तहसीन मुनव्वर
जी… हम चाहते हैं सोशल मीडिया पर और विशेष रूप से फेसबुक पर ज़बरदस्ती टैग करने वाली शायरी को जीएसटी के दायरे में लाया जाए. जो लोग बेवज़न शायरी को यहाँ डालते हैं उन पर और उनके साथ साथ उन पर भी जो हर शायरी को ग़ालिब, जोन एलिया, फ़राज़ और इक़बाल से जोड़ देते हैं, उन्हें 18% जीएसटी के दायरे में लाया जाए.
शायरी के टेगियों पर भी 18% या 24% जीएसटी का प्रवधान होना चाहिए.5 शेर की ग़ज़ल फेसबुक पर डालने वालों पर 12% और इस से अधिक शेर की ग़ज़ल पर 18% जीएसटी लगना चाहिए. जो लोग रोज़ाना अपना शेर फेसबुक पर डालने की लत के शिकार हैं उनका योगदान देश की आर्थिक प्रगति में आवश्यक है. पहले शेर पर 5%, दूसरे पर 12% तथा उसके बाद हर शेर पर 18% की दर से जीएसटी लगना चाहिए.जो लोग दूसरों का शेर पोस्ट करते हैं उन को जीएसटी की दरों में कुछ छूट दी जा सकती है अगर वह अच्छे शायरों के शेर पोस्ट करें लेकिन अगर एक दुसरे के शेर पोस्ट करें तो उन से ऊपर लिखी दर पर ही जीएसटी लेना चाहिए.जो लोग दूसरों का शेर अपने नाम से पोस्ट करें उन से जीएसटी के स्थान पर चालान काट कर भारी भरकम जुर्माना वसूलना चाहिए.
अगर कोई आज़ाद नज़्म पोस्ट करे तो 12% जीएसटी और अगर यह साबित हो जाए कि यह आज़ाद नज़्म नहीं बल्कि कहानी है तो 18% जीएसटी के साथ साथ झूट बोलने के लिए एक माफ़ीनामा भी पोस्ट करने को कहा जाए.डिजिटल इंडिया के यूग में शायरों के फेसबुक अकाउंट को उन के बैंक अकाउंट से लिंक कर दिया जाना चाहिए ताकि पोस्ट करते ही अकाउंट से पैसा कट जाए. एक ग़ज़ल की क़ीमत शायरों को मुशायरों में मिलने वाली फ़ीस के हिसाब से तय करके शेर और ग़ज़ल की जीएसटी का रेट तय किया जा सकता है.शायरों पर मुफ़्त में ऐश करने का जो आरोप लगता है उसको धोने में उनका यह योगदान सदा याद रखा जायेगा.देश की सभी उर्दू अकादमियाँ इस सिलसिले में कृपया आवश्यकता के अनुरूप कार्य करे.. धन्यवाद..!
शायरी और शायरों के व्यापक हित में व्यंग्यात्मक टिपन्नी के रूप में जारी..!