कर्नाटक में कांग्रेस जीत की भंगिमा में है. नेताओं की देहभाषा उसी दिशा में है. हौसला बुलंद होना भी चाहिए. मगर जिसे परास्त करना है, वो कम खिलाड़ी नहीं हैं. सारी मशीनरी उनके साथ है. सत्तापक्ष से षड्यंत्र करनेवाले रोज़ कुछ नया व्यूह रच रहे हैं, क्या उस व्यूह को तोड़ पाने में कांग्रेस सक्षम है? ‘वोट फ्रॉम होम‘ 29 अप्रैल से आरंभ हो चुका। चुनाव प्रचार के साथ-साथ मतदान। क्या विचित्र स्थिति रच दी गई है।
पुष्परंजन
बंगलुरू के श्रीरामपुरा इलाक़े में थर्ड क्रास रोड पर एक सर्वे कंपनी है, ‘एडिना कम्युनिटी‘। इस कंपनी ने कुछ दिन पहले एक ‘मेगा सर्वे‘ कराया था, जिसमें 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस को 134 से 140 और बीजेपी को 57 से 65 सीटों के मिलने का अनुमान लगाया था। कन्नडा मीडिया सर्वे कंपनी के इस पूर्वानुमान को योगेन्द्र यादव ने राजनीतिक विश्लेषण का तड़का लगाते हुए जिस तरह से सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रस्तुत किया है, उससे बीजेपी तपी हुई है। शुक्रवार को बीजेपी के बहुत सारे नेताओं ने इस सर्वे के विरूद्ध ट्विट वार छेड़ते हुए लिखा कि इस सर्वे पर भरोसा मत करें, यह ‘पकाया हुआ माल‘ है। योगेन्द्र यादव राहुल गांधी की भारत यात्रा में दक्षिण में अवतरित हुए थे, और मेवात के मंच पर भी उनका स्वागत किया था। राजनीति में योगेन्द्र यादव की शिद्दत और बेचैनी को समझने वाले समझते हैं।
‘एडिना कम्युनिटी‘ के कर्ता-घर्ता अपने साथ अरूंधति राय की तस्वीरें शेयर करते हैं, तो उसके भी राजनीतिक निहितार्थ हैं। ‘एडिना कम्युनिटी का सर्वे ‘मेगासर्वे‘ है, सामान्य नहीं। बताते हैं कि एडिना ने इस कार्य के लिए कोई एक हज़ार सिटीजन जर्नलिस्ट तैयार किये थे। इन लोगों ने 224 में से 204 विधानसभा क्षेत्रों में 41 हज़ार 169 लोगों से बातचीत की, उसे डाटा बैंक में डाला, और उसी आधार पर इसकी एनालिसिस की गई कि कर्नाटक के वोटर क्या सोचते हैं।
‘एडिना कम्युनिटी‘ ने जिन लोगों से बातचीत की, उसे वगीकृत भी किया है। कर्नाटक की कुल आबादी के 23 फीसदी महाग़रीबों का 48 फीसद वोट कांग्रेस को, बीजेपी को 28 और जेडीएस को 15 प्रतिशत मिलने का अनुमान ‘एडिना कम्युनिटी‘ के सर्वे में लगाया गया है। सूबे के 37 प्रतिशत महाग़रीबों से थोड़ा ऊपर वाले ग़रीब 46 फीसद वोट शेयर कांग्रेस को करेंगे, बीजेपी को 32 और जेडीएस को 15 प्रतिशत। एक तीसरा वर्ग है लोअर मिडल क्लास जो कर्नाटक की कुल आबादी का 26 प्रतिशत है। इनका भी रूझान सर्वे एजेंसी ने कांग्रेस की तरफ देखा है। ‘एडिना कम्युनिटी‘ के अनुसार, ‘लोअर मिडल क्लास का 39 प्रतिशत कांग्रेस को, 36 फीसद बीजेपी और 18 फीसद वोट शेयर जेडीएस के खाते में जाएगा।‘ उससे ऊपर 10 फीसद मिडल क्लास ने अपना 37 प्रतिशत वोट कांग्रेस को, बीजेपी को 38 और 18 फीसद खाते-पीते इस क्लास के लोगों ने जेडीएस को देना तय किया है। कर्नाटक का चार प्रतिशत अपर मिडल क्लास सबसे अधिक 41 प्रतिशत वोट बीजेपी को देगा, कांग्रेस को 29 और 20 फीसद वोट जेडीएस को देगा।
‘एडिना कम्युनिटी‘ का इशारा है कि मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास जो सूबे की आबादी के 14 प्रतिशत हैं, वो बीजेपी को पसंद करती हैं। लेकिन 63 प्रतिशत वोटर, जो निचले पायदान पर हैं, उन्होंने इसबार कांग्रेस को सत्ता में लाने का मन बना लिया है। ऐसा लगता है, ‘एडिना कम्युनिटी‘ ने सर्वे ग़रीब और अमीर की लक्ष्मणरेखा खींचकर सुनिश्चित की हो। ‘कांग्रेस की चार गारंटी‘ संभवतः इसी थ्योरी पर टिकी दीखती है। 200 यूनिट तक फ्री बिजली, 10 किलो मुफ्त अनाज, युवाओं को बेरोज़गारी भत्ता, जिस ग़रीब परिवार की मुखिया महिला है, उसे आर्थिक सहायता की गारंटी, ये सब लोकलुभावन वायदे एक क्लास को घ्यान में रखकर तैयार किये गये हैं। क्या ‘एडिना कम्युनिटी‘ से कोई रणनीतिक साझेदारी की गई है? बेहतर योगेंद्र यादव, और अरूंधती राय ही बता सकेंगे।
यों, कर्नाटक के 5 करोड़ 21 लाख, 73 हज़ार 579 वोटरों की थाह, 41 हज़ार 169 लोगों से बातचीत पर लगा लेना भी एक आर्ट है। कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा की 224 सीटों के लिए मतदान होना है। वोटों की गिनती 13 मई को होगी। मतगणना वाले दिन ‘एडिना कम्युनिटी‘ की भविष्यवाणी सही साबित हुई, तो उसके पौ बारह समझिए। मालूम नहीं, कांग्रेस ने पार्टी के स्तर पर कितना सर्वे कराया था। मगर, बीजेपी ने कराया था। इससे अलग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने नेटवर्क के ज़रिये चुनाव क्षेत्रों का जो सर्वे कराता है, वह केवल बीजेपी के बड़े नेताओं से साझा किया जाता है।
टिकट बांटने से पहले बीजेपी ने कर्नाटक के 58 हज़ार 200 पोलिंग बूथों पर बाकायदा ‘मॉक ट्रायल‘ कराया था। जिन विधायकों की छवि भ्रष्ट लगी, और लगा कि यह कुख्यात है, उसे टिकट नहीं देने की कवायद उसी ‘मॉक ट्रायल‘ का हिस्सा था। इस आपाधापी में 4 अप्रैल को बीजेपी प्रत्याशियों की एक ‘फेक लिस्ट‘ भी जारी हो गई थी, जिसे बाद में दुरूस्त किया गया। मगर, बीजेपी एंटी इन्कंबेसी से चोट खायेगी, इसकी आशंका दिल्ली तक के दिग्गज नेताओं को है। कर्नाटक चुनाव में इसबार पन्ना प्रमुख नहीं, बीजेपी कार्यकर्ताओं के 6500 शक्तिकेंद्र बनाये गये हैं। पांच बूथों पर एक शक्तिकेंद्र , और 10 शक्तिकेंद्रों को नियंत्रित करने के वास्ते एक ‘महाशक्ति केंद्र‘। कांग्रेस ने बीजेपी की इस व्यूह रचना को तोड़ने की कैसी तैयारी की है, वह खुलकर बताते नहीं। लेकिन सत्तापक्ष के लिए जो सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र है, वो है इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन। ईवीएम के ज़रिये खेला होबे संभव नहीं, इसकी गारंटी कौन देगा? मानों तो देव, नहीं तो नश्तर। चुनाव आयोग ‘नश्तर‘ नहीं चुभोयेगा, कैसे कह सकते हैं?
यों, चुनाव प्रचार वोटिंग से दो दिन पहले थम जाएगा। उससे पहले के नौ दिनों में जो शब्दभेदी वाण चलेंगे, क्या उसे एकदम से रोक देने की इच्छाशक्ति चुनाव आयोग में है? नफरतिया बयानों के केवल पांच मामले दर्ज़ किये गये हैं। ठीक से देखा जाए, तो वहां के माहौल को विषाक्त करने और वोटरों को विभाजित करने वाले दर्जनों बयान रोज़ जारी हो रहे हैं। आचारसंहिता उल्लंधन के दो हज़ार से अधिक दूसरे मामलों में से 50 प्रतिशत दोषी पाये गये हैं, ऐसा कर्नाटक के निर्वाचन अधिकारी प्रमोद कुमार मीणा ने बताया। चेकिंग के दौरान बड़ी मात्रा में शराब, सोना और 292 करोड़ नगदी भी ज़ब्त किये गये हैं।
मगर, एक सवाल कर्नाटक का आम मतदाता भी पूछ रहा है कि 80 साल से ऊपर वाले 12 लाख 15 हज़ार 763 बुजुर्गों, और पौने छह लाख विकलांगों को घर से वोट देने की सुविधा देने का विकल्प 28 अप्रैल को क्यों तय हुआ है? क्या ‘वोट फ्रॉम होम‘ जैसा चक्रव्यूह बीजेपी के लिए अलादीन का चिराग़ जैसा है? 29 अप्रैल से ही घर से मतदान आरंभ हो गया है, जो 6 मई तक चलेगा। एक तरह से मानकर चलिये कि कर्नाटक में मतदान 29 अप्रैल से आरंभ हो चुका। चुनाव प्रचार के साथ-साथ मतदान। क्या विचित्र स्थिति रच दी गई है।
‘वोट फ्रॉम होम‘ के वास्ते पांच सदस्यीय टीम हर ऐसे घर में जाएगी। इसमें दो पोलिंग अधिकारी, एक पुलिसवाला, एक विडियोग्राफर भी साथ में होगा। वोट देने वाले की आईडी देखी जाएगी, उसे बैलेट पेपर दिया जाएगा, किसी की निगाह न पड़े वैसी जगह पर वह मुहर लगाएगा, और बंद लिफाफे में बैलेटपेपर वह मतपेटिका डाल देगा। क्या सचमुच ऐसा ही होगा? आप फरवरी 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव को याद कीजिए, 80 साल से ऊपर के 24.2 लाख वोटरों में से केवल दस हज़ार वोटरों ने घर से वोट डालने पर सहमति दी थी। कर्नाटक में क्या होता है, इसकी प्रतीक्षा हमें करनी होगी।
एक बड़ा सवाल यह भी है कि कर्नाटक में बीजेपी किस के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है? मोदी चुनावी चेहरा हैं, या मुख्यमंत्री वसवराज बोम्मई? शनिवार से प्रधानमंत्री मोदी तूफानी प्रचार पर निकले हैं। सात मई तक 22 जनसभाएं और रोड शो कर मोदी चुनावी तापमान को बढ़ाएंगे। नरेंद्र मोदी से अलग, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, हेमंत विश्व शर्मा, योगी आदित्यनाथ जैसे भाजपा के सुपरस्टार प्रचारक भी रैलियां कर पूरे कर्नाटक को घांग देंगे। 2018 के चुनाव में पीएम मोदी ने 21 रैलियां की थीं। तब पीएम मोदी ने 164 सीटों को कवर किया था, बीजेपी को जीत 80 सीटों पर मिली थी। ‘एडिना कम्युनिटी‘ ने बीजेपी को 57 से 65 सीटों पर जीत की आशा जताई है। 40 परसेंट घूस लेने के आरोपों से घिरी डबल इंजन सरकार को पिछली बार से पन्द्रह सीटें कम मिलती है, तो बुरा क्या है?
जो बात बीजेपी सपने में भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है, वह है कांग्रेस की इतनी बड़ी संख्या में जीत। कर्नाटक को बीजेपी नेतृत्व ‘दक्षिण का द्वार‘ मानता रहा है। यदि इस द्वार को वोटरों ने बंद किया, तो आगे का क्या होगा? यह चिंता खाये जा रही है। जीत का सेहरा मोदी के सिर, यदि हारे तो बोम्मई का सिर ठीकरा फोड़ने के वास्ते काफी होगा। हालांकि, इतने सारे हाथी-घोड़ा-पालकी के बाद भी कर्नाटक में बीजेपी हार जाएगी, यह मानने को भक्तगण किसी भी सूरत में तैयार नहीं हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस जीत के क़रीब है, ऐसा सभाओं में भीड़ को लेकर भी उनकी लीडरशिप को लगता है। प्रियंका, अपनी दादी इंदिरा गांधी के अंदाज़ में रूद्राक्ष की माला घारण कर मंच पर अवतरित होती हैं। कांग्रेस की जीत का सेहरा हिमाचल की तरह प्रियंका गांघी के सिर बांधने की बेचैनी कांग्रेस की एक कोटरी में दिखने लगी है। चुनावी मंचों पर चिकमगलूर में इंदिरा गांधी की फतह को बार-बार याद दिलाना, बारिश की चर्चा कर मतदाताओं को इमोशनल करना, ये सारे प्रयोजन कितने कारगर होते हैं, राहुल गांघी की भारत यात्रा का क्या परिणाम आयेगा? यह कर्नाटक की प्रयोगशाला में इसबार स्पष्ट हो जाएगा। कांग्रेस जीती तो प्रियंका-राहुल की बल्ले-बल्ले, हारी तो सीएम पद की रेस लगा रहे सिद्धरामैया, डीके शिवकुमार और मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व पर सवाल उठेगा। कर्नाटक कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सतीश जर्कीहोली ने पहले से कह दिया कि हमारे जैसे नेता सीन में नहीं हैं।
ख़ैर, ‘एडिना कम्युनिटी‘ के अलावा कर्नाटक में छह और प्री पोल सर्वे को देखना दिलचस्प है। टीवी-9 और सी-वोटर ने कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी की है। दो अन्य एशियानेट सुवर्णा न्यूज़ की ‘जन की बात सर्वे‘ और ‘न्यूज़ फर्स्ट मैत्रीजे सर्वे‘ ने बीजेपी की जीत का पूर्वानुमान लगाया है। और बाक़ी दो ने हंग असेंबली का, जिसमें ‘विस्तारा न्यूज़‘ ने 88 से 93 बीजेपी को 84 से 90 कांग्रेस को और जेडीएस को 23 से 26 सीटें दी हैं। पीपुल्स पल्स ने 95 से 105 कांग्रेस को, 92 बीजेपी को, और जेडीएस को 25 से 30 के रेंज में सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। हंग असेंबली की दो भविष्यवाणियों को देखकर लगता है, जैसे जेडीएस ही किंग मेकर की भूमिका में होगी।
(लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक हैं।)