पटना में हाल ही में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. रजनीश कांत और उनकी टीम ने “दर्द मुक्त बिहार” की प्रेरणादायक परिकल्पना को साझा किया। यह पहल न केवल बिहार के लोगों के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक स्वस्थ, दर्द मुक्त जीवन का सपना प्रस्तुत करती है। डॉ. कांत ने बताया कि आज बिहार में शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहां दर्द की समस्या न हो। लोग दर्द निवारक गोलियों पर अत्यधिक निर्भर हो रहे हैं, जिसके गंभीर दुष्प्रभाव लीवर और अन्य अंगों पर पड़ रहे हैं। उनकी यह पहल लोगों को जागरूक करने और बिना दवाओं के दर्द से मुक्ति पाने के उपाय सुझाने पर केंद्रित है।
डॉ. कांत ने बताया कि गलत तरीके से चलना, बैठना और सोना हमारी रीढ़ की हड्डियों पर बुरा असर डालता है। इससे नस दबने की समस्या उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप सिरदर्द, चक्कर, हाथ-पैरों का सुन्न होना और यहां तक कि मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं। उनकी टीम ने अब तक एक लाख से अधिक लोगों का सफल उपचार किया है और हर महीने आयोजित होने वाले स्वास्थ्य कैंपों में सैकड़ों मरीजों को लाभ मिल रहा है। यह उपचार पद्धति कोई नया आविष्कार नहीं है, बल्कि बिहार की प्राचीन परंपराओं से प्रेरित है।
डॉ. कांत ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा द्वापर युग में कुबजा को सीधा करने के उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पद्धति प्राचीन भारतीय ज्ञान का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि 1895 से विदेशी शोधकर्ताओं ने इस पर काम शुरू किया और आज अमेरिका जैसे देशों में इसे वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त है। हालांकि, यह दुखद है कि बिहार में इस पद्धति के लिए अभी तक कोई संस्थागत शिक्षा या कॉलेज स्थापित नहीं हुआ है।
डॉ. कांत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने उपचार और वीडियो को लेकर फैल रही भ्रांतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका उपचार पुरुष, महिला, बच्चे और बुजुर्ग सभी के लिए समान है। यह धारणा पूरी तरह गलत है कि वे केवल महिलाओं का प्रचार करते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक डॉक्टर का टच कभी “बैड टच” नहीं हो सकता और उनका एकमात्र उद्देश्य मरीजों की समस्याओं का समाधान करना है।
डॉ. कांत और उनकी टीम का ध्यान अब आम जनता पर केंद्रित है। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी पहले ही उनकी सेवाओं का लाभ उठा चुके हैं, लेकिन अब उनका लक्ष्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों तक पहुंचना है। इसके लिए वे नियमित रूप से निःशुल्क स्वास्थ्य कैंप आयोजित करते हैं, जहां लोग बिना किसी लागत के उपचार प्राप्त कर सकते हैं। उनकी टीम न केवल जोड़ों और रीढ़ की हड्डी के दर्द का इलाज करती है, बल्कि मानसिक संतुलन, एसिडिटी, गैस, चक्कर और अन्य सामान्य बीमारियों को भी सही बैठने, चलने और रीढ़ की हड्डी के संरेखण (स्पाइन एलाइनमेंट) के माध्यम से ठीक करती है।
डॉ. कांत का विजन केवल बिहार तक सीमित नहीं है। उनका सपना है कि पूरे भारत और विश्व में लोग बिना दवाओं और महंगे इलाज पर निर्भर हुए स्वस्थ जीवन जी सकें। उनकी यह पहल न केवल शारीरिक दर्द से मुक्ति दिलाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह समाज को जागरूक करने और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करने का भी प्रयास है।
“दर्द मुक्त बिहार” की परिकल्पना एक ऐसी पहल है, जो प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अनूठा संगम है। डॉ. रजनीश कांत और उनकी टीम का यह प्रयास न केवल बिहार, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा है। उनकी मेहनत और समर्पण से यह उम्मीद जागती है कि एक दिन लोग दवाओं पर निर्भरता के बिना स्वस्थ और दर्द मुक्त जीवन जी सकेंगे।