गोरखपुर पुणे एक्सप्रेस, ट्रेन नंबर 11038,सप्ताह में एक दिन सिर्फ शनिवार को चलती है। आप सोच सकते हैं कि बिहार और यूपी के कितने युवाओं के सपने इस ट्रेन के साथ चलती और थक कर हार जाते होंगे। ट्रेन पहले से दो घंटे लेट चल रही थी। दिन था रविवार का, हम और हमारे तीन साथी जलगांव स्टेशन पर शिर्डी जाने के लिए ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। 4 बजे की ट्रेन 6 बजे आई है। ट्रेन में तिल रखने तक की भी जगह नहीं। हम बिहारी ठहरे जुगाड लगाने में माहिर। ट्रेन में सबको धक्का देते हुए सवार हो गए। हालत देखकर दंग नहीं हुआ, अफसोस हुआ हमारे भाई लोग शौचालय में ठूसे हुए थे। किसी को शौच लगे तो सब दबाए हुए है। हम चढ़े थे महाराष्ट्र के स्टेशन पर उन्हें लगा मराठी है, लेकिन जैसे ही ट्रेन में मेरी जुबान खुली कि सारी असलियत सामने आ गई। एक युवक ने पूछ दिया कहां से आई हो, मैं कही, जलगांव से। लेकिन मैं अकेली थी। डर भी लग रहा था। कहीं कोई लड़की न महिला दिख रही थी। मन में सोच रही थी, मेरे साथ कोई अनहोनी करता है तो बचाने वाला कोई नहीं होगा। सारे युवा रात भर सोए नहीं थे, आंखे लाल और बोझिल हो चली थी। एक बच्चा तो मुश्किल से 17 साल का रहा होगा। मेरा मन एक लड़की बनकर ही सोच रहा था, उस समय तक उनकी बेचारगी, बेबसी ने मुझे झकझोरा नहीं था। मैंने उनके मन की बात जानने के लिए बात करनी शुरू की। बात बात के मैने बोल दिया कि ठीक रहता महिला बोगी में चढ़ती, कोई महिला नहीं दिख रही है। अब लग रहा है कि खड़ा होकर ही सफर करना है। एक युवक ने कहा वहां भी सिर्फ लडके ही हैं। यहां तो खड़ा भी रहने की जगह मिल गई। फिर कुछ नहीं सूझा बोल कि यार बिहारी हूं डरते थोड़े हूं। उतने में एक युवक कहता है, मैं आपसे पूछ ही रहा था न आप कहां से है।आपकी हिंदी से मुझे लगा की आप बिहार से है। तब जाकर मेरे जान में जान आई। 4 घंटे में शिर्डी से पहले का स्टेशन कोपरगांव जाना था। युवक ने एक लड़के को खड़ा करके मुझे नीचे शौचालय के पास बैठा दिया।दो बैग के साथ मैं भी बैठ गई। किसी को शौच लगती तो सारे युवक बाहर आकर खड़े होते या शौचालय में ही खड़े रहते। तब तक मेरे मन का डर खत्म हो चुका था। मैने पूछा आप लोग सीट बुक नहीं करते है क्या? वहीं पर एक युवक महाराष्ट्र के चालीसगांव का था। मैं रोज देखता हूं बिहारी सब पहले से टिकट बुक नहीं करते है और इस तरह से सफर करते है। गोपालगंज का ak युवक तुरंत जवाब देता है। सीट रहेगा तब न बुक कराए। कौन खड़ा होकर दो दिन की यात्रा करना चाहता है। कमाएंगे नहीं तो घर के लोग क्या खायेंगे। इतना कहते ही मराठी का मुंह चुप हो जाता है।
युवकों तब तक मेरे सवाल करने के अंदाज से समझ आ गया था कि मैं रिपोर्टर हूं। युवकों ने मैडम हमारा वीडियो बनाइए और वायरल कीजिए, ताकि मोदी सरकार को समझ में आए कि ट्रेन की बोगी बढ़नी चाहिए। एक युवक बोलता है, अगर यूपी बिहार में काम मिलता तो युवा पुणे और मुंबई क्यों जाते। मैं वीडियो बनाई और चार घंटे कैसे खत्म हो गई पता नहीं चला।
मेरा सवाल बस इतना है कि जिस युवा शक्ति की बदौलत भारत खुद को विश्व शक्ति कहाने को आतुर है, वह युवा ट्रेनों में धक्के खा रहा है। दिशाहीन है। उन्हें काम के साथ शिक्षा दीजिए। भटकाव नहीं।