Patna:बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के दो प्रमुख दलित नेताओं, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और चिराग पासवान, के बीच तनाव बढ़ता दिख रहा है। हाल के बयानों और घटनाओं से इन दोनों नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई स्पष्ट हो रही है, जो एनडीए के लिए आगामी चुनाव में नुकसानदायक हो सकती है।
मांझी और चिराग के बीच तनातनी
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी ने हाल ही में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान के मगध-शाहाबाद दौरे में जुटी भीड़ को “भाड़े की भीड़” करार दिया। इस बयान को बिहार में दलित वोटों पर वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है। दोनों नेता, जो क्रमशः मुसहर और पासवान समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं, के बीच संबंधों को लेकर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। मांझी और चिराग के हालिया बयानों ने इस तनाव को और बढ़ा दिया है, जिसका असर विधानसभा चुनाव में एनडीए की संभावनाओं पर पड़ सकता है।
इमामगंज उपचुनाव विवाद
नवंबर 2024 में हुए बिहार विधानसभा उपचुनाव में इमामगंज सीट पर जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी एनडीए की उम्मीदवार थीं। इस सीट पर लगभग 24,000 पासवान मतदाता होने के बावजूद चिराग पासवान ने दीपा के पक्ष में प्रचार नहीं किया। इसकी वजह से सियासी हलकों में सवाल उठे कि चिराग ने मांझी के परिवार का समर्थन क्यों नहीं किया। इस सीट पर जनसुराज के उम्मीदवार जितेंद्र पासवान को 37,103 वोट मिले, और विश्लेषकों का मानना है कि चिराग के प्रचार से पासवान वोट दीपा मांझी को मिल सकते थे, जिससे उनकी जीत की संभावना बढ़ सकती थी। इस घटना ने मांझी और चिराग के बीच तनाव को और गहरा दिया।
मगध-शाहाबाद में दलित वोटों का महत्व
लोकसभा चुनाव 2024 में मगध और शाहाबाद क्षेत्र की कई संसदीय सीटों—पाटलिपुत्र, आरा, जहानाबाद, बक्सर, सासाराम, और औरंगाबाद—पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा। इस हार का प्रमुख कारण दलित वोटों का बिखराव माना गया। मगध-शाहाबाद क्षेत्र में 11 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित हैं, जिनमें फुलवारीशरीफ, मसौढ़ी, बाराचट्टी, बोधगया, कुटुंबा, इमामगंज, मोहनिया, चेनारी, राजपुर, अगिआंव, और मखदमपुर शामिल हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में इनमें से अधिकांश सीटें एनडीए के खाते में नहीं आई थीं।
दलित जातियों की जनसंख्या
बिहार सरकार की 2022 की जातिगत जनगणना के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जातियों की आबादी 2.56 करोड़ से अधिक है, जो कुल आबादी का 19.65% है। पासवान (दुसाध) जाति की आबादी 69.43 लाख (5.31%) है, जो यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति है। मुसहर समुदाय की आबादी 40.35 लाख (3.08%) और उनकी उपजाति भुईयां की आबादी 11.74 लाख है। चमार (रविदास) समुदाय की आबादी 68.69 लाख है। हालांकि, सियासी प्रतिनिधित्व में पासवान समुदाय का प्रभाव मुसहरों की तुलना में अधिक दिखता है।
संभावित नुकसान
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अगर मांझी और चिराग के बीच तनाव बना रहा, तो दलित वोटों—खासकर पासवान और मुसहर समुदायों—में बिखराव हो सकता है। चमार समुदाय के वोटरों के लिए कोई मजबूत प्रतिनिधि चेहरा न होने से भी एनडीए को नुकसान हो सकता है। सासाराम से कांग्रेस सांसद, जो चमार समुदाय से हैं, इस वर्ग के वोटों को प्रभावित कर सकते हैं। यदि दलित वोट बंटते हैं, तो एनडीए को विधानसभा चुनाव में मगध-शाहाबाद क्षेत्र की कई सीटों पर नुकसान हो सकता है, जैसा कि लोकसभा चुनाव 2024 में देखने को मिला।चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के बीच तनाव एनडीए के लिए बिहार विधानसभा चुनाव में चुनौती बन सकता है। दलित वोटों का एकजुट रहना एनडीए की जीत के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई और आपसी तनाव इस संभावना को कमजोर कर सकते हैं।