इरफ़ान अली ख़ान भारतीय हिन्दी सिनेमा और टेलीविजन के प्रसिद्ध अभिनेता थे। उनके चाहने वालों की संख्या लाखों में है। इरफ़ान ख़ान के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी आँखों से ही सारा अभिनय कर देते थे। उन्होंने ‘द वॉरियर’, ‘मकबूल’, ‘हासिल’, ‘द नेमसेक’, ‘रोग’ जैसी फ़िल्मों से अपने अभिनय का लोहा मनवाया। ‘हासिल’ फ़िल्म के लिये उन्हें वर्ष 2004 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। वे हिन्दी सिनेमा की तीस से ज्यादा फ़िल्मों में अभिनय कर चुके थे। इरफ़ान ख़ान का नाम हॉलीवुड में भी अपनी पहचान रखता है। उन्होंने ‘ए माइटी हार्ट’, ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’, ‘लाइफ ऑफ़ पाई’ और ‘द अमेजिंग स्पाइडर मैन’ आदि फ़िल्मों में अभिनय किया।
60वे राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार-2012 में इरफ़ान ख़ान को फ़िल्म ‘पान सिंह तोमर’ में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया।इरफ़ान ख़ान का जन्म टोंक, राजस्थान में 7 जनवरी, 1967 को हुआ। यहीं के एक स्कूल से उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की। बाद में स्नातक की डिग्री हासिल की। जब इरफ़ान ख़ान अपनी पोस्ट ग्रेजुएश एम.ए. में कर रहे थे, तब उस समय उन्होंने ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ में दाखिला ले लिया था ।
इरफ़ान ख़ान का नाता राजस्थान राज्य के एक पठान परिवार से था। उनकी मां का नाम सईदा बेगम है। मां सईदा बेगम का सम्बंध राजस्थान के टोंक हाकिम परिवार से है। वहीं इरफ़ान के पिता का नाम यासीन अली ख़ान था, जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी इरफ़ान ख़ान लीक से हटकर चलने वाले लोगों में से एक थे। शायद यही कारण रहा कि वे पठान परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद शुद्ध शाकाहारी थे। इरफ़ान ख़ान ने पठान मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बाद भी कभी मीट या मांस नहीं खाया। वह बचपन से ही शाकाहारी थे। यही कारण था कि उनके पिता इरफ़ान को मजाक में कहा करते थे कि- “ये तो पठान परिवार में एक ब्राह्मण पैदा हो गया है।”
इरफ़ान ख़ान अपनी एक्टिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई चले गए और यहां आकर उन्होंने फ़िल्मों में काम खोजना शुरू कर दिया। उनके कॅरियर के शुरुआती दिन काफी संघर्ष भरे थे। उन्हें फ़िल्मों की जगह टी.वी. सीरियल में छोटे मोटे रोल मिलने लगे और इस तरह से इरफ़ान ख़ान के कॅरियर की शुरुआत बतौर एक जूनियर कलाकार से हुई। वह कई हिंदी धारावाहिकों का हिस्सा रह चुके थे और उनके द्वारा किए गए कुछ धारावाहिकों के नाम इस प्रकार हैं।चाणक्य,भारत एक खोज,सारा जहाँ हमारा,बनेगी अपनी बात,चन्द्रकान्ता,श्रीकान्त,स्टार बेस्टसेलर्स,मानो या ना मानो।साल 1988 में आई फ़िल्म ‘सलाम बॉम्बे’ में इरफ़ान को एक छोटा सा रोल मिला था, लेकिन इरफ़ान के इस रोल को फ़िल्म से हटा दिया गया। इस फ़िल्म के बाद इरफ़ान ने कई फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल किये, लेकिन साल 2001 में आई ‘द वारियर’ फ़िल्म ने उनकी जिंदगी बदल दी और इस फ़िल्म से उनको पहचान मिली। ये एक ब्रिटिश फ़िल्म थी, जिसका निर्देशन आसिफ कपाड़िया ने किया था। ये फ़िल्म अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में भी प्रदर्शित की गई थी। इस फ़िल्म के बाद 2004 में आई ‘हासिल’ फ़िल्म में इरफ़ान ख़ान को एक नेगेटिव किरदार में देखा गया और इस किरदार को भी उन्होंने बखूबी निभाया था।
2007 में आई मल्टीस्टार फ़िल्म ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ का हिस्सा इरफ़ान भी थे और इस फ़िल्म में इरफ़ान द्वारा किए गए अभिनय को फिर से लोगों द्वारा पसंद किया गया। इस फ़िल्म में उनकी जोड़ी कोंकणा सेन के साथ नजर आई थी। इस फ़िल्म के बाद इरफ़ान को ‘एसिड फैक्ट्री’, ‘न्यूयॉर्क’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘हैदर’, ‘पीकू’, ‘तलवार’, ‘जज्बा’, ‘हिंदी मीडियम’ सहित कई फ़िल्मों में देखा गया और इन फ़िल्मों के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले।
इरफ़ान ख़ान का नाम उन भारतीय अभिनेताओं में गिना जाता है, जिन्होंने भारतीय सिनेमा के साथ-साथ विदेशी सिनेमा यानी हॉलीवुड में भी कार्य किया। इरफ़ान ने बॉलीवुड सहित कई हॉलीवुड फ़िल्मों में भी दमदार प्रदर्शन किया।इरफ़ान ख़ान को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ दिया जा चुका है। ये पुरस्कार उन्हें 2011 में बॉलीवुड में किए गए उनके कार्यों के लिए दिया गया था।उन्हें पहला फ़िल्मफ़ेयर खिताब 2003 में उनके द्वारा निभाये गए फ़िल्म ‘हासिल’ में खलनायक किरदार के लिए दिया गया था।
साल 2007 में इरफ़ान ख़ान को ‘लाइफ इन मेट्रो’ फिल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर दिया गया। ये पुरस्कार उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए दिया गया था और इसी फिल्म के लिए उन्हें 2008 में आईफ़ा पुरस्कार भी दिया गया।
इरफ़ान ख़ान को 2012 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए अपना पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। उन्हें ये पुरस्कार फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए दिया गया था। इस फिल्म के लिए उनको फ़िल्मफ़ेयर क्रिटिक्स अवार्ड भी मिल चुका है।
स्लमडॉग मिलियनेयर के लिए इरफ़ान ख़ान को सेंट्रल ओहियो फिल्म क्रिटिक्स एसोसिएशन की ओर से सर्वश्रेष्ठ एन्सेबल अवार्ड दिया गया था। वहीं ‘पीकू’ फिल्म के लिए भी उन्हें मेलबर्न के भारतीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का अवार्ड दिया गया था।फ़िल्म ‘हिंदी मीडियम’ में इरफ़ान ख़ान ने ‘राज’ नाम के व्यक्ति का रोल किया था और इस रोल के लिए उन्हें हाल ही में फ़िल्मफ़ेयर में बेस्ट ऐक्टर का खिताब दिया गया।
इरफ़ान ख़ान ऐसे इंसान थे, जो भीड़ में तो थे ही अकेलापन भी उन्हें बहुत रास आता था। जब सब साथ में चिल्ल कर रहे होते तो वह अकेले कहीं जाकर बैठ जाते। इरफ़ान ख़ान का बचपन भी फ़िल्मी रहा। उनकी ज्यादतर तस्वीरें बचपन की ऐसी ही हैं, जिनमें फ़िल्म के किसी सीन की नकल करते दिखते हैं। कैंसर के इलाज के दौरान भी इरफ़ान हमेशा मुस्कुरात रहते थे। इतना ही नहीं वह बहादुर इंसान भी थे। इरफ़ान वह सब करते थे, जिसमें उनका दिल लगता था। प्रकृति प्रेमी भी थे। इरफ़ान की जिंदगी एक खूबसूरत यात्रा रही है। जब जहां दिल किया, चल दिए जिंदगी की तलाश में। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह थोड़े दार्शनिक अंदाज के भी हो गए थे। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि यह अंदाज शुरू से उनके साथ रहा। वह खुद के भीतर खुद को भी तलाशते थे। इरफ़ान अपने इंस्टा पर बचपन की जो भी यादें शेयर करते, उनमें ज्यादातर तस्वीरें इसी तरह किसी फ़िल्म को देखकर दोस्तों के साथ उसे आजमाते हुए दिखते। जिंदादिल इंसान थे इरफ़ान।
अभिनेता इरफ़ान ख़ान का निधन 29 अप्रॅल, 2020 को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में हुआ। वह काफ़ी लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। साल 2018 में ही उन्होंने दुनिया को अपने कैंसर के बारे में जानकारी दी थी। इरफ़ान ख़ान पेट की समस्या से जूझ रहे थे। उन्हें कॉलन संक्रमण (Colon infection) हुआ था। फ़िल्म निर्देशक शूजीत सरकार ने इरफ़ान ख़ान के निधन की जानकारी सबसे पहले दी।इरफ़ान ख़ान को वर्सोवा के कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया।