औरंगाबाद (बिहार): बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले, उत्तर कोयल नहर परियोजना में 50 साल से भी अधिक की देरी ने राजनीतिक गलियारों और स्थानीय लोगों के बीच सवाल खड़े कर दिए हैं। यह परियोजना, जो बिहार और झारखंड के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए जीवनरेखा मानी जाती है, अब तक पूरी नहीं हो पाई है। दशकों से राजनीतिक दलों के चुनावी वादों का हिस्सा रही यह परियोजना, इस बार भी चुनावी मुद्दा बन गई है। औरंगाबाद और गया जिलों के किसान, जो लंबे समय से इस नहर के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं, नेताओं से जवाब मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि इस बार वे वोट उसी को देंगे जो इस परियोजना को पूरा करने की ठोस योजना पेश करेगा। हाल ही में हुए एक विरोध प्रदर्शन में किसानों ने अपनी आवाज बुलंद करते हुए परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की है, ताकि उन्हें सिंचाई के लिए पानी मिल सके।
1972 में अविभाजित बिहार में शुरू हुई इस परियोजना का काम 1993 में रोक दिया गया था, जिससे हजारों किसान आज भी सिंचाई के लिए पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इस परियोजना का लक्ष्य झारखंड के पलामू और गढ़वा जिलों के साथ-साथ बिहार के औरंगाबाद और गया जिलों के सूखाग्रस्त क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा प्रदान करना था। अगस्त 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस परियोजना के शेष काम को पूरा करने के लिए 1,622.27 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी दी थी, लेकिन यह काम आज भी अधर में लटका हुआ है। जुलाई 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस परियोजना की समीक्षा की थी। हालांकि, अब अक्टूबर 2025 में भी इस पर काम पूरा होता नजर नहीं आ रहा है, जिससे किसानों में रोष बढ़ता जा रहा है। इस साल भी धान की रोपाई के समय किसानों को पानी की कमी का सामना करना पड़ा है।
उत्तर कोयल नहर परियोजना का अधर में लटकना, बिहार और झारखंड के सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लाखों किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस परियोजना के पूरा होने से न केवल सिंचाई की समस्या का समाधान होगा, बल्कि यह क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी गति देगा। चुनाव के समय यह मुद्दा और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि किसान अपनी समस्याओं को उजागर करने और नेताओं से समाधान की मांग करने का अवसर पाते हैं। यह देखना होगा कि इस बार कौन सा राजनीतिक दल इस महत्वपूर्ण परियोजना को पूरा करने के लिए ठोस कदम उठाने का वादा करता है और किसानों का विश्वास जीत पाता है। परियोजना का भविष्य और क्षेत्र के किसानों की खुशहाली काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि चुनाव के बाद कौन सी सरकार बनती है और वह इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेती है।