Nationalist Bharat
राजनीति

प्रशांत किशोर बनाम राहुल गांधी

मेराज नूरी 

बिहार की सियासत में इन दिनों तमाशा जोरों पर है। एक तरफ राहुल गांधी अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के साथ सड़कों पर उतरे हैं, तो दूसरी तरफ प्रशांत किशोर, जिन्हें लोग प्यार से ‘पीके’ बुलाते हैं, ने राहुल गांधी पर ऐसा तंज कसा कि सियासी गलियारों में हंसी के ठहाके गूंजने लगे। पीके ने कहा कि राहुल गांधी 55 साल के हो गए, लेकिन बिहार में चुनावी मौसम के अलावा कभी एक रात भी नहीं बिताई। इतना ही नहीं, उन्होंने तो यहाँ तक दावा कर दिया कि राहुल को बिहार के 40 जिलों के नाम भी नहीं मालूम होंगे! वाह, पीके साहब, क्या तीर मारा है! लेकिन जरा ठहरिए!

 

प्रशांत किशोर, जो खुद को बिहार की सियासत का ‘चाणक्य’ मानते हैं, राहुल गांधी पर जमीन से न जुड़ने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। लेकिन जरा उनके अपने गिरेबान में झांक कर देखें। पीके साहब, जो कभी कांग्रेस, बीजेपी, जेडीयू, टीएमसी और न जाने कितनी पार्टियों के लिए रणनीति बनाते रहे, क्या वो खुद बिहार की मिट्टी से जुड़े हुए हैं? या फिर उनकी ‘जमीन’ तो बस वो कॉरपोरेट ऑफिस हैं, जहाँ से वह मोटी रकम लेकर पार्टियों के लिए ‘जीत का मंत्र’ तैयार करते थे? ये वही पीके हैं, जिन्होंने कभी बीजेपी के लिए ‘मोदी लहर’ बनाई, तो कभी नीतीश कुमार के लिए ‘सुशासन’ का जादू चलाया। अब जब अपनी पार्टी ‘जन सुराज’ बनाकर मैदान में उतरे हैं, तो अचानक बिहार के गाँव-गलियों की याद आ गई? वाह, क्या बात है! यह तो वही बात हुई कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे!

 

पीके ने कांग्रेस की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को राजद की ‘पिछलग्गू’ करार दिया और कहा कि इससे राहुल को कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन जरा गौर करें, यह यात्रा, जो मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों और ‘वोट चोरी’ के खिलाफ है, बिहार की जनता में हलचल तो पैदा कर रही है। सासाराम से शुरू होकर 1300 किलोमीटर की इस यात्रा में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव मिलकर बीजेपी पर हमला बोल रहे हैं। पीके को शायद यह बात चुभ रही है कि उनकी अपनी ‘पदयात्रा’ की चमक इस ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के सामने फीकी पड़ रही है। आखिर, पीके की जन सुराज पार्टी का मकसद क्या है? क्या वो सचमुच बिहार को बदलना चाहते हैं, या फिर उनका असली खेल बीजेपी की राह आसान करना है?

 

बिहार की सियासत में ‘वोट बिखराव’ कोई नया खेल नहीं है। 2024 के उपचुनावों में पीके की जन सुराज पार्टी को तेजस्वी यादव ने ‘वोट कटवा’ कहा था, और यह बात बीजेपी और जेडीयू ने भी दोहराई थी। अब, जब पीके कहते हैं कि “50% हिंदू बीजेपी के साथ नहीं हैं” और मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने की बात करते हैं, तो यह साफ़ झलकता है कि उनका असली मकसद विपक्षी वोटों को बाँटना है। यह तो वही पुरानी रणनीति है—विपक्ष को कमजोर करो, बीजेपी को फायदा पहुँचाओ। पीके का दावा है कि उनकी पार्टी से सवा करोड़ लोग जुड़ चुके हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह ‘लोग’ उनके पुराने क्लाइंट्स की तरह पैसे देकर जुड़े हैं, या सचमुच बिहार की जनता का भरोसा है?

 

राहुल गांधी पर पीके का तंज और उनकी अपनी सियासी चालें, दोनों ही बिहार की सियासत को एक तमाशा बना रही हैं। एक तरफ राहुल गांधी अपनी यात्रा के जरिए ‘लोकतंत्र की रक्षा’ का नारा बुलंद कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ पीके अपनी ‘जन सुराज’ के जरिए बिहार को ‘बदलने’ का सपना दिखा रहे हैं। लेकिन हकीकत में दोनों ही सियासी मंच पर अपने-अपने किरदार निभा रहे हैं। राहुल की यात्रा को बीजेपी ‘नौटंकी’ बता रही है, और पीके की पदयात्रा को विपक्ष ‘वोट कटवा’ कह रहा है। बिहार की जनता के लिए यह सब एक सियासी सर्कस से कम नहीं, जहाँ हर कोई अपने ‘जादू’ से वोटरों को लुभाने की कोशिश में है।

बिहार की सियासत में यह नूरा-कुश्ती चलती रहेगी। पीके भले ही राहुल पर तंज कसें, लेकिन उनकी अपनी साख भी कोई दूध की धुली नहीं है। जो शख्स कभी बीजेपी के लिए रणनीति बनाता था, आज उसी बीजेपी को हराने का दावा कर रहा है। यह तो वही बात हुई कि ‘साँप भी मरे, लाठी भी न टूटे’। लेकिन बिहार की जनता कोई ऐसी-वैसी नहीं। वह इन सियासी तिकड़मों को अच्छे से समझती है। आखिर में, न राहुल की यात्रा और न ही पीके की रणनीति—बिहार का असली चाणक्य तो उसकी जनता ही है, जो वोट के जरिए हर बार सियासतदानों को सबक सिखाती है।

Related posts

उद्धव ठाकरे:एक पराजित नायक

Tirhut Graduate Bypoll:तिरहुत का खोया हुआ अधिकार वापस दिलाएंगे गोपी किशन

Nationalist Bharat Bureau

जर्जर स्वास्थ ढांचा की पोल खुलने के डर से सरकार ने पप्पू यादव को गिरफ्तार कराया:रानी चौबे

Nationalist Bharat Bureau

Leave a Comment