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राजनीति

मैंने आपका नमक खाया है सरदार!

पुष्परंजन
नौ माह पहले एक घटनाक्रम की याद दिलाता हूँ। 20 फरवरी 2022। यूपी चुनाव चरम पर था। प्रधानमंत्री मोदी हरदोई की जनसभा में भाव विह्वल थे। उन्होंने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा- ‘कल सोशल मीडिया पर मैंने एक वीडियो देखा। आज मेरा मन करता है कि वो बात मैं बताऊँ कि मैंने क्या देखा। बताऊँ ना?….बताऊँ ना? मैं चाहता हूं कि आपके सामने ख़ासकर के ये बात मेरे दिल को छू गई है, इसलिए मैं बताना चाहता हूं। उस वीडियो में एक बहुत ही बुजुर्ग ग़रीब महिला को बोलते हुए सुना। उसने कहा, चुनाव फलाना तारीख़ को है। हमने नमक खाया है, हम घोखा नहीं देंगे। एक बुजुर्ग अनपढ़ माँ से पत्रकार फिर पूछता है, ‘किसका नमक खाया है? किसे घोखा नहीं देगी? उस माँ ने कहा, मोदी का नमक खाया है। उस बुजुर्ग महिला के साथ उनके पति भी बैठे थे, उस माँ ने जो कहा, उनके पति ने भी समर्थन दिया। हाँ में हाँ मिलाई। फिर उस महिला से पूछा गया कि मोदी ने ऐसा क्या किया है? साथियों, उस बुजुर्ग ग़रीब माँ ने जो उत्तर दिया, उसे मैं भूल नहीं सकता। उस माँ ने कहा, ‘ मोदी, राशन दौ हमें।‘ फिर दोबारा कहा माँ ने, ‘मोदी राशन दौ हमें।‘ फिर माँ ने बताया कि कितना राशन उनके परिवार को मुफ्त मिल रहा है। वो माँ मुझसे कभी मिली नहीं है, मेरा सौभाग्य है कि वो माँ मुझे इतना आशीर्वाद दे रही है।‘

वह गांव की अनपढ़, बुजुर्ग महिला थी, जिनकी चर्चा प्रसंगशः प्रधानमंत्री मोदी कर रहे थे। चुनावी मंच पर ऐसी चर्चा मानीखे़ज़ होती हैं। ‘लिख लोढ़ा, पढ़ पत्थर‘ मार्का भावुक वोटर यह नहीं जानना चाहता कि उसे जो मुफ्त में प्राप्त हुआ, वह किसी नेता की निजी संपत्ति से दिया दान नहीं है, टैक्स पेयर्स का पैसा है।
अब पढ़े-लिखे पर आते हैं। हमारे देश की वर्तमान राष्ट्रपति भुबनेश्वर के रामादेवी वीमेंस कॉलेज से बीए पास महिला हैं। कुछ वर्षों उन्होंने राज्य के सिंचाई विभाग में जूनियर असिस्टेट पद पर काम किया था, कालांतर में रायरंगपुर में शिक्षिका भी रही थीं। मतलब, माननीया राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू साक्षर हैं। प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील डबल एमए, और एलएलबी थीं। हमारी दूसरी महिला राष्ट्रपति मुर्मू ग्रेजुएट। उस पद पर विराजमान विदुषी से देश को अपेक्षा रहती है कि वो जो कुछ बोलेंगीं, संपूर्ण राष्ट्र के लिए संदेश होगा।

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सोमवार को दो दिवसीय दौरे पर गुजरात गईं थीं। वहां उन्होंने अधोसंरचना, स्वास्थ्य, शिक्षा, वनवासी विकास जैसी 1 हज़ार 330 करोड़ रूपये की परियोजनाओं की आधारशिला रखी। यह तो राष्ट्रपति कार्यालय को आकलन करना था कि गुजरात में चुनावी माहौल है, और यह सब करने से उसके राजनीतिक निहितार्थ क्या निकलने वाले हैं।
मगर, जहां जो गड़बड़ हुआ, वह है चार अक्टूबर को राष्ट्रपति मुर्मू का दिया भाषण। गांधीनगर के मंच पर राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, ‘भारत दुग्ध उत्पादन एवं उपभोग की दृष्टि से पहले नंबर पर है। गुजरात में दुग्ध सहकारी संगठनों द्वारा लाई गई श्वेत क्रांति इसमें एक अहम भूमिका निभाती है। गुजरात देश के 70 फीसद नमक का उत्पादन करता है। ये कहा जा सकता है कि सभी देशवासी गुजरात का नमक खाते हैं।‘

उस अवसर का विजुअल ग़ौर से देखिये, तो राष्ट्रपति मुर्मू ने हँसते हुए नमक वाली बात कही थी। आपमें यदि ‘सेंस ऑफ ह्यूमर‘ है, तो उसका आनंद लीजिए, वरना वह शब्द बहुतों को खुन्नस निकालने का अवसर देता है। किसी को यह कहना कि आपने मेरा नमक खाया है, मतलब आप उसके कृपापात्र रहे हैं। नमक खाया है, तो नमक का हक़ अदा कीजिए। इसके शब्दार्थ कुछ ऐसे ही सामने आते हैं।

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मुसलमान से मुसलमान पर या फिर अनुसूचित पर उन्हीं के जैसों से हल्ला बोल करवाना हिन्दुस्तान की राजनीतिक फितरत हो चुकी है। अब मालूम नहीं यह स्वतःस्फूर्त था, या सुनियोजित, मगर कांग्रेस नेता डॉ. उदित राज अपने ट्विट में काफ़ी कठोर शब्दों में राष्ट्रपति मुर्मू की निंदा कर गये। अपने ट्विट में उदित राज ने लिखा, ‘ द्रौपदी मुर्मू जी जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले। चमचागिरी की भी हद है। कहती हैं, 70 प्रतिशत लोग गुजरात का नमक खाते हैं। ख़ुद नमक खाकर ज़िदगी जिएँ तो पता चलेगा।‘

सोलहवीं लोकसभा में बीजेपी सांसद रह चुके उदित राज, ‘ऑल इंडिया एससी एसटी परिसंघ‘ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के सदस्य भी हैं। उन्हें इसका अंदाज़ा था कि इस ट्विट से आग लगेगी। तभी उन्होंने तुरंत स्पष्ट किया था कि यह मेरा निजी बयान है, इसका कांग्रेस से कोई लेना-देना नहीं। मगर, उससे क्या होता है? बीजेपी प्रवक्ता से लेकर सड़क पर बेलगाम लुंपन एलीमेंट को बस एक अवसर चाहिए था, ताकि वो भारत जोड़ो यात्रा की बौखलाहट को कम कर सके। टीवी और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दे दनादन हमले हुए। एक दिन पहले दशहरा के अंतिम दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। बुराई फिर से गाली-गलौज के रूप में प्रस्तुत होने लगी।

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लोग भूल गये कि उदित राज अनुसूचित जाति से हैं। जैसे उदित राज आवेश में भूल गये थे कि राष्ट्रपति मुर्मू महिला हैं, अनुसूचित जनजाति से हैं। डॉ. उदित राज, नमक वाले इश्यू पर शालीनता से प्रतिरोध व्यक्त करते तो शायद सभ्य समाज को समझने का अवसर भी मिलता। ‘ मुर्मू जी जैसा राष्ट्रपति किसी देश को न मिले। चमचागिरी की भी हद है।‘ ये दोनों शब्द आग में घी जैसे ही थे। कांग्रेस पार्टी, इटली कनेक्शन के हवाले से उदित राज को जितनी गालियाँ पड़ी हैं, भक्तों के लिए वह सब माफ है।

मगर, क्या इसके पुनरीक्षण की ज़रूरत नहीं है कि राष्ट्रपति के भाषण लेखक ने ऐसे वाक्य का इस्तेमाल क्यों किया? गांधीनगर के मंच पर प्रेसिडेंट मुर्मू स्क्रिप्ट पढ़कर बोल रही थीं, तो क्या प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी उसे पहले से देखा था? राष्ट्रपति भवन में भाषण लेखक कौन है? ऐसे कई सवाल हैं। जैसा कि मैंने शुरू में ही संकेत दिया कि प्रधानमंत्री मोदी को नमक से भरपूर रचे शब्द बहुत भाते हैं। वो चुनावी मंच पर स्वयं एक बूढ़ी औरत के बयानों के हवाले से संकेत दे चुके हैं कि नमक का हक़ अदा करना इस देश के मतदाता का कर्तव्य है।

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मगर, प्रधानमंत्री मोदी को शायद याद न हो कि नील की तरह नमक भी इस देश में शोषण और दमन का प्रतीक रहा है। नीलहा किसानों की मुक्ति के लिए चंपारण में आंदोलन हुआ, तो नमक क़ानून के विरोघ में दांडी मार्च भी उसी साबरमती के संत ने किया था। नील को लेकर इस देश में मुहावरे उतने नहीं बन पायें, मगर नमक को देखिये, फिकरेबाज़ी में क्या-क्या स्वाद रचे हैं। नमक आधारित बोल का अंदाज बदल दीजिए, उसका अर्थ बदल जाता है। चाहें तो किसी चिरशत्रु के घाव पर नमक छिड़किये, अथवा याद दिलाइये कि उसकी सात पीढ़ियों ने हमारा नमक खाया है। दरअसल, ‘नमक खाया है‘ जैसी वाक्य संरचना सामंतवादी विचारधारा की वाहक है, जो पीएम मोदी को भाती है।

नमक में जाने क्यों, नकारात्मकता अत्यधिक है। नमक हराम (द्रोही, कृतघ्न, अन्नदाता को हानि पहुंचाने वाला), नमक हलाली करना (आका का वफादार रहना), नमक का हक अदा करना (वफादारी करना ), नमक लगाना (अजीयत में इज़ाफा करना), नमक-मिर्च लगाना (बढ़ा-चढाकर चुगलखोरी करना), नान नमक पर चलना (तंगी में गुज़ारा करना) ऐसे दर्जनों नकारात्मक शब्द आज भी प्रयोग में हैं। ‘आपके चेहरे पर नमक है’, ऐसा सुनना शायद किसी प्रौढा को पसंद आये। कुछ दिलफेंक, ‘बड़ी नमकीन है‘ बोलकर प्रशंसा के लिए लालायित युवतियों का ऊर्जावर्द्धन करते हैं।

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प्रेमचंद ने एक लधुकथा ‘नमक का दारोगा‘ लिखी थी, जिसे पढ़कर आज भी लगता है कि इस देश का सिस्टम बदला नहीं है, बल्कि वह और भी व्यापक हो चुका है। आज थोड़ा-बहुत ईमानदार रहा अफसर नौकरी से हाथ घोने के बाद, किसी टैक्सचोर कॉरपोरेट का नमक खाने को विवश होता है।
पलामू की पृष्ठभूमि पर महाश्वेता देवी ने भी 1981 में ‘नून‘ शीर्षक से एक लघु कथा लिखी थी, जिसमें उन्होंने उस इलाक़े के ज़ालिम ज़मींदारों द्वारा नमक मज़दूरों के शोषण को उकेरा था। ‘नून‘ का बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनुवाद शर्मिष्ठा दत्ता गुप्ता ने किया था। शोले का जगत प्रसिद्ध डॉयलॉग याद कीजिए फ़िर से, ‘….तेरा क्या होगा कालिया?…सरदार। मैंने आपका नमक खाया है सरदार! .. अब गोली खा।‘

शोले के डायलॉग राइटर सलीम और उनके जोड़ीदार जावेद अख़्तर अपने अनोखे संवाद के साथ ज़िंदाबाद हैं। लेकिन पब्लिक आह्लादित होती है स्क्रीन पर संवाद बोलते चेहरों को देखकर। राष्ट्रपति भवन का संवाद लेखक सत्ता के किस गलियारे में कब गुम हो जाएगा, किसी को पता तक नहीं चल पायेगा। मगर देश, गांधीनगर में नमक वाला डायलॉग कभी भूलेगा नहीं। राष्ट्रपति मुर्मू के साथ वह इतिहास का अमिट हिस्सा बन चुका है। यह कटु सत्य है कि सत्ता के शिखर पर आने के वास्ते नमक तो खाना पड़ता है, मगर सार्वजनिक मंच पर उसके हक अदायगी से बचना चाहिए। गांधीनगर का डॉयलॉग फिर न दोहराना पड़े, इसका ख़्याल रायसीना हिल रखे।

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बात जब नमक की चल पड़ी है, तो प्रधानमंत्री मोदी को नमक उत्पादकों की बरसों से लंबित मांग पर घ्यान देना चाहिए। गुजरात देश में कुल नमक का 76 फीसद उत्पादन करता है। उसके बाद राजस्थान, तमिलनाडु, आंघ्र, महाराष्ट्र और हिमाचल है। नमक का खनन केवल राजस्थान और हिमाचल में होता है, जिसे हम सेंघा नमक बोलते हैं। अंग्रेज़ों ने नमक को माइनिंग प्रोडक्ट मान लिया था। उसपर औद्योगिक क़ानून अब भी आयद है। कोई पांच लाख लोग नमक के कारोबार में लगे हैं। भारत से 55 देशों को नमक का निर्यात होता है। नमक उत्पादन में अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरे नंबर पर है। लगभग तीन करोड़ टन का उत्पादन। कारोबारी इसे कृषि का दर्ज़ा देते हुए, न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार से चाहते हैं। मगर, नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कोई सुनता है क्या?

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