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शिक्षा

ज़ेबुन्निसा की कविता

ध्रुव गुप्त

इन दिनों औरंगज़ेब जबरदस्त चर्चा में है। औरंगज़ेब ने क्या किया, यह इतिहास लिखने-पढ़ने वाले जाने। हम मुहब्बत वाले लोग हैं। सो हम चर्चा करेंगे औरंगज़ेब की बेटी और मुहब्बत की अप्रतिम शायरा ज़ेबुन्निसा उर्फ मख्फी की जिसने मुहब्बत के इल्ज़ाम में बीस साल कैद की सज़ा काटी और क़ैद में ही मर गई।। उनके ‘दीवान-ए-मख्फी’ की सौ कविताओं का मैं अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने की कोशिश कर रहा हूं। उनमें से तीन कविताएं मैंने पहले पोस्ट की थी। आपके लिए हाज़िर है उनकी एक और रुबाई का अनुवाद। पढ़िए और नफ़रतों के इस दौर में मुहब्बत की कोमल संवेदनाओं में डूब जाईए !

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मैं मुसलमान नहीं
बुतपरस्त हूं
अपने प्रिय की छवि के आगे
मैंने सर भी झुकाया है
और उसकी पूजा भी की है

नहीं, मैं ब्राह्मण भी नहीं
अपना पवित्र धागा उतारकर
मैंने कब का फेंक दिया है
इन दिनों लपेटे फिर रही हूं
गले में
अपने प्रिय के लंबे, घुंघराले बाल !

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