दुनिया की कुछ सबसे चर्चित और दुखद प्रेम कहानियों में एक है अली और नीनो की प्रेम कहानी। बीसवी सदी की इस प्रेम कथा का नायक था अजरबैजान का एक मुस्लिम युवा अली और नायिका थी जार्जिया के राजवंश की इसाई राजकुमारी नीनो। अलग धर्मों, संस्कृतियों और परिवेश से आने वाले इन प्रेमियों ने एक दूसरे को पाने के लिए बहुत संघर्ष किए। शादी के बाद भी उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ। यह संघर्ष था एक दूसरे के अलग जीवन-मूल्यों से तालमेल बिठाने का। नीनो को मुस्लिम परिवेश में हरम की बंधी हुई ज़िंदगी रास नहीं आई। अली को भी अपना देश छोड़कर उन्मुक्त पश्चिमी जीवन मूल्यों के बीच रहना स्वीकार नहीं हुआ । पहले विश्वयुद्ध और रूस की क्रांति की पृष्ठभूमि में पनपी इस प्रेम कहानी का त्रासद अंत हुआ रूस की लाल सेना के अजरबैजान पर हमले के साथ। अली इस युद्ध में मारा गया। नीनो को बच्चे के साथ जार्जिया पलायन करना पड़ा। उनकी दुखांत प्रेम-कहानी ने अजरबैजान और जार्जिया के लोकजीवन पर गहरा असर छोड़ा था। उनके प्रेम पर गीत, कहानियां, उपन्यास लिखे गए। नाटक खेले गए और फ़िल्में भी बनी। उनके जीवन पर लेखक कुरबान सैद के उपन्यास ‘अली एंड नीनो’ का शुमार दुनिया में सबसे अधिक भाषाओं में छपने और बिकने वाली किताबों में होता है। इस उपन्यास के आधार पर ब्रिटेन में आसिफ़ कपाड़िया के निर्देशन में इसी नाम से कुछ वर्षों पूर्व एक विख्यात फिल्म भी बनी थी। लेकिन दोनों प्रेमियों को सबसे बेहतरीन श्रद्धांजलि दी जार्जिया के एक मूर्तिकार तमारा क्वेसितादज़े ने।
तमारा ने जार्जिया के शहर बतुमी के समुद्र तट पर अली और नीनो की तेईस-तेईस फीट ऊंची स्टील की मूर्तियां बनाई। ‘स्टेचू ऑफ़ लव’ नाम से प्रसिद्द ये दोनों विशाल मूर्तियां एक दूसरे की आंखों में झांकती हुई खड़ी हैं। कंप्यूटर से संचालित इन मूर्तियों की प्रेम की यात्रा हर शाम आरम्भ होती हैं। दोनों मूर्तियां बहुत आहिस्ता-आहिस्ता एक दूसरे की ओर बढ़ती हैं। दोनों के शरीर कुछ पलों के लिए एक दूसरे में समाते हैं, ठहरते हैं और फिर आहिस्ता-आहिस्ता अलग हो जाते हैं। बिल्कुल उनकी प्रेमकथा की तरह। मिलन और ज़ुदाई के इन लम्हों का साक्षात्कार करने रोज़ ही सैकड़ों स्थानीय लोग और पर्यटक समुद्र-तट पर एकत्र होते हैं। दो प्रेमियों की एक असफल प्रेमकथा को मूर्त करने की कला और विज्ञान की यह मिलीजुली कोशिश लोगों की आंखें नम कर देती है।