आज भी कई जगहों पर बेटियों के लिए दुनिया इतनी आसान नहीं है। उन्हें शिक्षा से वंचित किया जाता है या फिर उन्हें घर की चारदीवारी में सीमित कर दिया जाता है। हालांकि, पिछले कुछ दशकों में बेटियों के प्रति मानसिकता में बदलाव आया है, लेकिन आज भी कई स्थानों पर उन्हें छोटी-छोटी बातों के लिए समाज, परिवार और गांव से संघर्ष करना पड़ता है। बिहार के फुलवारी शरीफ के एक छोटे से गांव कुड़कुरी की रहने वाली प्रिया रानी की कहानी इस संघर्ष और सफलता की बेहतरीन मिसाल है। प्रिया ने समाज की तमाम बंदिशों को चुनौती दी और यूपीएससी परीक्षा पास करके आईएएस अधिकारी बनकर यह साबित किया कि अगर जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती।
गांव में पढ़ाई के खिलाफ विरोध, लेकिन दादा का था पूरा साथ
प्रिया रानी बिहार के कुड़कुरी गांव की रहने वाली हैं। उनकी शुरुआत की पढ़ाई गांव में हुई, लेकिन इस दौरान उन्हें समाज और गांव वालों के विरोध का सामना करना पड़ा। गांव में बहुत से लोग इस बात से नाराज थे कि प्रिया के परिवार ने अपनी बेटी को पढ़ाई करने दिया। लेकिन प्रिया के दादा ने किसी की परवाह किए बिना अपनी पोती की शिक्षा के लिए पूरी तरह से खड़ा हो गया।प्रिया के दादा का मानना था कि शिक्षा ही सबसे बड़ी ताकत है और उन्होंने गांव के सामाजिक दबाव को दरकिनार कर अपनी पोती को आगे बढ़ने का मौका दिया। इस दौरान प्रिया के पिता ने भी उनका पूरा समर्थन किया।
पटना में आकर की पढ़ाई जारी
गांव में पढ़ाई के लिए जरूरी सुविधाओं की कमी को महसूस करते हुए, प्रिया के दादा ने उन्हें पटना भेजने का फैसला किया, ताकि वह अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। पटना में रहकर, प्रिया ने किराए के घर में रहकर पढ़ाई की। यह कठिन दौर था, लेकिन प्रिया ने हार नहीं मानी और लगातार अपनी मेहनत में जुटी रही।
बीआईटी मेसरा से इंजीनियरिंग, फिर यूपीएससी की तैयारी
प्रिया ने बीआईटी मेसरा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद उन्हें एक अच्छे पैकेज वाली नौकरी भी मिल गई।हालांकि, उनका सपना सिविल सेवा में जाने का था। इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद, उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।प्रिया के पहले प्रयास में सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय अपनी तैयारी को और मजबूत किया। दूसरे प्रयास में उन्हें इंडियन डिफेंस सर्विस में नौकरी मिल गई, लेकिन उनका लक्ष्य आईएएस बनने का था। तीसरे प्रयास में भी उन्हें सफलता नहीं मिली, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। चौथे प्रयास में प्रिया ने ऑल इंडिया रैंक 69 हासिल की और आखिरकार वह आईएएस अधिकारी बन गईं।
सुबह 4 बजे से पढ़ाई की शुरुआत
प्रिया रानी ने अपनी सफलता का राज नियमित पढ़ाई और कड़ी मेहनत को बताया। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि वह हर दिन सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करती थीं। उनका मानना था कि पढ़ाई ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। उनका दृढ़ विश्वास था कि मेहनत और समर्पण से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।
प्रिया की सफलता से गांव में आया बदलाव
वह दिन दूर नहीं था जब जिन लोगों ने कभी प्रिया के पढ़ाई करने के खिलाफ विरोध किया था, वही लोग आज उनकी सफलता पर गर्व महसूस करते हैं। प्रिया की सफलता ने न केवल उनके गांव बल्कि आस-पास के गांवों में भी एक सकारात्मक बदलाव की लहर दौड़ाई है। अब लोग अपनी बेटियों को शिक्षा देने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।प्रिया रानी की सफलता ने यह साबित कर दिया कि अगर किसी में खुद पर विश्वास हो और मेहनत करने की इच्छा हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है। उनकी इस उपलब्धि ने न सिर्फ उनके परिवार और गांव को गर्व महसूस कराया, बल्कि पूरे बिहार को भी गर्व है।