ध्रुव गुप्त
बिहार में पश्चिमी चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया से बाईस किमी दूर बाल्मिकीनगर मार्ग पर स्थित लौरिया नंदनगढ़ अपनी समृद्ध पुरातात्विक विरासत के बावजूद पर्यटन की दृष्टि से अबतक उपेक्षित ही रहा है। यहां सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए एक बड़े अशोक-स्तंभ के अलावा एक अद्भुत, विशाल बौद्ध स्तूप भी है। लगभग चौबीस मीटर ऊंचा और चार सौ सत्तावन मीटर की परिधि में बना यह भव्य स्तूप चंपारण के ही केसरिया स्तूप की तरह देश के सबसे बड़े बौद्ध स्तूपों में एक है। दुनिया की आंखो से ओझल इस ऐतिहासिक विरासत का पता अभी पिछली सदी में ही चला था। पहले इसका थोड़ा-सा हिस्सा ही ज़मीन के ऊपर नज़र आता था। कुछ इतिहासकारों का अनुमान था कि यह हमारे वैदिक काल के किसी निर्माण का अवशेष हो सकता है। आम लोग इसे नंदन गढ़ का किला कहते थे। बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान बुद्ध ने अपने महापरिनिर्वाण स्थल कुशीनगर जाने के क्रम में वैशाली और केसरिया के बाद यहां ठहरकर लोगों को धम्म का उपदेश दिया था। बौद्ध साहित्य में उपलब्ध प्रसंगों की रोशनी में पुरातत्वविद मजूमदार और घोष द्वारा जब इस जगह की खुदाई की गई तो यहां यह विशाल बौद्ध स्तूप निकला। इसके बारे में देश-दुनिया के लोगों को कम ही जानकारी है। बिहार के पर्यटन विभाग द्वारा धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन-स्थल के तौर पर लौरिया नंदनगढ़ को विकसित और प्रचारित करने के कभी गंभीर प्रयास नहीं हुए। यही कारण है कि यहां भूले-भटके ही कभी कोई पर्यटक दिखता है।
अपने एकांत के कारण यह जगह मुझे बहुत पसंद है। आपको भी भीड़-भाड़ और शोरगुल से दूर किसी ऐतिहासिक, धार्मिक पर्यटन-स्थल की तलाश है तो कुछ वक्त इस स्तूप पर जरूर बिताकर आईए ! यहां के रहस्यमय वातावरण में आपको एक अद्भुत शांति मिलेगी।