बिहार की सियासत में एक नया समीकरण उभरता दिखाई दे रहा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने अब “ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस (GDA)” के गठन की घोषणा कर दी है। इस गठबंधन में कई छोटे क्षेत्रीय दलों को शामिल करने की कोशिशें तेज हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इस गठबंधन का मकसद बिहार की राजनीति में हाशिए पर रहे तबकों — खासकर दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग — को एक साझा मंच देना है। AIMIM का यह कदम न सिर्फ RJD और JDU के पारंपरिक वोट बैंक को चुनौती देगा, बल्कि NDA के लिए भी नए समीकरण तैयार कर सकता है।
ओवैसी ने कहा कि यह गठबंधन “सत्ता हासिल करने नहीं, बल्कि हक़ दिलाने” की लड़ाई है। AIMIM का यह नया प्रयोग उस समय आया है जब बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं और हर दल अपने-अपने सामाजिक समीकरण को साधने में जुटा है। पार्टी रणनीतिकारों का कहना है कि GDA में आरएलएसपी, भीम आर्मी, एसडीपीआई और कुछ अति-पिछड़े वर्गों के संगठन को भी जोड़ने की बातचीत चल रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि AIMIM का यह कदम, अगर जमीन पर मजबूत संगठनात्मक ढांचे के साथ उतरता है, तो सीमांचल से लेकर मगध तक विपक्षी दलों के समीकरण बिगाड़ सकता है।
AIMIM का “ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस” सिर्फ एक राजनीतिक गठबंधन नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक जनधारा की खोज के रूप में देखा जा रहा है। बिहार में मुस्लिम और दलित समाज की राजनीतिक भागीदारी लंबे समय से बड़े दलों के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन AIMIM इस गठबंधन के ज़रिए उन वर्गों को नया राजनीतिक घर देना चाहती है, जो पारंपरिक दलों से नाराज़ हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर GDA सीमांचल, पटना, गया और भागलपुर जैसे इलाकों में संगठनात्मक उपस्थिति मजबूत कर लेता है, तो यह गठबंधन 2025 के विधानसभा चुनाव में “किंगमेकर” की भूमिका निभा सकता है। फिलहाल सभी की नज़र AIMIM के इस नए गठबंधन पर है, जो बिहार की राजनीति में तीसरे मोर्चे के रूप में नई पटकथा लिख सकता है।