पटना:सिक्की कला एक पर्यावरण के अनुकूल और GI-टैग से लैस पारंपरिक और दुर्लभ हस्तशिल्प है| इसके चीज़ों को बनाने का कौशल सिखाने के लिए एक 10-दिवसीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम आज एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) की EIACP-CSEC इकाई ने प्रारंभ की। सिक्की उत्पादों में आधुनिक उपयोगी वस्तुएँ जैसे टोकरी, ट्रे, कटोरे, और संदूक से लेकर देवताओं और मंदिरों की त्रि-आयामी आकृतियाँ जैसी सजावटी वस्तुएँ शामिल हैं। यह बिहार में और विशेष रूप से मिथिलांचल क्षेत्र में पाई जाने वाली सुनहरी सिक्की घास से बनाई जाती है।
कार्यक्रम की शुरुआत पटना स्थित राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (NIFT) की प्रोफेसर रजनी श्रीवास्तव ने की। उन्होंने अतीत को याद करते हुए बताया कि कैसे बिहार में शादियों के समय परिवार सिक्की से बने बड़े और रंग-बिरंगे इस घास से बने डलिया भेजते थे। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश आज सिक्की की मांग लगभग समाप्त हो चुकी है। इस कला की खूबसूरती यह है कि यह एक रेखीय सामग्री (सिक्की घास) को एक अनोखी तकनीक से त्रि-आयामी कलाकृतियों में बदल देता है। उन्होंने महिला प्रशिक्षणार्थियों से आग्रह किया कि वे सिक्की उत्पाद बनाते समय अपनी कल्पना का उपयोग करें और यह भी सोचें कि ये उत्पाद किनके लिए बनाए जाएं | क्या यह कॉलेज छात्रों के लिए बनाएं या फिर बच्चों या वयस्कों के लिए? इसके बाद NIFT-पटना की ही प्रोफेसर रागिनी रंजन ने बल दिया कि सिक्की का व्यापक उपयोग हमारे पर्यावरण को बचाने में मदद कर सकता है, जो प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग के कारण खतरे में है। उन्होंने बताया कि दुनिया भर में इस कला की माँग है और इसे सीखने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है।
इस अवसर पर जयनगर की बहु-पुरस्कार विजेता सिक्की कलाकार नजदा खातून भी उपस्थित थीं। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षणार्थी इस कला की सुनहरी विशेषताओं को तभी समझ पाएंगे जब वे स्वयं इसे बनाने का अभ्यास शुरू करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि अतीत में यदि सिक्की उत्पाद शादी के तोहफों में शामिल नहीं रहते थे तो लोग इसे अपशकुन मानते थे।महिलाओं को सुरक्षित आजीविका प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किए गए इस निःशुल्क सिक्की प्रशिक्षण कार्यक्रम को भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है। आद्री में EIACP की समन्वयक डॉ. मौसमी गुप्ता ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के आयोजन में डॉ. सुनील कुमार गुप्ता, मौसम बहार, संजीव कुमार और गुलशन पटेल ने उत्साहपूर्वक सहयोग किया।