Nationalist Bharat
शिक्षा

एक ही शख़्स था ज़हान में क्या ?

भारत के अमरोहा में 1931 में जन्मे और देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान जा बसे जान एलिया का शुमार बीसवी सदी के उत्तरार्ध्द के महान शायरों में होता है। हमारे मशहूर फ़िल्मकार कमाल अमरोही और दार्शनिक सय्यद मुहम्मद तकी के छोटे भाई एलिया ने अपने लिए शायरी चुनी तो अपने समकालीनों से अलग अभिव्यक्ति का एक अलग अंदाज़ विकसित किया। प्रेम के टूटने की व्यथा, अकेलेपन और आदमी के अजनबीयत के गहरे एहसास उनकी शायरी में जिस तीखेपन के साथ व्यक्त हुए हैं, उनसे गुज़रना बिल्कुल ही अलग-सा एहसास है। अपनी फक्कड तबियत, अलमस्तजीवन जीवन शैली, हालात से समझौता न करने की आदत और समाज के स्थापित मूल्यों के साथ अराजक हो जाने तक उनकी तेज-तल्ख़ झड़प ने उन्हें अकेला भी किया और उनकी रचनात्मकता को एक खासियत भी बख्शी। उनकी शायरी में जो अवसाद और अकेलापन है, उसकी वज़ह उनकी निज़ी ज़िन्दगी में खोजी जा सकती है। उनकी पूर्व पत्नी जाहिदा हिना पाकिस्तान की प्रसिद्ध पत्रकार हैं। अप्रिय स्थितियों में दोनों के बीच तलाक के बाद एलिया ने न सिर्फ ख़ुद को शराब में डुबो दिया, बल्कि ख़ुद को बर्बाद करने के नए-नए बहाने और तरीक़े इज़ाद करने लगे। जानने वाले कहते हैं कि शाम होते ही एक अजीब कैफ़ियत उनपर तारी हो जाती थी और वो घंटों भारत की ओर मुंह करके उदास बैठे रहते थे। उनकी एक नज़्म है – मत पूछो ग़मगीन हूं कितना गंगा जी और जमुना जी / क्या मैं तुमको याद नहीं हूं गंगा जी और जमुना जी। बहुत ही त्रासद परिस्थितियों में वर्ष 2002 में उनका निधन हुआ। मरहूम जान एलिया के जन्मदिन पर उन्हें खेराज-ए-अक़ीदत, उनकी ही एक लोकप्रिय ग़ज़ल के साथ !

उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या

Advertisement

मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या

बोलते क्यो नहीं मेरे हक़ में
आबले पड़ गये ज़बान में क्या

Advertisement

मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या

वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूं मै तेरी अमान में क्या

Advertisement

यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या

ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहान में क्या

Advertisement

Related posts

प्रेमचंद के मज़ीद नाविल और अफ़्सानों का अरबी में तर्जुमा किया जाये:प्रोफ़ैसर असदउद्दीन

Nationalist Bharat Bureau

हमें तो सुख में साथी चाहिये दुख में तो हमारी बेटी अकेली ही काफी है

नई शिक्षा नीति समय की जरूरत:शमायल अहमद

Leave a Comment