भारत सरकार ने दवा उद्योग के प्रति अपना रुख और सख्त कर दिया है। हाल ही में कई देशों में भारतीय कफ सिरप के कारण हुई मौतों और स्वास्थ्य संकटों के बाद अब केंद्र सरकार ने सभी दवा कंपनियों को अपने उत्पादन संयंत्रों को अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों (WHO-GMP) के अनुरूप अपग्रेड करने का आदेश दिया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अब किसी भी फार्मा यूनिट को लापरवाही या पुरानी तकनीक के साथ उत्पादन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। सरकार ने कहा है कि देश में बनी दवाइयाँ न केवल घरेलू बाज़ार के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की साख का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होगा।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में लगभग 8,500 दवा निर्माता यूनिट्स हैं, जिनमें से लगभग 2,000 को WHO-मानकों पर खरा उतरने के लिए आवश्यक सुधार करने की जरूरत है। इन इकाइयों को दी गई समयसीमा अब समाप्त हो चुकी है, और सरकार ने दो टूक चेतावनी दी है कि जो कंपनियाँ तय समय तक सुधार नहीं करेंगी, उनकी लाइसेंस रद्द किए जा सकते हैं। इस निर्णय के बाद फार्मा उद्योग में हलचल मच गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारतीय दवा उद्योग के लिए दीर्घकालिक रूप से लाभदायक साबित होगा, क्योंकि इससे देश की दवाइयों पर वैश्विक स्तर पर भरोसा और बढ़ेगा। वहीं, कुछ छोटे निर्माताओं ने सरकार से अतिरिक्त वित्तीय सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन की मांग की है।
गौरतलब है कि 2023 और 2024 में भारत से निर्यात किए गए कुछ कफ सिरप के सेवन से अफ्रीकी देशों — विशेषकर गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून — में बच्चों की मौतों के मामले सामने आए थे। इन घटनाओं के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को कड़े कदम उठाने की सलाह दी थी। अब सरकार ने फार्मा कंपनियों के लिए नियमित निरीक्षण, ऑडिट और सैंपल-टेस्टिंग को और सख्त करने का निर्णय लिया है। दवा नियंत्रक जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) की टीमें अब छोटे-मोटे संयंत्रों तक पहुंचकर जांच कर रही हैं। केंद्र का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया का उद्देश्य किसी कंपनी को सज़ा देना नहीं, बल्कि पूरे भारतीय दवा उद्योग को “गुणवत्ता की नई ऊँचाइयों” पर ले जाना है। इससे भारत “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” के रूप में अपनी पहचान को और मजबूत करेगा।