पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का राजनीतिक तापमान चरम पर है। दूसरे चरण में 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान होना है, जिनमें से 19 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है। इन सीटों पर एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज जैसे दलों के बीच सीधा संघर्ष बन रहा है। वहीं कई जगहों पर निर्दलीय और बागी उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से मुकाबला और भी दिलचस्प हो गया है। इन बागियों ने अपने-अपने दलों के आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए सिरदर्द बढ़ा दिया है, जिससे चुनावी समीकरण लगातार बदल रहे हैं।
गोपालपुर, दिनारा, कसबा, परिहार और रूपौली जैसी सीटों पर बागी नेताओं ने सियासी माहौल गर्म कर दिया है। गोपालपुर से जदयू के बागी गोपाल मंडल, दिनारा से पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह, कसबा से कांग्रेस के बागी आफाक आलम, परिहार से राजद की बागी रीतू जायसवाल और रूपौली से निर्दलीय विधायक शंकर सिंह अपने-अपने दलों को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। सासाराम सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला दिलचस्प हो गया है, जहां रालोमो नेता उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता कुशवाहा का मुकाबला राजद प्रत्याशी सत्येंद्र शाह और बसपा के डॉ. अशोक कुमार से है। यहां कुशवाहा वोटरों की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है।
इधर, महागठबंधन में भी फ्रेंडली फाइट की स्थिति बनी हुई है। छह सीटों पर घटक दल राजद और कांग्रेस आमने-सामने हैं। इनमें सुलतानगंज, कहलगांव, सिकंदरा और नरकटियागंज प्रमुख हैं। खासकर नरकटियागंज सीट पर एनडीए के संजय पांडेय, कांग्रेस के शाश्वत केदार पांडेय और राजद के दीपक यादव के बीच त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, इस बार बिहार में न सिर्फ गठबंधन की ताकत, बल्कि स्थानीय समीकरण, जातीय गणित और बागी फैक्टर चुनावी परिणामों को बड़ा मोड़ दे सकते हैं।

