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राजनीति

नई दिल्ली में एनआईआईओ संगोष्ठी ‘स्वावलंबन’ में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

नई दिल्ली:मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्री राजनाथ सिंह जी, श्री अजय भट्ट जी, चीफ ऑफ नेवल स्टाफ, वाइस चीफ ऑफ नेवल स्टाफ, डिफेंस सेक्रेटरी, SIDM के प्रेसिडेंट,  Industry और academia से जुड़े सभी साथी, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों!भारतीय सेनाओं में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य, 21वीं सदी के भारत के लिए बहुत जरूरी है, बहुत अनिवार्य है। आत्मनिर्भर नौसेना के लिए पहले स्वावलंबन सेमिनार का आयोजन होना, मैं समझता हूं ये अपने आप में एक बहुत बड़ी अहम बात है और एक अहम कदम है और इसके लिए आप सभी का बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, आप सबको अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।

 

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साथियों,सैन्य तैयारियों में, और खासकर के नेवी में joint exercise, इसकी एक बहुत बड़ी भूमिका होती है। इस सेमीनार भी एक प्रकार की Joint exercise है। आत्मनिर्भरता के लिए इस Joint exercise में Navy, industry, MSME’s, अकेडमियां, यानी दुनिया के लोग और सरकार के प्रतिनिधि, हर स्टेकहोल्डर आज एक साथ मिलकर के एक लक्ष्‍य को लेकर के सोच रहा है। Joint exercise का लक्ष्य होता है कि सभी participants को ज्यादा से ज्यादा exposure मिले, एक दूसरे के प्रति समझ बढ़े, best practices को adopt किया जा सके। ऐसे में इस Joint exercise का लक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण है। हम मिलकर अगले साल 15 अगस्त तक नेवी के लिए 75 indigenous technologies का निर्माण करेंगे, ये संकल्प ही अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है और आपका पुरुषार्थ, आपका अनुभव, आपका ज्ञान इसे जरूर सिद्ध करेगा। आज जब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष का पर्व मना रहा है, अमृत महोत्सव मना रहा है, तब ऐसे लक्ष्यों की प्राप्ति, आत्मनिर्भरता के हमारे लक्ष्यों को और गति देगी। वैसे मैं ये भी कहूंगा कि 75 indigenous technologies का निर्माण एक प्रकार से पहला कदम है। हमें इनकी संख्या को लगातार बढ़ाने के लिए काम करना है। आपका लक्ष्य होना चाहिए कि भारत जब अपनी आजादी के 100 वर्ष का पर्व मनाए, उस समय हमारी नौसेना एक अभूतपूर्व ऊंचाई पर हो।

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साथियों,हमारे समंदर, हमारी तटीय सीमाएं, हमारी आर्थिक आत्मनिर्भरता के बहुत बड़े संरक्षक भी और एक प्रकार से संवर्धक भी है। इसलिए भारतीय नौसेना की भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। इसलिए नौसेना के साथ ही देश की बढ़ती जरूरतों के लिए भी नौसेना का स्वावलंबी होना बहुत आवश्यक है। मुझे विश्वास है, ये सेमिनार और इससे निकला अमृत, हमारी सेनाओं को स्वावलंबी बनाने में बहुत मदद करेगा।

 

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साथियों,आज जब हम डिफेंस में आत्मनिर्भर भविष्य की चर्चा कर रहे हैं तब ये भी आवश्यक है कि बीते दशकों में जो हुआ, उससे हम सबक भी लेते रहें। इससे हमें भविष्य का रास्ता बनाने में मदद मिलेगी। आज जब हम पीछे देखते हैं तो हमें अपनी समृद्ध maritime heritage के दर्शन होते हैं। भारत का समृद्ध ट्रेड रूट, इस विरासत का हिस्सा रहा है। हमारे पूर्वज समंदर पर अपना वर्चस्व इसलिए कायम कर पाए क्योंकि उन्हें हवा की दिशा के बारे में, अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में बहुत अच्छी जानकारी थी। किस ऋतु में हवा की दिशा क्या होगी, कैसे हवा की दिशा के साथ आगे बढ़कर हम पड़ाव पर पहुंच सकते हैं, इसका ज्ञान हमारी पूर्वजों की बहुत बड़ी ताकत थी। देश में ये जानकारी भी बहुत कम लोगों को है कि भारत का डिफेंस सेक्टर, आज़ादी से पहले भी काफी मजबूत हुआ करता था। आज़ादी के समय देश में 18 ordinance factories थीं, जहां आर्टलरी गन्स समेत कई तरह के सैनिक साजो-सामान हमारे देश में बना करते थे। दूसरे विश्व युद्ध में रक्षा उपकरणों के हम एक अहम सप्लायर थे। हमारी होवित्जर तोपों, इशापुर राइफल फैक्ट्री में बनी मशीनगनों को उस समय श्रेष्ठ माना जाता था। हम बहुत बड़ी संख्या में एक्सपोर्ट किया करते थे। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि एक समय में हम इस क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े importer बन गए? और थोड़ा हम नजर करें कि प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध ने बहुत विनाश किया। अनेक प्रकार के संकटों से दुनिया के बड़े-बड़े देश फंसे पड़े थे लेकिन उस संकट को भी आपदा को अवसर करने में पलटने का उन्होंने प्रयास किया। और उन्होंने आयुध के निर्माण के अंदर और दुनिया के बड़े मार्केट को कब्जे करने की दिशा में लड़ाई में से वो रास्ता खोजा और स्‍वंय एक बहुत बड़े निर्माणकर्ता व बहुत बड़े सप्‍लायर बन गए डिफेंस की दुनिया में, यानी युद्ध झेला लेकिन उसमें से उन्होंने ये रास्ता भी खोजा। हमने भी कोरोना काल में इतना बड़ा संकट आया, हम बहुत एक दम से बहुत नीचे के पैरी पर थे, सारी व्‍यवस्‍थाएं नहीं थीं, PPE किट नहीं थे हमारे पास। वैक्सीन की तो हम कल्पना ही नहीं कर सकते थे। लेकिन जैसे प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध में से दुनिया के उन देशों ने बहुत बड़ी शस्त्र शक्ति बनने की दिशा में उन्होंने रास्ता खोज लिया, भारत ने इस कोरोना कालखंड में इसी बुद्धिमता से वैज्ञानिक धरा पर वैक्‍सीन खोजना हो, बाकी एक्‍यूपमेंट बनाना हो, हर चीज में पहले कभी नहीं हुआ, वो सारे काम कर दिये। मैं उदाहरण इसलिए दे रहा हूं कि हमारे पास सामर्थ्य है, हमारे पास टैलेंट नहीं है, ऐसा नहीं है जी और ये भी बुद्धिमानी है या नहीं है कि दुनिया में दस लोगों के पास जिस प्रकार के औजार हैं, वहीं औजार लेकर के मैं मेरे जवानों को मैदान में उतार दूं। हो सकता है कि उसकी टैलेंट अच्छी होगी, ट्रेनिंग अच्छी होगी तो उस औजार का शायद ज्‍यादा अच्‍छा उपयोग करके निकल जाएगा। लेकिन मैं कब तक रिस्क लेता रहूंगा। जो औजार, जो हथियार उसके हाथ में हैं, वैसा ही हथियार लेकर के मेरा नौजवान क्यों जाएगा? उसके पास वो होगा, जो उसने सोचा तक नहीं होगा। वो समझों उसके पहले तो उसका खात्मा हो जाएगा। ये मिजाज, ये मिजाज सिर्फ फौजियों को तैयार करने के लिए नहीं हैं, ये मिजाज उसके हाथ में कौन से हथियार है, उस पर भी डिपेंड करता है। और इसलिए आत्मनिर्भर भारत, ये सिर्फ एक आर्थिक गतिविधि नहीं है दोस्‍तों और इसलिए हमें पूरी तरह इसमें बदलाव की जरूरत है।

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साथियों,आज़ादी के बाद के पहले डेढ़ दशक में हमने नई फैक्ट्रियां तो बनाई नहीं, पुरानी फैक्ट्रियां भी अपनी क्षमताएं खोती गईं। 1962 के युद्ध के बाद मजबूरी में नीतियों में कुछ बदलाव हुआ और अपनी ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों को बढ़ाने पर काम शुरू हुआ। लेकिन इसमें भी रिसर्च, इनोवेशन और डेवलपमेंट पर बल नहीं दिया गया। दुनिया उस समय नई टेक्नॉलॉजी, नए इनोवेशन के लिए प्राइवेट सेक्टर पर भरोसा कर रही थी, लेकिन दुर्भाग्य से रक्षा क्षेत्र को एक सीमित सरकारी संसाधनों, सरकारी सोच के दायरे में ही रखा गया। मैं गुजरात से आता हूं, अहमदाबाद मेरा लंबे अर्से तक कार्यक्षेत्र रहा। किसी जमाने में, आप में तो ऐसे कहियो तो गुजरात में समुद्री तट पर काम किया होगा, बड़ी-बड़ी चिमनियां और मील का उद्योग और इन मैनचेस्टर ऑफ इंडिया इस प्रकार की उसकी पहचान, कपड़े के एक क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम था अहमदाबाद का। क्या हुआ? इनोवेशन नहीं हुआ, टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन नहीं हुआ, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं हुई। इतनी ऊंची-ऊंची चिमनियां जमींदोज हो गई दोस्तों, हमारी आंख के सामने हमने देखा है। ये एक जगह पर होता है तो दूसरी जगह पर नहीं होगा, ऐसा नहीं है। और इसलिए इनोवेशन निरंत आवश्यक होता है और वो भी इंडिजिनियस भी इनोवेशन हो सकता है। बिकाऊ माल से तो कोई इनोवेशन हो ही नहीं सकता है। हमारे युवाओं के लिए विदेशों में तो अवसर हैं, लेकिन देश में उस समय अवसर बहुत सीमित थे। परिणाम ये हुआ कि कभी दुनिया की अग्रणी सैन्य ताकत रही भारतीय सेना को राइफल जैसे सामान्य अस्त्र तक के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ा। और फिर आदत हो गई, एक बार एक मोबाइल फोन की आदत हो जाती है तो फिर कोई कितना ही कहे कि हिन्‍दुस्‍तान का बहुत अच्छा है, लेकिन मन करता है यार छोड़ो वहीं ठीक रहेगा। अब आदत हो गई है, उस आदत को बाहर निकालना तो एक प्रकार से एक मनोवैज्ञानिक सेमिनार भी करना पड़ेगा। सारी मुसीबत मनोवैज्ञानिक है जी, एक बार मनोवैज्ञानिक लोगों को बुलाकर के सेमिनार कीजिए कि भारतीय चीजों का मोह कैसे छूट सकता है। जैसे ड्रग एडिक्‍ट को ड्रग्‍स में से छुड़ाने के लिए ट्रेनिंग करते हैं ना, वैसे ये भी ट्रेनिंग जरूरी है हमारे यहां। अपने में आत्‍मविश्‍वास होगा तो अपने हाथ में जो हथियार है, उसके सामर्थ्य को हम बढ़ा सकते हैं, और हमारा हथियार उस सामर्थ्‍य पैदा कर सकता है दोस्तों।साथियों,मुश्किल ये भी थी कि उस समय डिफेंस से जुड़े ज्यादातर सौदे सवालों में घिरते गए। सारी लौबी है कि उसका लिया तो, ये लौबी मैदान में उतर गई, इसका लिया तो ये लौबी उतरती थी और फिर पॉलिटिशियन को गाली देना तो बहुत सरल बात हो गई हमारे देश में। तो फिर दो-दो, चार-चार साल तक वही चीज चलती चली गई। इसका नतीजा ये हुआ कि सेनाओं को आधुनिक हथियारों, उपकरणों के लिए दशकों इंतजार करना पड़ा।

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साथियों,डिफेंस से जुड़ी हर छोटी-छोटी ज़रूरत के लिए विदेशों पर निर्भरता हमारे देश के स्वाभिमान, हमारे आर्थिक नुकसान के साथ ही रणनीतिक रूप से बहुत ज्यादा गंभीर खतरा है। इस स्थिति से देश को बाहर निकालने के लिए 2014 के बाद हमने मिशन मोड पर काम शुरू किया है। बीते दशकों की अप्रोच से सीखते हुए आज हम सबका प्रयास, उसकी ताकत से नए डिफेंस इकोसिस्टम का विकास कर रहे हैं। आज डिफेंस R&D को प्राइवेट सेक्टर, academia, MSMEs और स्टार्टअप्स के लिए खोल दिया गया है। अपनी पब्लिक सेक्टर डिफेंस कंपनियों को हमने अलग-अलग सेक्टर में संगठित कर उन्हें नई ताकत दी है। आज हम ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि IIT जैसे अपने प्रीमियर इंस्टीट्यूशन्स को भी हम डिफेंस रिसर्च और इनोवेशन से कैसे जोड़ें। हमारे यहां तो कठिनाई ये है कि हमारे टेक्निकल युनिवर्सिटी या टेक्निकल कॉलेजिस या इंजीनियरिंग की दुनिया, वहां डिफेंस के equipment related to course ही पढ़ाए नहीं जाते। मांग लिया, तो बाहर से मिल जाएगा, यहां कहां पढ़ने की जरूरत है। यानी एक दायरा ही बदल चुका था जी। इसमें हमने लगातार बदलाव लाने की कोशिश की है। DRDO और ISRO की cutting edge testing सुविधाओं से हमारे युवाओं को, स्टार्ट अप्स को ज्यादा से ज्यादा बल मिले, ये प्रयास किए जा रहे हैं। मिसाइल सिस्टम, submarines, तेजस फाइटर जेट्स जैसे अनेक साजो-सामान, जो अपने तय लक्ष्यों से कई-कई साल पीछे चल रहे थे, उनको गति देने के लिए हमने silos को दूर किया। मुझे खुशी है कि देश के पहले स्वदेश निर्मित एयरक्राफ्ट कैरियर की commissioning का इंतज़ार भी बहुत जल्द समाप्त होने वाला है। Naval Innovation and Indigenisation Organisation हो, iDEX हो, या फिर TDAC हो, ये सभी आत्मनिर्भरता के ऐसे ही विराट संकल्पों को गति देने वाले हैं।।

 

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साथियों,बीते 8 वर्षों में हमने सिर्फ डिफेंस का बजट ही नहीं बढ़ाया है, ये बजट देश में ही डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास में भी काम आए, ये भी सुनिश्चित किया है। रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए तय बजट का बहुत बड़ा हिस्सा आज भारतीय कंपनियों से खरीद में ही लग रहा है। और ये बात हम मान के चले जी, आप में तो सब परिवारजन वाले लोग हैं, परिवार की दुनिया आप भली भांति समझते हैं, जानते हैं। आप अपने बच्चे को घर में मान सम्मान प्यार न दो और चाहों कि मोहल्ले वाले आपके बच्चे को प्यार करें तो होने वाला है? आप उसको हर दिन निकम्मा कहते रहोगे और आप चाहोगे कि पड़ोसी उसको अच्छा कहे, कैसे होगा? हम हमारे हथियार जो उत्पादन होते हैं, उसकी इज्जत हम नहीं करेंगे और हम चाहेंगे कि दुनिया हमारे हथियारों की इज्जत करे तो ये संभव नहीं होने वाला है, शुरुआत हमें अपने से करनी होती है। और ब्रह्मोस इसका उदाहरण है, जब भारत ने ब्रह्मोस को गले लगाया, दुनिया ब्रह्मोस को गले लगाने के लिए आज कतार में खड़ी हो गई है दोस्तों। हमें अपने हर निर्मित चीजों के प्रति हमें गर्व होना चाहिए। और मैं भारत की सेनाओं को बधाई दूंगा कि उन्होंने 300 से अधिक हथियारों, उपकरणों की सूची बनाई है, जो मेड इन इंडिया ही होंगे और उनका उपयोग हमारी सेनाएं करेंगी, उन चीजों को हम बाहर से नहीं लेंगे। मैं इस निर्णय के लिए तीनों सेनाओं के सभी साथियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

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साथियों,ऐसे प्रयासों का परिणाम अब दिखने लगा है। बीते 4-5 सालों में हमारा डिफेंस इंपोर्ट लगभग 21 प्रतिशत कम हुआ है। इतने कम समय में और ये नहीं कि हमने पैसे बचाने के लिए कम किया है, हमने हमारे यहां उसका अल्टरनेट दिया है। आज हम सबसे बड़े defense Importer के बजाय एक बड़े exporter की तरफ तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। ये ठीक है कि Apple और ओरों की तुलना नहीं हो सकती है लेकिन भारत के मन की मैं बात बताना चाहता हूं। हिन्‍दुस्‍तान के लोगों की ताकत की बात बताना चाहता हूं। इस कोरोना काल में मैंने ऐसे ही विषय छेड़ा था, बड़ा ही हल्‍का-फुल्‍का विषय था कि कोरोना काल में उस संकट में मैं देश पर कोई बड़ा बोझ हो, ऐसी बातें करना नहीं चाहता। अब इसलिए मैंने कहा कि देखो भाई, हम बाहर से खिलौने क्यों लेते हैं? छोटा सा विषय है, बाहर से खिलौने क्यों लेते हैं? हमारे खिलौने के यहां हम क्यों नहीं जाते? हम हमारे खिलौने दुनिया में क्यों नहीं बेच सकते? हमारे खिलौने के पीछे, खिलौने बनाने वाले के पीछे हमारी सांस्कृतिक परंपरा की एक सोच पड़ी हुई थी, उसमें से वो खिलौने बनाता है। एक ट्रेनिंग होती है, छोटी सी बात थी एक आद सेमिनार किया, एक आद वर्चुअल कांफ्रेंस की, थोड़ा उनको उत्साहित किया। आप हैरान हो जाएंगे इतनी कम समय में जी, ये मेरे देश की ताकत देखिए, मेरे देश का स्वाभिमान देखिए, मेरे सामान्य नागरिक के मन की इच्छा देखिए साहब, बच्‍चे दूसरे को फोन करके कहते थे कि तुम्हारे घर में विदेशी खिलौना तो नहीं है ना? कोरोना के अंदर से जो मुसीबतें आईं, उसमें से उसके अंदर ये भाव जगा था। एक बच्चा दूसरे बच्चे को फोन करके कहता था कि तेरे घर में तो विदेशी खिलौने तो नहीं रखते हो? और परिणाम ये आया कि मेरे देश में खिलौना इंपोर्ट 70% कम हो गया, दो साल के भीतर भीतर। ये समाज क्या, स्वभाव की ताकत देखिए और यही देश के हमारे खिलौने बनाने वालों की ताकत देखिए कि 70% हमारा एक्‍सपोर्ट बढ़ गया खिलौना का यानी 114% का फर्क आया। मेरे कहने का मतलब है, मैं जानता हूं खिलौने की तुलना आपके पास जो खिलौने हैं, उसके साथ नहीं हो सकती है। इसलिए मैंने कहा कि Apple और ओरों की तुलना नही हो सकती। मैं तुलना कर रहा हूं भारत के सामान्य मानवीय की मन की ताकत और वो ताकत खिलौने वालों के काम आ सकती है। वो ताकत मेरे देश के सैन्य शक्ति को भी काम आ सकती है। ये भरोसा मेरे देशवासियों पर हमको होना चाहिए। पिछले 8 वर्षों में हमारा डिफेंस एक्सपोर्ट 7 गुणा बढ़ा है। अभी कुछ समय पहले ही हर देशवासी गर्व से भर उठा, जब उसे पता चला कि पिछले साल हमारे 13 हज़ार करोड़ रुपए का defence export किया है। और इसमें भी 70 प्रतिशत हिस्सेदारी हमारे प्राइवेट सेक्टर की है।

 

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साथियों,21वीं सदी में सेना की आधुनिकता, रक्षा के साजो सामान में आत्मनिर्भरता, के साथ ही, एक और पहलू पर ध्यान देना जरूरी है। आप भी जानते हैं कि अब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे भी व्यापक हो गए हैं और युद्ध के तौर-तरीके भी बदल रहे हैं। पहले हम सिर्फ land, sea और sky तक ही अपने डिफेंस की कल्पना करते थे। अब ये दायरा स्पेस यानि अंतरिक्ष की तरफ बढ़ रहा है, साइबर स्पेस की तरफ बढ़ रहा है, आर्थिक और सामाजिक स्पेस की तरफ बढ़ रहा है। आज हर प्रकार की व्यवस्था को weapon में कन्वर्ट किया जा रहा है। अगर rare earth होगी, उसको weapon में कन्वर्ट करो, crude oil है, weapon में कन्वर्ट करो। यानी पूरा विश्‍व का नजरिया तौर-तरीके बदल रहे हैं। अब आमने-सामने की लड़ाई से अधिक, लड़ाई अदृश्य हो रही है, अधिक घातक हो रही है। अब हम अपनी रक्षा की नीति और रणनीति सिर्फ अपने अतीत को ध्यान में रखते हुए नहीं बना सकते। अब हमें future challenges को anticipate करते हुए ही आगे कदम बढ़ाने हैं। हमारे आसपास क्या हो रहा है, क्या बदलाव आ रहे हैं, भविष्य के हमारे मोर्चे क्या होने वाले हैं, उनके अनुसार हमें खुद को बदलना है। और इसमें स्वावलंबन का आपका लक्ष्य भी देश की बहुत बड़ी मदद करने वाला है।

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साथियों,देश की रक्षा के लिए हमें एक और अहम पक्ष पर ध्यान देना है। हमें भारत के आत्मविश्वास को, हमारी आत्मनिर्भरता को चुनौती देने वाली ताकतों के विरुद्ध भी युद्ध तेज करना है। जैसे-जैसे भारत ग्लोबल स्टेज पर खुद को स्थापित कर रहा है, वैसे-वैसे Misinformation, disinformation, अपप्रचार, के माध्यम से लगातार हमले हो रहे हैं। Information को भी हथियार बना दिया गया है। खुद पर भरोसा रखते हुए भारत के हितों को हानि पहुंचाने वाली ताकतें चाहे देश में हों या फिर विदेश में, उनकी हर कोशिश को नाकाम करना है। राष्ट्ररक्षा अब सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि बहुत व्यापक है। इसलिए हर नागरिक को इसके लिए जागरूक करना, भी उतना ही आवश्यक है। वयं राष्ट्रे जागृयाम, ये उदघोष हमारे यहां जन जन तक पहुंचे, ये भी आवश्यक है। जैसे आत्मनिर्भर भारत के लिए हम whole of the government approach के साथ आगे बढ़ रहे हैं, वैसे ही राष्ट्र रक्षा के लिए भी whole of the Nation approach समय की मांग है। भारत के कोटि-कोटि जनों की यही सामूहिक राष्ट्रचेतना ही सुरक्षा और समृद्धि का सशक्त आधार है। एक बार फिर आपके इस इनिशिएटिव के लिए, इन सब को जोड़ कर के आगे बढ़ने के प्रयास के लिए, मैं रक्षा मंत्रालय को, हमारे डिफेंस फोर्सेज को, उनके लीडरशिप को मैं हृदय से बहुत बहुत बधाई देता हूं और मुझे अच्छा लगा आज कि जब मैं कुछ stalls पर जाकर के आपके सारे इनोवेशन देख रहा था, तो हमारे जो नेवी के निवृत्त साथी हैं, उन्होंने भी अपना अनुभव, अपनी शक्ति, अपना समय इस इनोवेशन के काम में लगाया है ताकि नेवी हमारी मजबूत हो, हमारे डिफेंस फोर्सेज मजबूत हो। मैं समझता हूं ये एक बड़ा उत्तम प्रयास है, इसके लिए भी जिन लोगों ने रिटायरमेंट के बाद भी इसको मिशन मोड में काम लिया है, मैं विशेष रूप से उनको भी बधाई देता हूं और इन सबको सम्मानित करने की व्यवस्था चल रही है, इसलिए भी आप सब भी अभिनंदन के अधिकारी हैं। बहुत बहुत धन्यवाद! बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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