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राजनीति

पश्चिमी चंपारण लोकसभा चुनाव 2024:या तो इतिहास बनेगा या फिर भाजपा को गंवानी पड़ सकती है अपनी सीट

मेराज एम एन

बिहार में जातीय गणना के बाद बने नए राजनीतिक परिदृश्य में लोकसभा चुनाव 2024 होना है। यानी बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर फिर से नए सियासी समीकरण के हिसाब से चेहरे और उम्मीदवार की खोज की जानी है। राज्य की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सभी 40 सीटों पर चुनावी मंथन शुरू भी हो चुका है। एक तरफ एनडीए में शामिल भारतीय जनता पार्टी,लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धरे,हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनता दल तो दूसरी तरफ महागठबंधन की राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वाम दलों द्वारा रणनीतियां बनानी शुरू कर दी गई हैं। हालांकि अंतिम परिदृश्य आने में अभी थोड़ा समय है।कौन सी पार्टी या कौन सा गठबंधन किस लोकसभा क्षेत्र से किसे अपना उम्मीदवार बनाता है यह भविष्य के गर्त में है लेकिन राजनीतिक हलकों में बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों का विश्लेषण जारी है।

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अगर बात पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र कि की जाए तो यहां एक बात फिर से जोरों पर है कि क्या मौजूदा सांसद डॉक्टर संजय जयसवाल चौथी बार इस सीट से भाजपा उम्मीदवार होंगे। और अगर डॉक्टर संजय जयसवाल चौथी बार किस्मत आजमाते हैं तो क्या उन्हें अपने पिता के जैसे परिणाम का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि इस सीट से उनके पिता डॉक्टर मदन जयसवाल ने तीन बार प्रतिनिधित्व किया और चौथी बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। आज भी वही स्थिति सामने है। डॉक्टर संजय जयसवाल 2009, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव जीत कर पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा और भारतीय जनता पार्टी ने चौथी बार डॉक्टर संजय जयसवाल पर भरोसा जताया तो क्या वह उस मिथक को तोड़ने में कामयाब होंगे।

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हालांकि पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र बीजेपी के लिए जीत के लिहाज से सुरक्षित सीट रही है।पिछले 3 बार से बीजेपी प्रत्याशी डॉ संजय जायसवाल जीतते रहे हैं।2009 और 2014 के दोनों चुनाव में उन्होंने फिल्म निर्देशक प्रकाश झा को हराया।2009 में पहली बार प्रकाश झा के इस सीट से उम्मीदवार बनने पर पूरे देश की नजर इस सीट पर पड़ी थी। लेकिन बॉलीवुड की तमाम चकाचौंध के बावजूद प्रकाश झा इस सीट पर बीजेपी को शिकस्त नहीं दे पाए।2019 में जयसवाल ने महागठबंधन के डॉक्टर ब्रजेश कुमार कुशवाहा को पराजित किया।

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पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें 3 पश्चिमी चंपारण और 3 पूर्वी चंपारण की सीटें हैं। पश्चिमी चंपारण के चनपटिया, नौतन और बेतिया, वहीं पूर्वी चंपारण के सुगौली, रक्सौल और नरकटिया विधानसभा क्षेत्र इसमें शामिल हैं।पश्चिमी चंपारण नेपाल से सटा बिहार का इलाका है।तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत आने वाले ये इलाका अंग्रेजों के दौर में आंदोलन की धरती रहा है।महात्मा गांधी ने यहीं से सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की थी।आजादी के बाद इमरजेंसी के काल तक ये कांग्रेस का गढ़ रहा।1977 में पहली बार जनता पार्टी के फजलू रहमान ने कांग्रेस के प्रभुत्व को खंडित किया. उसके बाद यहां से 6 बार बीजेपी, दो बार जनता दल, एक-एक बार सीपीआई और आरजेडी का कब्जा रहा।1962 से लेकर 1971 के बीच तीन बार कांग्रेस के कमल नाथ तिवारी कांग्रेस से सांसद रहे।1977 में फजलू रहमान सांसद बने।

 

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दूसरी तरफ हालिया दिनों में भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉ संजय जायसवाल को लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार पिछले दिनों ही जब वह एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने लोकसभा क्षेत्र के एक इलाके में पहुंचे तो स्थानीय लोगों ने उनका विरोध शुरू कर दिया।रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी सांसद संजय जायसवाल बीजेपी के एक कार्यक्रम में शामिल होने पश्चिमी चंपारण के बंजारिया प्रखंड पहुंचे। जब क्षेत्र के लोगों को इसकी जानकारी मिली तो वे हाथों में बैनर-पोस्टर और काले झंडे लेकर सड़क पर बैठ गए। जैसे ही जायसवाल वहां पहुंचे लोगों ने उन्हें घेर लिया और नारेबाजी शुरू कर दी। जनता अपने सांसद से अब तक के कामों का हिसाब मांगने लगी।लोगों ने आरोप लगाया कि जायसवाल पश्चिम चंपारण सीट से लगातार तीन बार से सांसद हैं। उनके पिता भी तीन बार सांसद रह चुके हैं। बीते 30 सालों से इस सीट पर उनके ही परिवार का दबदबा रहा है। जायसवाल को कई बार सांसद बनाया लेकिन उन्होंने क्षेत्र का विकास नहीं किया। उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।

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अर्थात पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र का 2024 का चुनाव रोचक होने के साथ-साथ एक इतिहास भी रचना के कगार पर है।अगर मौजूदा सांसद डॉक्टर संजय जयसवाल चौथी बार किस्मत आजमाते हैं और जीत का हासिल करते हैं तो पहली बार ऐसा होगा जब लगातार चार बार भारतीय जनता पार्टी का सांसद पश्चिमी चंपारण लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा को अपनी सीट गंवानी पड़ सकती है।

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