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आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए एजेंडा पेश किया,कई मांगे

पटना:लोकसभा चुनाव की तैयारी से पहले राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ सामाजिक संगठन भी अपनी-अपनी सत्ता से तैयारी शुरू कर दी है।इसी कड़ी में आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ने लोकसभा चुनाव से पहले समाज की दशा और दिशा सुधारने के लिए राजनीतिक पार्टियों के सामने एजेंडा पेश किया है।ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (AIPMM) ने मंगलवार (27 फरवरी, 2024) को बड़ा दावा किया।पटना में रिपोर्ट को मीडिया के सामने पेश करते हुए महाज के अध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि मॉब लिंचिंग और बुलडोजर कल्चर से लगभग सभी पीड़ित पसमांदा मुस्लिम समाज से आते हैं।ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (All India Pasmanda Muslim Mahaz) ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ केंद्र सरकार से सख्त कानून बनाने की भी मांग की है।एआईपीएमएम ने बिहार जाति सर्वेक्षण को आधार बनाकर ये रिपोर्ट तैयार की है।

बिहार जातिगत सर्वे 2022-2023 और पसमांदा एजेंडा नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया, ”मॉब लिंचिंग और बुलडोजर कल्चर के 95 फीसदी पीड़ित पसमांदा मुस्लिम समाज से आने वाले हैं.  ऐसे में हमारी मांग है कि इसके खिलाफ सख्त कानून लाए जाए. जिस भी क्षेत्र में ऐसी घटना होती वहां कलेक्टर और एसपी की इसके खिलाफ जवाबदेही तय की जाए. ऐसे मामलों में जान गंवाने वालों लोगों के परिवार को पैसा और किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए”

एजेंडे के तहत कहा गया है कि पसमांदा महाज़ हर तरह की साम्प्रदायिकता कट्टरता, तंगनजरी तथा धर्म और सियासत के घालमेल के खिलाफ है। हम आरएसएस- भाजपा और एआईएमआईएम जैसी सियासत को एक दूसरे का पुरक मानते हैं। हमारे पुरखे भी 1940 में 40 हजार की संख्या में दिल्ली के इंडिया गेट पर जिन्ना के दो कौमी नजरिया और सावरकर के हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ प्रदर्शन करने चले आये थे। पसमांदा महाज भी पिछले 25 वर्षों ने इसी भावना के साथ काम कर रहा है।

पसमांदा की लड़ाई-एकता, तरक्की, सेक्युलरिज्म और जम्हूरियत के लिए है। पसमांदा केवल बोट बैंक नहीं है, वह सामाजिक न्याय और मसावात (समता) की लड़ाई का एक हिस्सा है। यह हमारा संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक दायित्व है कि उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लाकर सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलवाने का प्रयास करें। किसी पार्टी को समाज के किसी तबके को “टेकन फॉर ग्रांटेड ” नहीं लेना चाहिए। अगर कोई हमारे समाज को नजरअंदाज करेगा तो हम उसे भी अपने नजर में उतारना जानते हैं। माँबलिंचिंग और सरकारी बुलडोजर के शिकार लोगों में 95 प्रतिशत पसमांदा समाज के ही हैं। हमारी मांग है कि इसके खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए। जिस जिले में इस तरह की घटना हो उसके कलेक्टर और एसपी को इसके लिए जवाबदेह बनाया जाय। इस तरह की घटनाओं में मृतक के परिवार को मुआवजा तथा उस परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाए।

मौजूदा हुकूमत राष्ट्रीय परिसम्पत्तियों और प्राकृतिक संसाधनों को बंद कारपोरेट घरानों के हवाले कर रही है। इस लूटी गयी दौलत को फिर में वापस लाने की योजना के साथ विपक्षी दल आगे आएं। एक समय बैंकों तथा कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के वक्त जैसा जनसमर्थन बना था उससे बड़ा जनउभार खड़ा हो जायेगा। नरकारी नौकरियां दिन-ब-दिन कम होती जा रही हैं। ऐसे में निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण की व्यवस्था की जाय।दलितों और अति पिछड़ों की तरह पसमांदा भी गरीब, उपेक्षित हैं। उनके एक हिस्से की हालत तो हिन्दू दलितों में भी खराब है। प्रधानमंत्री मोदी आजकल पसमांदा मुसलमानों के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। विपक्षी दलों को भी पसमांदा शब्द से परहेज नहीं करते हुए भाजपा को जवाब देना चाहिए। मुस्लिम आबादी पे 80 फीसदी हिस्से पर इस तरह चुप्पी साधे रखना बुद्धिमानी नहीं है। पसमांदा शब्द “कास्ट” और “रिलिजन न्यूट्रल है। यह उर्दू-फ़ारसी का शब्द है। विभिन्न धमों के दलित उपेक्षित और पिछड़े लोगों को जोड़ने वाला है। अगर विपक्षी दल भी पसमांदा शब्द को अपनी जुबान पर लाने लगे तो भाजपा द्वारा उनपर लगाया जा रहा मुस्लिम तुष्टिकरण का जुमला काफूर हो जायेगा। भाजपा की तरह सिर्फ “टोकन्निज्म ” नहीं कर विपक्षी दल वास्तविक रूप में पसमांदा-अतिपिछड़े हिन्दू-मुस्लिम समाज को सत्ता-प्रशासन में वाजिव प्रतिनिधित्व दें। सभी धर्मों के सुनकर और दूसरी दस्तकार जातियों को अपने पालो में लाने के लिए भाजपा की “विश्कर्मा योजना” के तोड़ के लिए विपक्षी दलों को दस्तकारों के लिए अपने घोषणा-पत्र में ठोस योजना की घोषणा करनी बाहिए।

मौजूदा केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराने से मना कर दिया है। उसने दलित मुसलमानों-ईसाइयों को एस.सी. का दर्जा नहीं देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो बार लिखकर दे दिया है। विपक्ष सच्चर कमिटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिश के अनुसार एससी का कोटा बढ़ाकर उसमें दलित मुस्तिम-दलित ईसाइयों को शामिल करे। मेवाती, बनगुर्जर, मदारी, सपेरा जैसे कई कबीलों को एसटी का दर्जा मिलना चाहिए। मञ्चर कमिटी ने भी इस आशय की सिफारिश की है।
सेना में अग्निवीर योजना किसान मजदूरों के बेटों को स्थायी नौकरी से वंचित करने के लिए है। नीएए-एलआरती कानून सभी धर्मो के पसमांदा तवकों का वोटिंग राईट छीनने के लिए है। सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा अभियान जम्हूरियत का गला घोटने के लिए है। मजदूर वर्ग के सभी हिमायती कानूनों को बदलना पूंजीपतियों के पक्ष में है। कानून बनाकर किसानों की जमीन छीनने का प्रयास उन्हें मजदूर बनाने के लिए है। मरकार के खिलाफ बोलने लिखने पर रोक लगाना तानाशाही है। देखना है, इंडिया गठबंधन के दल एकजुट होकर इस तानाशाही का मुकाबला किस तरह करते हैं। पसमांदा महाज भारत की एकजुटता, भाईचारा और सामाजिक आर्थिक न्याय की लड़ाई में भागेदारी के लिए हमेशा तैयार हैं।

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