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भू माफिया ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर बेच दी करोड़ों की बेनामी संपत्ति

मुजफ्फरपुर : जिले के भू माफिया ने प्रशासन के कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर बेनामी संपत्ति बेच दी। नियमत: यह जमीन बिहार सरकार के पास होनी चाहिए थी। तिरहुत रेंज के पुलिस महानिरीक्षक शिवदीप वामनराव लाण्डे ने अपर पुलिस महानिदेशक (विधि व्यवस्था) को इस संबंध में एक रिपोर्ट भेजी है।
आइजी की रिपोर्ट के मुताबिक जिले के विभिन्न इलाकों में भूमि विवाद के कारण हत्या जैसी बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। इससे विधि व्यवस्था की गंभीर समस्या भी उत्पन्न हुई थी। इसी तरह का एक मामला सामने आया है। बोचहां प्रखंड के भगवानपुर में भूमि अधिग्रहण अधिनियम (सीङ्क्षलग एक्ट) से बचाव के लिए 13.88 एकड़ जमीन छद्म व्यक्ति के नाम से रजिस्ट्री कर दी गई। यह भूमि चंद्रमाधव प्रसाद ङ्क्षसह उर्फ चंद्रमाधव प्रसाद सिन्हा (जमींदार) के नाम से थी। बिकने के बाद भी इस जमीन पर कब्जा उन्हीं के परिवार का है। इस जमीन की कीमत करोड़ों में है। चंद्रमाधव प्रसाद ङ्क्षसह की मृत्यु के उपरांत छद्म व्यक्ति झारखंड के देवघर के शिवनारायण ङ्क्षसह ने 1996 से 2001 के बीच कई व्यक्तियों के नाम से जमीन की बिक्री की। बाद में उक्त भूमि पर डा. आशीष नारायण ङ्क्षसह ने अपनी पैतृक संपत्ति होने का दावा किया। डा. शिवनारायण ङ्क्षसह चिकित्सक हैं। इनके पुत्र डा. आशीष नारायण ङ्क्षसह ने उक्त खाता खेसरा की आठ एकड़ भूमि अपने पिता की पैतृक संपत्ति होने के आधार पर गायघाट बदेया के अर्जुन राय को 2016 में पावर आफ अटर्नी दी। इसके बाद अर्जुन राय ने पावर आफ अटर्नी के आधार पर उक्त भूमि की बिक्री शुरू कर दी। इस विवाद को लेकर एक जमीन खरीदार नंदू प्रसाद ने टाइटल शूट कोर्ट में दायर किया। फिर अर्जुन राय ने 2016 में नगर थाने में प्राथमिकी कराई। मामला कोर्ट में विचाराधीन है। आइजी ने बताया कि उक्त भूमि को लेकर कभी भी हत्या जैसी घटनाएं हो सकती हैं। मामले में राजनीतिक व्यक्तियों एवं वरीय पुलिस व प्रशासनिक पदाधिकारियों के दबाव की बात भी सामने आई है।
आइजी की रिपोर्ट में कहा गया कि इस फर्जीबाड़े में राजस्व कर्मचारी की भूमिका भी संदिग्ध है। प्रतीत होता है कि संबंधित खाता-खेसरा की 13.88 एकड़ की भूमि को संगठित अपराध के तहत खरीद-बिक्री की गई है। इसमें भूमाफियाओं के द्वारा प्रशासन के कुछ पदाधिकारियों की मिलीभगत है। संगठित अपराध के तहत उक्त भूमि को खरीदने वाले खरीददारों की भूमिका भी संदिग्ध प्रतीत होता है। ऐसी भी सूचना मिल रही है कि उक्त भूमि के खरीद-बिक्री में अप्रत्यक्ष रूप से कतिपय बड़े पुलिस प्रशासनिक पदाधिकारी तथा राजनेता भी है। जिनके द्वारा सरकार के स्वामित्व वाली बेनामी संपत्ति को क्रय-विक्रय योग्य बनाया गया है।
आइजी ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के साथ तिरहुत प्रमंडलीय आयुक्त व जिलाधिकारी को इसकी प्रतिलिपि भेजी है। साथ ही वरीय पुलिस अधीक्षक मुजफ्फरपुर के साथ वैशाली, सीतामढ़ी व शिवहर एसपी से इस प्रकार के अन्य भूमि विवाद के मामले को लेकर रिपोर्ट भी मांगी है।

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