वर्ष 2025 के आगाज के साथ बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव की आहट स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही है। नए साल में मकर संक्रांति (14 जनवरी) के बाद बिहार में राजनीतिक हलचल की पुरानी परंपरा रही है। अगर हम पीछे मुड़कर देखें, तो जनवरी 2024 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से किनारा करते हुए एनडीए में शामिल हो गए थे और फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अब, एक बार फिर मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए भाजपा से नीतीश कुमार के कथित नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं।
सियासी हलचल और उलटफेर की संभावनाएं
बिहार में फिलहाल जो सियासी कश्मकश चल रही है, उसमें कई तरह के उलटफेर की संभावनाएं जताई जा रही हैं। नीतीश कुमार की भाजपा से नाराजगी की खबरें मीडिया में लगातार चर्चा का विषय बनी हैं। ‘इंडिया ब्लॉक’ अब भी उम्मीद लगाए हुए है कि नीतीश कुमार अपने पुराने गठबंधन में वापसी करेंगे। वहीं, एनडीए यह दावा कर रहा है कि आरजेडी के कई नेता उनके संपर्क में हैं और जल्दी ही पार्टी बदल सकते हैं। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने तो यहां तक कह दिया कि आरजेडी के दर्जन भर नेता उनके संपर्क में हैं।
क्या सच में नीतीश कुमार भाजपा से नाराज हैं?
नीतीश कुमार की भाजपा से नाराजगी की बात इसलिए उठाई जा रही है क्योंकि वे हाल के दिनों में मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं। जब भी नीतीश चुप होते हैं, बिहार में कोई सियासी हलचल जरूर होती है। इसके अलावा, जब नीतीश कुमार दिल्ली गए थे, तो उन्होंने दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिजनों से मुलाकात की, लेकिन भाजपा नेताओं से मिलने से परहेज किया। यह भी देखा गया कि उन्होंने कुछ दिन पहले अमित शाह की बुलाई बैठक में भी शिरकत नहीं की, जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू उस बैठक में मौजूद थे। इसके अलावा, दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जेडीयू को सीटें देने से इनकार किया था, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ सकता है।
आरजेडी की नजरें नीतीश पर
आरजेडी नेता नीतीश कुमार पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। उनका मानना है कि जल्द ही नीतीश आरजेडी के साथ आ सकते हैं, हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। आरजेडी ने पहले भी नीतीश को अपदस्थ करने की कोशिश की थी, लेकिन वह प्रयास विफल रहा। 12 फरवरी 2024 को विश्वास मत के दौरान आरजेडी ने पूरी तैयारी की थी, लेकिन दो जेडीयू विधायकों ने आरजेडी का साथ छोड़ दिया, और लालू यादव के द्वारा विधायकों को तोड़ने की योजना भी असफल रही। अब, जब नीतीश और भाजपा के बीच अनबन की खबरें आ रही हैं, तो आरजेडी को फिर से उम्मीद जगी है कि नीतीश उनके साथ आ सकते हैं।
सियासी संभावनाओं की दिशा
बिहार में सियासी हलचल जिस दिशा में बढ़ रही है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि खरमास के बाद कुछ बड़ा बदलाव हो सकता है। सबकी निगाहें नीतीश कुमार पर टिकी हुई हैं। अगर वे एनडीए से अलग होते हैं, तो यह बिहार में भाजपा के लिए संकट पैदा कर सकता है। साथ ही, यह संभावना भी जताई जा रही है कि नीतीश कुमार विधानसभा भंग कर चुनाव कराने का रास्ता चुन सकते हैं, क्योंकि वे पहले भी मिड-टर्म चुनाव की बात कर चुके हैं।
क्या नीतीश कुमार की यह आखिरी सियासी पारी है?
नीतीश कुमार राजनीतिक दिग्गज हैं और हमेशा सधे हुए कदम रखते हैं। वे 2020 के बाद से दो बार कह चुके हैं कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। पहले उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में इसे अपनी आखिरी पारी बताया, और फिर महागठबंधन में रहते हुए यह कहा कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में होगा। इसी बीच, कई नेता नीतीश कुमार को भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान देने की बात कर रहे हैं। जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और भाजपा सांसद गिरिराज सिंह सहित आरजेडी के सीएम फेस तेजस्वी यादव भी इस सम्मान के पक्ष में हैं। इससे यह आभास होता है कि नीतीश कुमार की सियासत से सम्मानजनक विदाई की तैयारी हो रही है। यदि ऐसा होता है, तो यह उनके राजनीतिक करियर की आखिरी पारी हो सकती है।
अब, नए साल में सियासी घटनाक्रम को लेकर सबकी निगाहें अगले कुछ महीनों पर हैं, क्योंकि खरमास तक इंतजार करना होगा।