संध्या दिवेदी
कल एक फिल्म देखी, ऑपरेशन रोमियो। फिल्म फेक मर्दानगी और रियल फेमिनिज्म का कॉम्बो है। यह कहानी उन फेमिनिस्ट आंदोलनों और फेमिनिज्म के नाम पर कुछ भी परोसी जा रही फिल्मों को करारा जवाब भी है।एक विलेन (शरद केलकर) पुलिस बनकर दो प्रेमी युगल को सिर्फ इसलिए पूरी रात धमकाता है, क्योंकि वे एक हास्पिटल के पास अपनी गाड़ी खड़ी कर एक दूसरे को किस करने की कोशिश कर रहे होते हैं। मैं कोशिश जानबूझकर लिख रही हूं। क्योंकि वाकई फिल्म में लड़का बहुत हिचकने के बाद लड़की से यह डिमांड करता है तो लड़की भी बहुत झिझकते हुए हां करती है।लेकिन फेक पुलिस बनकर दो लोग इन्हें इसके लिए पूरी रात प्रताड़ित करते हैं। मां- बाप को बताने की धमकी देते हैं, पैसा मांगते हैं। पुलिस वाला लड़की के साथ बदतमीजी करता है। लड़का उन दोनों के सामने गिड़गिड़ाता है। फिल्मी हीरो की तरह वह ढिसुम ढिसुम नहीं करता। क्योंकि यह मुमकिन भी नहीं।लड़का घूस देने के लिए एटीएम से पैसा निकालने जाता है। पुलिस वाला गाड़ी लॉक कर लेता है। लड़की भी अंदर ही होती है। लड़का आता है। उसे गुस्सा आता है। खैर वह किसी तरह लड़की को हॉस्टल तक छोड़ता है। लड़का सवाल करता है -एज अ मैन आई नीड टू नो, गाड़ी के भीतर क्या हुआ?
लड़की डैडली लुक देती है। बस इतना कहती है- मैन? लड़का एक हफ्ते में उस विलेन को ढूंढ़ता है उसके साथ और उसकी पत्नी के साथ वही सुलूक करता है जो उसने उसके और उसकी प्रेमिका के साथ किया था। विलेन गिड़गिड़ाता है और उसे उस रात बंद गाड़ी के भीतर का सच बताता है। विलने ने किस की मांग की लड़की ने थप्पड़ दिया। फिर गाड़ी के बाहर से हीरो ने आवाज लगा दी। बस इतना ही हुआ।लड़का खुश होता है। लड़की के पास आता है। उसे अंगूठी गिफ्ट करता है। लड़की अंगूठी की जगह उसे उंगली का वह साइन दिखाती है जो ऐसे फेक मर्दों और फेक मर्दानगी के ईगो पर सवाल खड़ा करता है।
लब्बुलुआब यह है कि लड़का उस रात लड़की के साथ हुए बर्ताव से दुखी नहीं था बल्कि लड़का इस बात से तिलमिलाया था, कहीं उस विलेन ने उसकी प्रेमिका को किस तो नहीं किया? या उससे भी ज्यादा तो कुछ नहीं किया?लड़की ने उसे वह साइन दिखाया जो ऐसे मर्दों और मर्दानगी पर धिक्कार जैसा है…