नई दिल्ली:असंसदीय शब्दों’ को लेकर मचे बवाल पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सफाई दी है। उन्होंने कहा कि किसी भी शब्द पर बैन नहीं लगा है। कार्यवाही से हटाए जाने वाले शब्दों के चयन को लेकर विवाद पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि यह 1959 से जारी एक नियमित प्रथा है। उन्होंने कहा, “किसी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।”
इससे पहले विपक्षी दलों ने ‘जुमलाजीवी’ और कई अन्य शब्दों को ‘असंसदीय अभिव्यक्ति’ की श्रेणी में रखे जाने को लेकर बृहस्पतिवार को सरकार पर निशाना साधा। कई दलों ने कहा कि वे पाबंदी लगाने वाले आदेश को नहीं मानेंगे और इन शब्दों का इस्तेमाल करेंगे। कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू से यह आग्रह भी किया कि वे इस फैसले पर पुनर्विचार करें।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “सदस्य अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं, कोई भी उस अधिकार को नहीं छीन सकता है, लेकिन यह संसद की मर्यादा के अनुसार होना चाहिए। संदर्भ और अन्य सदस्यों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए कार्यवाही से शब्दों को हटाने का निर्णय लिया गया।”
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, “पहले इस तरह के असंसदीय शब्दों की एक किताब का विमोचन किया जाता था। कागजों की बर्बादी से बचने के लिए हमने इसे इंटरनेट पर डाल दिया है। किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, हमने हटा दिए गए शब्दों का संकलन जारी किया है।” बिड़ला ने कहा, “क्या उन्होंने (विपक्ष) 1,100 पन्नों की इस डिक्शनरी (असंसदीय शब्दों को मिलाकर) को पढ़ा है, अगर वे गलतफहमियां नहीं फैलाते…यह 1954…1986, 1992, 1999, 2004, 2009, 2010 में जारी की गई थी। 2010 से सालाना आधार पर रिलीज हो रही है।”
उन्होंने कहा, “जिन शब्दों को हटा दिया गया है, वे विपक्ष के साथ-साथ सत्ता में पार्टी द्वारा भी संसद में कहे और उपयोग किए गए हैं। केवल विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों के चयनात्मक निष्कासन के रूप में कुछ भी नहीं है। कोई शब्द प्रतिबंधित नहीं है, उन शब्दों को हटा दिया है जिन पर पहले आपत्ति की गई थी।