◆प्रियांशु
मुकेश साहनी के पास चार विधायक है, लेकिन केवल गिनती के है, उनपर किसी का मालिकाना हक नहीं, साहनी का भी नहीं। क्यों.? गणित समझिए… विधानसभा चुनाव में भजापा ने साहनी की वीआईपी को ग्यारह सीटें दी, सात सीटों पर खुद के उम्मीदवार उतार दिए, उनमें से चार जीत कर गए, चार पर कैडर के उम्मीदवार लड़े, चारों हार गए, मुकेश साहनी भी हारे, रिचार्ज कूपन की तरह इस्तेमाल किए गए।अब मांझी पर आइए। जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री थे, अपने छोटे से कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए, बड़ी लकीर खींचने का प्रयास किया, शोषितों का दिल जीता, एक फैसले ने सभी लड़कियों को एमए तक मुफ्त शिक्षा का अधिकार दे दिया, इतिहास उन्हें याद करेगा… लेकिन ये भी सर्वविदित है कि उन्हें मुखिया किसने बनाया और इसका अंदाजा मांझी को भी है।
अब सरकार में नीतीश फिर से हावी है, सबकुछ उनकी मर्जी से चलता रहा तो गठबंधन नहीं टूटेगा, तभी टूटेगा जब उनको दिक्कत दी जाएगी। दिक्कत होगी तो बगावत भी तेज़ होगा।
अब बगावत की सुगबुगाहट पर आइए..! मांझी अपनी ही गठबंधन की सरकार के खिलाफ बोल रहे है लेकिन नीतीश के खिलाफ नहीं, केवल भाजपा के खिलाफ बोल रहे है। दरअसल भाजपा के खिलाफ लड़ाई में नीतीश का सबसे बड़ा हथियार मांझी है, क्योंकि सारी हवाबाजी के पीछे केवल नीतीश कुमार है।बगावत की वजह नॉर्मल है, विधासनभा में जदयू के पास आंकड़े कम थे, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के चापलूस विधायक और सांसद लगातर उनके खिलाफ माहौल बनाते रहे, केंद्र सरकार में हिस्सेदारी नहीं दी गई, सुशील मोदी को हटा दिया गया। मजबूरन उन्हें उपेन्द्र कुशवाहा को जोड़ना पड़ा, समीकरण मजबूत हुआ तो मांझी के हांथ में तीर थमा दी गई, अंतरी के दांत से चिराग को भी काट दिया गया।अब सरकार में नीतीश फिर से हावी है, सबकुछ उनकी मर्जी से चलता रहा तो गठबंधन नहीं टूटेगा, तभी टूटेगा जब उनको दिक्कत दी जाएगी। दिक्कत होगी तो बगावत भी तेज़ होगा।बीते नतीजों को देखते हुए नीतीश डायरेक्ट राजद के पास नहीं जाएंगे, चले भी जाएं तो तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी नहीं बना सकते और तेजस्वी का रवैया बताता है, वो नीतीश के नाम पर दोबारा संतोष नहीं करेंगे।। ऐसी स्थिति में सत्ता के नए प्रयोग के लिए तैयार रहिए, सबकुछ ठीक नहीं रहा तो जीतन राम मांझी नीतीश और तेजस्वी के समर्थन से दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते है।
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