ट में थी ,उस क़िस्म की फ़िल्म महबूब खान नहीं बनाते थे। दूसरी वजह ये थी कि महबूब खान फ़िल्म के मुख्य किरदारों को निभाने के लिए एक्टर अशोक कुमार और दिलीप कुमार को लेना चाहते थे। मगर ख्वाजा अहमद अब्बास इसके पक्ष में नहीं थे।फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखते वक़्त खवाजा अहमद अब्बास के ज़ेहन में सिर्फ़ राज कपूर साहब का चेहरा था।उन्होंने स्क्रिप्ट के मुख्य किरदार राज कपूर और उनके पिता पृथ्वीराज कपूर को ध्यान में रख कर लिखे थे। इस मतभेद के चलते ख्वाजा अहमद अब्बास ने महबूब खान से स्क्रिप्ट ली और वापस चले आए।उन्हीं दिनों, राज कपूर अपनी फ़िल्म “बरसात” की कामयाबी से बड़े उत्साहित थे। उनके मन में एक नई फ़िल्म शुरू करने की चाहत थी,जिसके लिए वह एक अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश कर रहे थे। इसी दौरान ख्वाजा अहमद अब्बास अपनी स्क्रिप्ट लेकर राज कपूर से मिलने पहुँचे। राज साहब ने जब कहानी सुनी तो वह बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास को भरोसा दिलाया की वह स्क्रिप्ट पर फ़िल्म ज़रूर बनाएँगे।

 

Advertisement

 

इसी दौरान एक शानदार वाकिया हुआ। राज कपूर ने अपने मित्र और मशहूर गीतकार शैलेन्द्र से कहा कि वह भी एक बार फ़िल्म की कहानी सुनें। राज कपूर, गीतकार शैलेन्द्र को लेकर लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास के घर पहुँचे। ख्वाजा अहमद अब्बास ने जब शैलेन्द्र को देखा तो कोई खास तवज्जो नहीं दी। शैलेन्द्र मामूली कपड़े पहने हुए थे और उनमें कुछ भी आकर्षित करने लायक नज़र नहीं आ रहा था। ख़ैर, ख्वाजा अहमद अब्बास ने फ़िल्म की कहानी सुनाई। जब कहानी ख़त्म हुई तो राज कपूर ने शैलेन्द्र से पूछा “क्यों कविराज, कहानी कैसी लगी ?। शैलेन्द्र बोले “कहानी बढ़िया है”। इस पर राज कपूर बोले “और क्या लगा ?।शैलेन्द्र ने जवाब दिया ” बेचारा गर्दिस में था मगर आसमान का तारा था,आवारा था। शैलेन्द्र ने पूरी कहानी को 1 लाइन में समेट कर प्रस्तुत कर दिया था। शैलेन्द्र की इस बात को सुनकर ख्वाजा अहमद अब्बास चौंके और उन्होंने राज कपूर से शैलेन्द्र के विषय में पूछा। तब राज कपूर ने ख्वाजा अहमद अब्बास से शैलेन्द्र का परिचय कराया और इसी के साथ यह तय हो गया कि राज कपूर ख्वाजा अहमद अब्बास की स्क्रिप्ट पर फ़िल्म शुरू करेंगे।फ़िल्म का नाम तय किया गया “आवारा”।

Advertisement

 

 

Advertisement

इसी फ़िल्म के साथ राज कपूर और ख्वाजा अहमद अब्बास की मशहूर जोड़ी की भी शुरुआत हुई। दोनों ने 30 सालों तक साथ काम किया। आवारा के साथ शुरू हुआ सफ़र मेरा नाम जोकर,बॉबी से गुज़रता हुआ फ़िल्म हिना तक पहुँचा।खैर, जब यह तय हो गया कि राज कपूर फ़िल्म को निर्देशित करेंगे और मुख्य भूमिका भी निभाएँगे,उस वक़्त एक बड़ी मुश्किल सभी के सामने आ गई। हुआ यूं कि जब राज कपूर सको यह मालूम हुआ कि फ़िल्म में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर भी काम करेंगे तो वो दुविधा में पड़ गए। इसकी वजह ये थी कि उस वक़्त पृथ्वीराज कपूर की नज़र में राज कपूर एक नौसिखिए अभिनेता थे। अब राज कपूर को फ़िल्म में अपने पिता पृथ्वीराज कपूर को डायरेक्ट करना था। यह काम करने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी। राज कपूर ने ख्वाजा अहमद अब्बास से कहा कि वही जाकर पृथ्वीराज कपूर साहब को स्क्रिप्ट सुनाएं और अगर वह फ़िल्म करने को तैयार हो जाते हैं, तभी वो फ़िल्म डायरेक्ट कर सकेंगे।

 

Advertisement

 

राज कपूर के कहने पर ख़्वाजा अहमद अब्बास और उनके साथी लेखक वी.पी.साठे स्क्रिप्ट लेकर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के पास पहुँचे। जब पृथ्वीराज कपूर ने स्क्रिप्ट सुनी तो वह बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने स्क्रिप्ट सुनकर ख़्वाजा अहमद अब्बास और वी.पी साठे से पूछा कि फ़िल्म कौन बना रहा है ?। इसके जवाब में अब्बास और वी पी साठे ने राज कपूर का नाम लिया। जैसी उम्मीद थी पृथ्वीराज कपूर नाराज़ हुए और उन्होंने ख़्वाजा अब्बास और वी पी साठे से पूछा कि वे दोनों इतने अच्छे लेखक होकर क्यों राज कपूर के साथ काम करने की सोच रहे हैं। पृथ्वीराज कपूर ने कहा कि राज अभी नया लड़का है और उसे अभी फ़िल्म बनाने का हुनर नहीं आता है। इसलिए राज पर दांव लगाना जोखिम भरा काम है। इस बात को कहकर पृथ्वीराज कपूर ने फ़िल्म करने से मना कर दिया। ख्वाजा अहमद अब्बास और वी.पी साठे ने पृथ्वीराज कपूर को बहुत समझाया और ये निवेदन किया कि वह राज कपूर को एक मौका दें,राज ज़रूर शानदार फ़िल्म बनाएँगे।अब्बास और वी पी साठे की बात में एक यक़ीन था, जिससे पृथ्वीराज कपूर प्रभावित हुए और उन्होंने फ़िल्म करने की हामी भर दी।

Advertisement

 

 

Advertisement

फ़िल्म का निर्देशन राज कपूर के ज़िम्मे था। फ़िल्म के संगीत की ज़िम्मेदारी राज कपूर ने अपनी प्रिय संगीतकार जोड़ी शंकर -जयकिशन को दी। फ़िल्म के डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले ख्वाजा अहमद अब्बास और वी.पी साठे ने मिलकर लिखा। फ़िल्म के गीत, गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने मिलकर लिखे। फ़िल्म के गीतों को आवाज़ देने के लिए गायक मुकेश,मन्ना डे,मोहम्मद रफ़ी और गायिका शमशाद बेग़म,लता मंगेशकर को साइन किया गया।राज कपूर और पृथ्वीराज कपूर फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभा रहे थे।मुख्य नायिका की भूमिका के लिए अभिनेत्री नर्गिस को चुना गया। राज कपूर-नर्गिस की जोड़ी उन दिनों बहुत लोकप्रिय थी।अन्य मुख्य भूमिकाओं को निभाने के लिए एक्टर प्रेम नाथ,एक्ट्रेस हेलेन और लीला मिश्रा को साइन किया गया।

 

Advertisement

 

अब एक मज़ेदार बात। इस फ़िल्म में राज कपूर के खानदान की तीन पीढ़ियों ने एक साथ सिनेमा स्क्रीन पर काम किया।जहाँ राज कपूर और उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने सिल्वर स्क्रीन पर पुत्र और पिता का किरदार निभाया, वहीं राज कपूर के दादा दीवान बश्वानाथ कपूर ने फ़िल्म में अदालत के जज की भूमिका निभाई। इसके साथ ही राज कपूर के भाई शशि कपूर ने फ़िल्म में राज कपूर के बचपन का रोल किया। फ़िल्म “आवारा” की शूटिंग आर.के स्टूडियो में गीत “घर आया मेरा परदेसी” के पिक्चराइज़ेशन के साथ शुरू हुई ।bआर.के स्टूडियो में शूट होने वाली यह पहली फ़िल्म थी। इसके साथ ही गीत “घर आया मेरा परदेसी” भारतीय सिनेमा इतिहास में ड्रीम सीक्वेंस पर फ़िल्माया गया पहला गीत बना।

Advertisement

 

 

Advertisement

फ़िल्म “आवारा” 14 दिसम्बर 1951 को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। दर्शकों को राज कपूर और नर्गिस का काम बेहद पसंद आया और फ़िल्म कामयाबी के नए कीर्तिमान स्थापित करने में सफल रही।भारत के साथ साथ फ़िल्म के गीत -संगीत ने
अफ्रीका,चीन,रोमानिया,रूस में भी ख़ूब लोकप्रियता बंटोरी।

Advertisement

Related posts

पीलीभीत:पेड़ से टकराई तेज रफ्तार कार, 6 लोगों की मौत

भाजपा छोड़ फिर AAP में शामिल हुए सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू

Nationalist Bharat Bureau

ईश्वर कौन है ?

Leave a Comment