Bihar bypoll election 2024 :बिहार विधानसभा उपचुनाव 2024 की घोषणा होते ही नई पार्टी बनाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय लिया। उन्होंने बिहार के चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। हालांकि, कुछ ही दिनों बाद उनकी रणनीति में बदलाव करना पड़ा, जब एस.के. सिंह का नाम बिहार की मतदाता सूची में नहीं होने की वजह से उन्हें अपना प्रत्याशी बदलना पड़ा।
बेलागंज सीट पर जब खिलाफत हुसैन की उम्मीदवारी की घोषणा हो रही थी, तब जन सुराज के कार्यकर्ताओं के बीच आपसी विवाद और हाथापाई की स्थिति पैदा हो गई। इसके बाद, आज तरारी और बेलागंज विधानसभा सीटों पर जन सुराज ने अपने प्रत्याशी बदल दिए। इन दो सीटों में बेलागंज सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही है। बेलागंज विधानसभा सीट पर 1990 से सुरेंद्र यादव का दबदबा रहा है, उन्होंने अब तक आठ बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है।
हालांकि, 1998 में सुरेंद्र यादव जहानाबाद से लोकसभा चुनाव जीत गए थे, जिसके बाद हुए उपचुनाव में राजद के महेश सिंह यादव विधायक बने। लेकिन अगले ही साल हुए लोकसभा चुनाव में सुरेंद्र यादव हार गए। 2000 में सुरेंद्र यादव वापस बेलागंज से चुनाव लड़े और 23,000 से अधिक वोटों के बड़े अंतर से भाजपा के कृष्ण सिंह को हराया। 1990 से 2005 तक के चुनावों में सुरेंद्र यादव ने हर बार अपने विरोधियों को भारी अंतर से हराया।
2005 के फरवरी चुनाव में बेलागंज में एक नया चेहरा सामने आया—मोहम्मद अमजद। उन्हें लोजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में अमजद दूसरे स्थान पर रहे, जबकि सुरेंद्र यादव ने जीत दर्ज की। अक्टूबर 2005 में फिर चुनाव हुए, जहां अमजद ने सुरेंद्र यादव को कड़ी टक्कर दी, लेकिन वे केवल कुछ हजार वोटों से हार गए। 2010 के विधानसभा चुनाव में भी अमजद जदयू के उम्मीदवार बने, लेकिन एक बार फिर मामूली अंतर से जीतने में असफल रहे। 2015 और 2020 के चुनावों में अमजद चुनावी मैदान में नहीं उतरे, लेकिन इस बार जन सुराज ने उनके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें उम्मीदवार बनाकर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक चाल चली है।
बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में यादव समाज के मतदाता सबसे अधिक हैं, इसके बाद मुस्लिम समुदाय का नंबर आता है। इस बार इंडिया गठबंधन और एनडीए दोनों ही यादव समाज के प्रत्याशियों को मैदान में उतार रहे हैं। यदि यादव वोटरों में विभाजन होता है और जन सुराज मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने में कामयाब हो जाता है, तो इस बार मोहम्मद अमजद के लिए जीत की राह आसान हो सकती है।