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रुन्नीसैदपुर विधानसभा:”विधायक” तो कई बने “नेता” कोई ना बन सका

  1. बालूशाही ने रुन्नी सैदपुर को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई लेकिन ‘नेता’ का टैग विधायकों के लिए अब भी एक सपना है।
  2. अगर इतिहास दोहराया गया तो यह क्षेत्र फिर से एक ‘सिर्फ विधायक’ वाला इलाका भर रह जाएगा।

मेराज नूरी

सीतामढ़ी जिला के रुन्नीसैदपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के लिए पिछले कई दशकों का सफर उम्मीदों और निराशाओं से भरा रहा है। इस क्षेत्र से चुने गए कई विधायक आए और गए, लेकिन ऐसा कोई नेता नहीं उभरा जो न केवल स्थानीय मुद्दों को हल करे बल्कि राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाए। पिछले 30-40 वर्षों में यहां से चुने गए विधायकों में से अधिकांश ने न तो बिहार सरकार में मंत्री पद हासिल किया और न ही ऐसी कोई उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज की जो क्षेत्र को प्रदेश स्तर पर प्रतिनिधित्व दे सके। हालांकि, अपवाद के रूप में नवल किशोर शाही का नाम प्रमुख है, जिन्होंने न केवल मंत्री पद संभाला बल्कि बाद में राजनीतिक दलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रुन्नीसैदपुर विधानसभा क्षेत्र सीतामढ़ी जिले का हिस्सा है और यह सामान्य श्रेणी की सीट है। यहां की आबादी मुख्य रूप से ग्रामीण है, जहां बाढ़(2006 के बाद स्थिति कंट्रोल में है), गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों और ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के अनुसार 1952 से लेकर 2020 तक के चुनावों में यहां से विभिन्न दलों के विधायक चुने गए हैं जिनमें 1952 में विवेकानंद गिरी,1957 में त्रिवेणी प्रसाद सिंह,1962 में विवेकानंद गिरी,1967 में विवेकानंद गिरी,1969 में भुवनेश्वर राय,1972 में त्रिवेणी प्रसाद सिंह,1977 में नवल किशोर शाही,1980 में विवेकानंद गिरी,1985 में फिर से नवल किशोर शाही,1990 में फिर नवल किशोर शाही,1995,2000 और फरवरी 2005 में भोला राय,अक्टूबर 2005 में गुड्डी देवी,2010 में गुड्डी देवी, 2015 में मंगिता देवी और 2020 में पंकज कुमार मिश्रा विधायक बने।अर्थात कांग्रेस, जनता दल परिवार और आरजेडी जैसे दलों का दबदबा रहा है लेकिन अधिकांश विधायक स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहे।

1990 तक रुन्नीसैदपुर से तीन बार विधायक चुने गए नवल किशोर शाही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने राज्य स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1985 और 1990 के चुनावों में जीते और बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। हालांकि, बाद के चुनावों में वे हार गए, लेकिन उन्होंने शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल होकर बिहार प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाई। इससे उन्हें पूरे राज्य में एक नेता के रूप में मान्यता मिली, जो क्षेत्र के लिए गौरव की बात है।

विवेकानंद गिरी कांग्रेस (आई) से जीते, लेकिन उनके कार्यकाल में कोई प्रमुख राज्य स्तर की भूमिका नहीं दर्ज है। वे कई बार (1952, 1962, 1967, 1980) जीते, लेकिन मंत्री पद या राष्ट्रीय पहचान नहीं बना सके।भोला राय जनता दल और आरजेडी से लगातार जीते। वे क्षेत्र के विकास में सक्रिय रहे, लेकिन मंत्री पद नहीं मिला और उनकी पहचान स्थानीय तक सीमित रही। उनका निधन हो चुका है।गुड्डी चौधरी जेडीयू से जीतीं। वे युवा विधायक के रूप में उभरीं, लेकिन बाद में जेडीयू छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं। कोई मंत्री पद या राज्य स्तर की प्रमुख भूमिका नहीं।मंगिता देवी 2015 में आरजेडी से जीतीं, जो भोला राय की बहू हैं। उन्होंने स्थानीय मुद्दों पर काम किया, लेकिन मंत्री नहीं बनीं।पंकज कुमार मिश्रा वर्तमान विधायक हैं। वे एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं, लेकिन अभी तक मंत्री पद नहीं मिला है।

दूसरी तरफ सीतामढ़ी जिले का रुन्नी सैदपुर विधानसभा क्षेत्र अपनी मशहूर मिठाई ‘बालूशाही’ के लिए देशभर में जाना जाता है। इस क्षेत्र की बालूशाही की ख्याति इतनी है कि इसे भौगोलिक संकेतक (GI) टैग देने की बात की जा रही जो इसकी गुणवत्ता और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित करता है। लेकिन, विडंबना यह है कि जहां बालूशाही ने देश और वैश्विक पहचान बनाई, वहीं रुन्नी सैदपुर के विधायकों की पहचान स्थानीय सीमाओं से बाहर नहीं निकल सकी। पिछले कई दशकों में इस क्षेत्र से कई विधायक चुने गए लेकिन उनमें से अधिकांश क्षेत्र को राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व देने में असफल रहे। केवल नवल किशोर शाही ही अपवाद रहे, जो 1985 और 1990 में विधायक चुने गए और बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री बने।1980 के दशक से लेकर 2025 तक रुन्नी सैदपुर ने विवेकानंद गिरी, भोला राय, गुड्डी चौधरी, मंगिता देवी और पंकज कुमार मिश्रा जैसे विधायकों को देखा। इनमें से कोई भी मंत्री पद तक नहीं पहुंच सका, न ही इन्होंने कोई ऐसी पहचान बनाई जो क्षेत्र को बिहार या देश स्तर पर गौरव दिलाए। बालूशाही की मिठास ने स्थानीय मिठाई दुकानों से लेकर देश के कोने-कोने तक अपनी जगह बनाई, लेकिन विधायकों की उपलब्धियां सीमित रहीं। GI टैग बालूशाही को एक विशिष्ट पहचान दिला सकती जिससे यह मिठाई अब बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन चुकी है। दूसरी ओर विधायकों को ‘नेता’ का टैग मिलना तो दूर क्षेत्र की मूलभूत समस्याएं ही अनसुलझी हैं।

कुल मिलाकर रुन्नी सैदपुर की जनता आज भी एक ऐसे नेता की प्रतीक्षा में है जो उनकी आवाज को विधानसभा से आगे ले जाए। नवल किशोर शाही ने एनसीपी के बिहार अध्यक्ष के रूप में राज्य स्तर पर अपनी छाप छोड़ी, लेकिन उनके बाद कोई और ऐसा नहीं कर सका।GI टैग की बात ने बालूशाही को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई लेकिन विधायकों के लिए ‘नेता’ का टैग अब भी एक सपना है। क्षेत्र की जनता उम्मीद करती है कि भविष्य में कोई ऐसा नेता उभरेगा जो बालूशाही की तरह रुन्नी सैदपुर को भी देश के नक्शे पर गर्व के साथ स्थापित करे।2025 के आगामी चुनावों में मतदाताओं को उम्मीद है कि कोई ऐसा उम्मीदवार उभरे जो क्षेत्र को कम से कम प्रदेश स्तर पर प्रतिनिधित्व दे सके। बदकिस्मती से या फिर जिसकी संभावना ज्यादा है कि इतिहास दोहराया जाएगा तो यह क्षेत्र फिर से एक ‘सिर्फ विधायक’ वाला इलाका भर रह जाएगा।

(लेखक रुन्नीसैदपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के स्थानीय निवासी,वरिष्ठ पत्रकार और प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक जागरण ग्रुप से जुड़े हुए)

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