पटना(न्यूज डेस्क): बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियां चरम पर पहुंच चुकी हैं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण को चुनौती देने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी जनता दल (यूनाइटेड) की पहली उम्मीदवार सूची में चतुर सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया है। पार्टी ने कुल 57 नामों वाली इस लिस्ट में 40 फीसदी टिकट कोइरी (कुशवाहा) और कुर्मी समुदायों को दिए हैं, जबकि 23 फीसदी सवर्ण उम्मीदवारों को आवंटित किए गए हैं। यह रणनीति न केवल नीतीश के पारंपरिक ‘लव-कुश’ वोटबैंक को मजबूत करेगी, बल्कि भाजपा के सवर्ण समर्थकों को भी लुभाने का प्रयास है।
नीतीश कुमार, जो खुद कुर्मी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, ने हमेशा से अत्यंत पिछड़ी जातियों (ईबीसी), महादलितों और लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) गठजोड़ पर निर्भरता बनाए रखी है। बिहार की जनसंख्या में कोइरी लगभग 4.2 प्रतिशत और कुर्मी 2.87 प्रतिशत हैं, लेकिन इनका वोटबैंक एनडीए के लिए निर्णायक साबित होता है। पहली लिस्ट में इन दोनों जातियों को मिले 40 फीसदी टिकट (लगभग 23 सीटें) इस बात का संकेत हैं कि जेडीयू अपना कोर बेस मजबूत करने के साथ-साथ 2024 लोकसभा चुनाव में आरजेडी द्वारा कोइरी वोटों के कुछ हिस्से हड़पने की कोशिश को विफल करना चाहती है।
सवर्णों को 23 फीसदी टिकट देकर नीतीश ने भाजपा के साथ गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश की है। सूची में राजपूतों को 15, भूमिहारों को 11, ब्राह्मणों को 7 और कायस्थों को 15 टिकट मिले हैं। यह वितरण भाजपा के पारंपरिक वोटबैंक को टारगेट करता है, जहां सवर्ण (कुल 15.52 प्रतिशत जनसंख्या) का प्रभाव हमेशा से मजबूत रहा है। एनडीए में जेडीयू के 101 उम्मीदवारों में से यह पहली लिस्ट ईबीसी और ओबीसी पर फोकस रखते हुए मुस्लिम उम्मीदवारों को नजरअंदाज करती दिखी, जहां केवल 4 नाम शामिल हैं। विपक्षी आरजेडी ने इसे ‘मुस्लिम वोटबैंक को धोखा’ बताते हुए निशाना साधा है।
बाहुबली, यादव और लव-कुश का त्रिकोणीय संघर्ष: बिहार की राजनीति में जाति का दबदबा हमेशा से रहा है। नीतीश की यह रणनीति आरजेडी के यादव (14.27 प्रतिशत) और मुस्लिम (लगभग 17 प्रतिशत) गठजोड़ को सीधे चुनौती देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, नीतीश का ईबीसी (36 प्रतिशत) पर पकड़ मजबूत है, लेकिन लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने कुशवाहा वोटों में सेंध लगाई थी। अब जेडीयू कोइरी-कुर्मी एकता को फिर से जकड़ने की कोशिश में है। वहीं, भाजपा सवर्णों के साथ दलित और कुछ ओबीसी वोटों पर नजर रखे हुए है। एनडीए की कुल सीटें 136-150 के बीच अनुमानित हैं, लेकिन महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-वामपंथी) यादव-मुस्लिम समीकरण से 100 सीटों का लक्ष्य रख रहा है।
नीतीश सरकार ने हाल ही में जारी जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया है, जिसमें ओबीसी-ईबीसी को 63 प्रतिशत बताया गया है। पार्टी ने महिलाओं को केवल 13 टिकट (कुल 15 प्रतिशत से कम) दिए हैं, जो आरक्षण बहस को फिर से हवा दे सकता है। पूर्व विधायकों को दोबारा मौका देकर वफादारी का इनाम दिया गया है, जिसमें उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (कोइरी) और विजय सिन्हा (भूमिहार) जैसे चेहरे शामिल हैं।
चुनाव आयोग ने आज ही तारीखों की घोषणा की है, और प्रचार युद्ध तेज हो चुका है। प्राशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी मैदान में है, जो शहरी और सुधारवादी वोटों पर निशाना साध रही है। क्या नीतीश की यह सोशल इंजीनियरिंग बाहुबली यादवों के सामने टिक पाएगी, या लव-कुश गठजोड़ फिर से एनडीए को सत्ता की कुंजी सौंपेगा? बिहार की जनता का फैसला ही इतिहास लिखेगा।