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Bihar Upchunav Result: रामगढ़, बेलागंज, इमामगंज और तरारी में कौन मार रहा बाजी?

Bihar Upchunav Result: बिहार के चार विधानसभा उपचुनावों में परिवारवाद का मुद्दा इस बार प्रमुख बनकर उभरा है। लगभग सभी प्रमुख दलों ने अपने नेताओं के परिवार के सदस्यों को चुनावी मैदान में उतारा है, जिससे जनता में विरासत की राजनीति को लेकर नाराजगी साफ देखी जा रही है। रामगढ़, बेलागंज, इमामगंज, और तरारी सीटों पर इसका असर स्पष्ट दिख रहा है। इंडिया ब्लॉक और एनडीए, दोनों के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

रामगढ़ विधानसभा सीट
रामगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला है, जहां आरजेडी के अजीत सिंह, बीजेपी के अशोक सिंह और बसपा के पिंटू यादव आमने-सामने हैं। यहां ‘एमवाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण बिखरता नजर आ रहा है, जिसकी वजह आरजेडी की विरासत आधारित राजनीति है। पहले इस सीट पर आरजेडी के जगदानंद सिंह का दबदबा था, लेकिन अब उनके बेटे अजीत सिंह को मैदान में उतारने के फैसले से स्थानीय कार्यकर्ता नाराज हैं। बसपा दलित वोटों को खींचने में सफल होती दिख रही है, जबकि बीजेपी ने राजपूत वोटों में सेंध लगाने की कोशिश की है। पिछले चुनाव में आरजेडी को बेहद कम अंतर से जीत मिली थी, और इस बार भी मुकाबला बेहद कड़ा है।

बेलागंज विधानसभा सीट
बेलागंज में भी विरासत की राजनीति को चुनौती मिल रही है। सुरेंद्र यादव, जो सात बार विधायक और मंत्री रह चुके हैं, अब सांसद बन गए हैं। उनकी जगह आरजेडी ने उनके बेटे विश्वनाथ यादव को उम्मीदवार बनाया है। कार्यकर्ताओं में इस फैसले से असंतोष है, जिससे ‘एमवाई’ समीकरण कमजोर पड़ रहा है। मुस्लिम वोट जनसुराज पार्टी और AIMIM की ओर झुक सकते हैं, जबकि यादव वोटों में जेडीयू उम्मीदवार मनोरमा देवी सेंध लगाने की कोशिश कर रही हैं। मुस्लिम और यादव वोट इस सीट पर जीत-हार तय करेंगे।

इमामगंज विधानसभा सीट
इमामगंज में भी त्रिकोणीय मुकाबला है। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और पहली बार कोई महिला विधायक बनने की संभावना है। एनडीए ने जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी को टिकट दिया है। आरजेडी के रोशन मांझी और जनसुराज पार्टी के जितेंद्र कुमार भी मैदान में हैं। इस सीट पर एनडीए का 24 वर्षों से कब्जा रहा है। मुस्लिम और यादव वोट महागठबंधन को मदद कर सकते हैं, जबकि कोयरी समाज के वोट निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

तरारी विधानसभा सीट
तरारी में भाकपा-माले और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर है। भाकपा-माले अपने उम्मीदवार राजू यादव के जरिए लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करने की कोशिश में है। दूसरी ओर, बीजेपी के युवा उम्मीदवार विशाल प्रशांत, अपने पिता सुनील पांडे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मैदान में हैं। भाकपा-माले की मजबूत उपस्थिति के बावजूद, इस बार उलटफेर की संभावना है।

परिवारवाद और जनता की नाराजगी
इन उपचुनावों में परिवारवाद के कारण जनता की नाराजगी एक बड़ा मुद्दा बन गई है। आरजेडी ने जहां सुरेंद्र यादव, जगदानंद सिंह, और जीतनराम मांझी के परिवार के सदस्यों को टिकट दिया है, वहीं बीजेपी के विशाल प्रशांत भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना समर्थन देती है।

नतीजों की प्रतीक्षा 23 नवंबर को समाप्त होगी, जब यह स्पष्ट हो जाएगा कि विरासत की राजनीति का प्रभाव इन सीटों पर कितना रहा।

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