सीवान की राजनीति एक बार फिर पुराने रंग में लौट आई है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद (RJD) ने दिवंगत बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को मैदान में उतारकर इस ऐतिहासिक सीट पर सियासी माहौल में जबरदस्त हलचल मचा दी है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह सिर्फ़ एक प्रत्याशी की एंट्री नहीं बल्कि उस “विरासत” की वापसी है जिसने सीवान की राजनीति को तीन दशकों तक प्रभावित किया।
ओसामा शहाब की एंट्री के साथ ही सीवान में एक बार फिर मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण केंद्र में आ गया है। भाजपा और एनडीए इस समीकरण को तोड़ने की रणनीति में जुट गए हैं। 2020 में राजद ने यह सीट एनडीए के वोट विभाजन के कारण जीती थी, लेकिन इस बार एलजेपी (रामविलास) की वापसी ने मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है। अब सीवान की लड़ाई वोटों के बिखराव से आगे बढ़कर सीधी टक्कर का रूप ले चुकी है।
सीवान में आज भी शहाबुद्दीन का नाम दो भावनाओं से जुड़ा है—एक ओर भय, दूसरी ओर आस्था। बुज़ुर्ग मतदाता पुराने दौर की यादें ताज़ा करते हैं, जबकि नई पीढ़ी ओसामा शहाब में बदलाव और नई राजनीति की उम्मीद देख रही है। यह चुनाव अब केवल सीट की नहीं, बल्कि विरासत बनाम बदलाव की जंग बन गया है, जिसमें जनता तय करेगी कि सीवान का भविष्य किस दिशा में जाएगा।

