Nationalist Bharat
राजनीति

मेरे विश्वास के दो सौ अठ्ठाईस टुकड़े

 

सदन में आपको किसके साथ जाना है यह आपका विषय है। आप किसे अपना ईश्वर मानते हैं यह आपका निजी मामला है। आप किसके कहने पर कुएं में कूदते हैं या किसके कहने पर पहाड़ चढ़ सकते हैं यह आपकी अपनी निष्ठा है। आप किस दल के प्रति निष्ठा रखते हैं या उसे त्याग कर किसके साये में जाते हैं इस पर भी किसी को कोई दिक्कत नहीं हो सकती। लेकिन क्या वजह है कि आप अपने आप के प्रति ही विश्वसनीय नहीं हैं?

Advertisement

 

—————————–

Advertisement

चौधरी मदन मोहन समर

—————————–

Advertisement

मैं मतदाता हूँ, इसलिए मन दुखी है। उतना ही दुखी हूँ जितने आप हैं, बिना किसी दल की दलदल वाले, बिना किसी चुनाव चिन्ह के पाश में बंधे, सिर्फ और सिर्फ भारतीय नागरिक होने के नाते मध्यप्रदेश के वासी । देख रहा हूँ, पढ़ रहा हूँ, महसूस कर रहा हूँ, बिलकुल ठगा हुआ सा। लगता है संत्रास झेल रहा हूँ । क्या सिर्फ खामोश रहूँ? हालांकि जानता हूँ कि मेरे चीखने से, चिल्लाने से, लिखने से और मन को जलाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि मैं केवल मतदाता जो ठहरा, मेरा काम सिर्फ वोट देना जो है। मतदाता जागरुकता के बड़े-बड़े बैनर, विज्ञापन, सेमीनार नुक्कड़ नाटक मुझे प्रेरित करते हुए बताते हैं कि मेरा वोट डालना क्यों जरूरी है । मेरे बोलने, बतियाने, और टिप्पणी करने के अधिकारों पर तो आपने ताला लगा रखा है न, तो फिर लटका दीजिए मुझे जहां भी लटकाना है। लेकिन मेरे भीतर सुलगती हुई चिंगारी पर नियंत्रण कैसे करोगे? ऐसी न जाने कितनी खामोश चिंगारियां सुलग रही हैं भीतर ही भीतर। खिन्न हैं हम सभी मतदाता। अभिव्यक्ति की आजादी मेरा भी संवैधानिक अधिकार है। इसलिए न तो मैने खामोश रहना सीखा है और न मेरी कलम ने सूखना कभी मंजूर किया है।

सिंहासन पर कोई भी हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। न किसी में आत्म विश्वास है, न किसी में निष्ठा है। 228 वे लोग खुद के प्रति ही आशंकित हैं जो प्रदेश के कर्ताधर्ता हैं । वे आशंकित हैं स्वयं अपने धर्म, अपनी निष्ठा, अपने कर्तव्य और अपनी आत्मा के प्रति ही । एक विधायक इसलिए अपनी जनता के बीच से दूर किसी रिसोर्ट में है कि कहीं उससे विपक्षी सम्पर्क कर सौदा न कर ले । वह इसलिए सम्पर्क में नहीं है कि उससे किए गए सम्पर्क उसके विश्वास और उत्तरदायित्व को खंडित कर देंगे, वह इसलिए दूर है कि वह स्वयं जवाबदेह नहीं है बल्कि सिंहासनीय योजना का एक हिस्सा मात्र है । लेकिन क्षमा करना माननीय, खंडित तो आप उसी दिन हो गए जब आपको किसी लक्झरी सुविधायों के बीच इसलिए बिठा दिया गया कि शायद आप विश्वसनीय नहीं हैं । अगर आप विश्वसनीय नहीं हैं तो मतदाता कैसे आप पर भरोसा कर सकेगा। लेकिन आखिर उसका समाधान क्या है? हमें तो फिर से हर चुनाव में वोट ही तो देना है। चुने तो आप ही जाओगे चाहे किसी भी निशान के क्यों ना हो ।

Advertisement

 

बहुमत के गणित में सरकारों का बनना गिरना कोई नई बात नहीं है। राजनीति में कोई सिद्धांत भी नहीं होते। सारा संघर्ष सत्ता हेतु होता है । पिछले सत्तर साल में यह अनेकों बार इस देश को देखने को मिला है। विधायक किसकी तरफ जाएगा यह विधायक पर निर्भर करता है। लेकिन अब तो विधायक की निष्ठा क्या है और उसका निर्णय क्या है यह खुद उस विधायक को ही पता नहीं है जिसे हमने अपना वोट दिया है ।

Advertisement

 

आपको बाँधा गया है तो यह आपके प्रति अपराध है और यदि आप अपनी मर्जी से बंधे हैं तो यह मेरे वोट के प्रति घोर अपराध है। आप 228 मेरे विधायक हैं। अर्थात मेरे संविधान के रक्षक। मेरी आशायों के दीपक। लेकिन यह क्या देख रहा हूँ, रक्षक तो विकलांग खड़ा है और दीपक बिना तेल के भभक कर बुझ गया है। क्योकि आत्मबल का तेल तो उसकी लौ से कब का खत्म हो चुका है । मेरा इससे कोई लेना देना नही कि किसकी सरकार बनती है । किसकी सरकार गिरती है। किसकी निष्ठा बचती है किसकी नीलाम होती है। लेकिन मैं तो मेरे वोट के सम्मान को तार-तार होते देख रो रहा हूँ मेरी निराशा इस बात में नहीं है कि आज क्या हो रहा है। मैं तो चिंतित इस बात से हूँ कि आने वाला कल कितना काला होगा इस व्यवस्था में । बहुमत के गणित में सरकारों का बनना गिरना कोई नई बात नहीं है। राजनीति में कोई सिद्धांत भी नहीं होते। सारा संघर्ष सत्ता हेतु होता है । पिछले सत्तर साल में यह अनेकों बार इस देश को देखने को मिला है। विधायक किसकी तरफ जाएगा यह विधायक पर निर्भर करता है। लेकिन अब तो विधायक की निष्ठा क्या है और उसका निर्णय क्या है यह खुद उस विधायक को ही पता नहीं है जिसे हमने अपना वोट दिया है । रिसोर्ट संस्कृति का जन्म क्यों हुआ है? क्या किसी को भी यह भरोसा नहीं कि हमारे विधायक की निष्ठा और निर्णय मजबूत होंगे। यदि भरोसा है तो फिर यह बसें और चार्टर प्लेन भर भर कर इन्हें बकरियों के बाड़ो में भरने का क्या आशय है? इसका खर्च कौन उठा रहा है?
सदन में आपको किसके साथ जाना है यह आपका विषय है। आप किसे अपना ईश्वर मानते हैं यह आपका निजी मामला है। आप किसके कहने पर कुएं में कूदते हैं या किसके कहने पर पहाड़ चढ़ सकते हैं यह आपकी अपनी निष्ठा है। आप किस दल के प्रति निष्ठा रखते हैं या उसे त्याग कर किसके साये में जाते हैं इस पर भी किसी को कोई दिक्कत नहीं हो सकती। लेकिन क्या वजह है कि आप अपने आप के प्रति ही विश्वसनीय नहीं हैं? अपनी विधानसभा क्षेत्र के किसी चौराहे पर खड़े होकर क्यों नहीं कहते कि मैं यहाँ खड़ा हूँ और मेरा निर्णय यह है जो बदल नहीं सकता। मेरी निष्ठा किसी रिसोर्ट में बंध कर नहीं बैठ सकती जब भी जहाँ भी निर्णय करना होगा तो मेरा निर्णय मेरा ही होगा । आप जयपुर में हैं, बैंगलुरू में या मनेसर में निश्चित मानिए आप अपना खुद का विश्वास खो चुके हैं। अब विधानसभा में कोई भी विश्वास जीते या हारे हम मतदाताओं को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
(ये लेख लेखक के फेसबुक पेज से लिया गया है।)

Advertisement

Related posts

अडानी मामले की जांच जेपीसी से कराएं मोदी: राहुल

राजीव प्रताप रूडी का बयान,भाजपा की चाल और स्वर्ण समाज की पीड़ा

अग्निपथ/अग्निवीर योजना सेना में आई कैसे ? कौन लाया ? कब लाया ?

Leave a Comment