राजेंद्र चतुर्वेदी
अडाणी ग्रुप वाले मामले में कुछ भी नहीं बदला है। गुजरे हफ्ते अडाणी की कम्पनियों के शेयरों में उछाल इसलिए देखा गया कि अमेरिकी फर्म जीक्यूजी ने 15 हजार 446 करोड़ के शेयर खरीदे।क्रमबद्ध तरीके से अडाणी ग्रुप की कम्पनियों में की गई इस खरीदारी का बाजार के मनोविज्ञान पर सकारात्मक असर निश्चित ही पड़ा होगा और उसे देखकर कुछ खुदरा और संस्थागत निवेशक भी तियाचू बन गए होंगे।
लेकिन जो निवेशक होता है, वह बहुत समझदार होता है, इसलिए उसे लम्बे समय तक के लिए नहीं बनाया जा सकता। यानी अडाणी की कम्पनियों के शेयरों में जो मोमेंटम दिखा, वह स्थाई नहीं है।स्थाई है हिण्डनबर्ग की रिपोर्ट, जो अडाणी के गले में घण्टी की तरह बंधी है और लगातार बज रही है।यह घण्टी इसके बाद भी बज रही है कि पूरा गोदी मीडिया, पूरी गोदी सरकार, पूरे गोदी कानूनविद, पूरे गोदी इंस्टिट्यूशन उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं। ये सब कोशिश कर रहे हैं कि अगर ये घण्टी रुके न, तो कम से कम उसकी आवाज ही धीमी पड़ जाए।
अलबत्ता, इस तरह न आवाज रुकेगी, न धीमी पड़ेगी। आवाज को रोकने या धीमा करने के प्रयास भारतीय अर्थव्यवस्था की बाट अलग से लगा देंगे, क्योंकि निवेशकों में ये साफ साफ संदेश जा रहा है कि भारत में सबके सब, पूरी कायनात एक ऐतिहासिक घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है।जहां आर्थिक अपराध को छिपाया जाता है, वहां निवेशक निवेश नहीं करते। ग्लोबल अर्थव्यवस्था में निवेश अगर न आए तो बहुत नुकसान होता है। हमें उस नुकसान के लिए तैयार रहना चाहिए।यहां आपके दिमाग में ये सवाल आ चुका होगा कि अगर ऐसा है तो अडाणी ग्रुप के शेयरों में अमेरिकी फर्म जीक्यूजी ने 15 हजार 446 करोड़ रुपए क्यों लगा दिए।ये बढ़िया सवाल है और सच कहें तो यही सवाल इस पूरी पोस्ट का सार भी है।
जीक्यूजी के मालिक श्री राजीव जैन साब हैं।गुजरात मूल के श्री राजीव जैन साब श्री विनोद अडाणी जी के समधी हैं।भारतीय नागरिकता छोड़कर मॉरीशस की नागरिकता ग्रहण करने वाले और फिलहाल दुबई में रह रहे श्री विनोद अडाणी श्री गौतम अडाणी के भाई साब हैं यानी मोटा भाई। यह आरोप इन पर ही है कि इन्होंने दो दर्जन से ज्यादा शेल कम्पनियां बनाईं। उनके जरिए श्याम धन को धवल किया और फिर उसका निवेश अडाणी ग्रुप की कम्पनियों में किया। खैर…। भाई का रिश्तेदार अपना रिश्तेदार होता ही है, सो इस तरह श्री राजीव जैन साब श्री गौतम अडाणी के भी रिश्तेदार हुए।बात इतनी सी है कि रिश्तेदार ने रिश्तेदार की साख बनाने के लिए 15 हजार 446 करोड़ रुपए झोंक दिए। जब हमारे पास सात लाख करोड़ से ज्यादा हों, तब क्या हम अपने रिश्तेदार पर 15,466 करोड़ रुपए खर्च नहीं कर सकते।